चुपचाप, अकेले भोजन करने का मजा ही कुछ और है
आदमी की पांच इंद्रियों में से चार तो उम्र के साथ−साथ ढलती चली जाती हैं। पांचवीं सबसे बाद में ढलती है। खाने के स्वाद की बात ही कुछ और है। मैंने खुद उसे महसूस किया है। जैसे−जैसे मेरी उम्र बढ़ रही है, मैं खाने को लेकर खासा परेशान रहता हूं। ब्रेकफास्ट, लंच और डिनर के खाने पर मैं सोचता हूं। ब्रेकफास्ट और लंच तो मेरे मामूली से होते हैं। सुबह एक मग चाय के साथ बटर टोस्ट और दोपहर में सूप या दही। लेकिन डिनर तो जोरदार ही चाहिए। उसमें एक खास चीज हो, साथ में सलाद और पुडिंग या आइसक्रीम जरूरी है। मैंने यह भी महसूस किया है कि उस एक वक्त के खास खाने के लिए मुझे भूख लगनी जरूरी है। पेट साफ होना चाहिए। मैं मानता हूं कि अकेले खाने का मजा ही कुछ और है। उसे चुपचाप ही खाना चाहिए। परिवार के लोगों के साथ खाने से रिश्ते बेहतर हो सकते हैं। लेकिन उससे खाने का असल मजा गायब हो जाता है। खाते हुए जब हम बोलते हैं, तो उसके साथ अच्छी−खासी हवा भी फांकते हैं। अपने पुराने जमाने के लोग चुपचाप शाम का खाना खाते थे। उसकी तमाम वजह भी बताते थे। मैं उन्हीं के कदमों पर चलने की कोशिश कर रहा हूं। मैंने अपने रोल मॉडल मिर्जा असद उल्लाह गालिब से पीना सीखा है। वह हर शाम नहाते थे। धुले कपड़े पहनते थे। फिर अपनी स्कॉच व्हिस्की निकालते थे। सुराही के पानी को मिलाकर बेहद चुप्पी के साथ पीते थे। और लिखते रहते थे शराब और शबाब पर अपनी बेहतरीन शायरी। उन्होंने अपने खाने के बारे में कभी नहीं बताया।
जब मैं अकेले में खाली पेट व्हिस्की पीता हूं, तो वह गहराई तक उतर जाती है। जब मैं साथ में पीता हूं, तो कुछ खास महसूस नहीं होता। इसी तरह जब मैं साथ में खाना खाता हूं, तो उसका असल स्वाद महसूस ही नहीं होता। मैं तब खाने को बस मुंह के हवाले करता जाता हूं। अकेले खाते हुए मैं आंखें बंद कर लेता हूं। अपने भीतर तक उसे महसूस करता हूं। तब मुझे लगता है कि खाने के साथ पूरा इंसाफ कर रहा हूं। और खाना भी मेरे साथ इंसाफ कर रहा है। मैं जल्दबाजी में खाना नहीं खाना चाहता। मैं तो धीरे−धीरे मजा लेकर खाता हूं।
मैं अलग−अलग तरह का खाना चाहता हूं। मेरा भरोसेमंद रसोइया 50 साल से साथ है। लेकिन वह इनता बूढ़ा हो चुका है कि किसी नई चीज पर हाथ आजमाना नहीं चाहता। मैं उन रेस्तराओं के टेलीफोन नंबर रखता हूं, जहां जल्दी से खाना आ जाता है। मैं तब चाइनीज, थाई, फ्रेंच इटैलियन, साउथ इंडियन वक्त−वक्त पर मंगाता रहता हूं। मेरे पास उन औरतों के नंबर भी हैं, जो अलग−अलग किस्म के खाने बनाने में माहिर हैं। वे अपने घर पर बनाती हैं और मेरे पास भेज देती हैं। वे उन लोगों को भी भेज देती हैं, जो एडवांस में अपने आर्डर दे देते हैं।
एक मिसेज धूलिया हैं। वह कमाल के चॉकलेट केक बनाती हैं। क्लेवर दत्त को भी जानता हूं, जो मैं चाहता हूं, बना देती हैं। सावरिन ने कहा था, आप बता दीजिए क्या खाते हैं, मैं बता दूंगा आप क्या हैं? लेकिन अगर मैं यह बता दूं कि क्या−क्या खाता हूं, तो वह मुझे सुअर कहने लगेंगे। पर याद करता हूं, एक सितारे की खोज से कहीं ज्यादा एक नई डिश आदमी को ज्यादा खुशी देती है। हां मैं लार्ड बायरन की तरह शाम के खाने का बेसब्री से इंतजार करता हूं। वैसे ही जैसे मैं लड़कपन में अपनी डेट्स का करता था। यहां एक चेतावनी जरूर देना चाहता हूं, कभी ज्यादा नहीं खाना चाहिए। बिगड़ा पेट खाने का सारा मजा बेकार कर देता है।
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