Friday, 29 May 2015

समाज की भागीदारी से ही बचेगी गंगा

समाज की भागीदारी से ही बचेगी गंगा

मोदी सरकार ने सत्ता में आते ही गंगा की अविरल और निर्मल धारा सुनिश्चित करने की जो कोशिशें कीए उनका असर दिखने में शायद अभी कुछ और वक्त लगे पर इधर उत्तराखंड के हरिद्वार में इस मामले में हुई एक बड़ी कार्रवाई ने कुछ उम्मीदें अवश्य जगा दी हैं। वहां एक पांच सितारा होटल को प्रशासन ने इस कारण बंद करवा दिया है कि वह बिना शोधन के गंदा पानी और कचरा नाले के जरिये गंगा में प्रवाहित कर रहा था।जल संसाधन और नदी विकास मंत्रालय के राष्ट्रीय जल विकास अभिकरण से आरटीआई के माध्यम से मिली जानकारी में बताया गया था कि गंगा के किनारे कुल 764 उद्योग हैंए जिनमें 444 चमड़ा उद्योगए 27 रासायनिक उद्योगए 67 चीनी मिलेंए 33 शराब उद्योगए 22 खाद्य और डेयरीए 63 कपड़ा एवं रंगाई उद्योगए 67 कागज और पल्प उद्योग और 41 अन्य उद्योग हैं। ये फैक्टरियां ऐसी हैं जिनमें से कई गंगा के 112 करोड़ लीटर जल का इस्तेमाल भी करती हैं।समस्या नदियों के जल के अंधाधुंध इस्तेमाल की ही नहींए बल्कि उसमें भारी मात्रा में प्रदूषित कचरा छोड़ने की भी है। इस बारे में केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ;सीपीसीबीद्ध के आंकड़े कहते हैं कि नदियों में प्रदूषण फैलाने वाली फैक्टरियों की संख्या पूरे देश में 911 हैए हालांकि इनमें से 128 फैक्टरियां अब बंद हो चुकी हैं। सीपीसीबी के अनुसार इनमें सबसे ज्यादा 612 फैक्टरियां यूपी में हैंए जबकि हरियाणा में 109ए उत्तराखंड में 50ए पश्चिम बंगाल में 31ए बिहार में 22ए ओडिशा में 20ए आंध्रप्रदेश में 16ए कर्नाटक में 10ए झारखंड में 5 और पंजाब में 7 हैं। पर्यावरण विशेषज्ञों का मत है कि प्रदूषण फैलाने वाली फैक्टरियां और गंगा जल के अंधाधुंध दोहन से इस पतित पावनी नदी के अस्तित्व का ही खतरा पैदा हो गया है।गंगा को जीवन देना आसान काम नहीं है। पिछली यूपीए सरकार तो 10 साल के अरसे में इस संबंध में सिर्फ योजनाएं बना कर रह गई। गंगा एक्शन प्लान के नाम पर जो योजनाएं बनींए वे दिखावा ही साबित हुईं। जो थोड़े.बहुत काम हुए भीए वे राजनीतिक इच्छाशक्ति के अभाव के चलते बीच में ही दम तोड़ गए। गंगोत्री से निकलकर ऋषिकेश.हरिद्वार होते हुए बंगाल की खाड़ी में समाने से पहले 2525 किलोमीटर का सफर तय करने वाली गंगा का जो हाल बीते कुछ दशकों में हुआ हैए उसका नतीजा यह है कि हरिद्वार के आगे इसका जल आचमन लायक नहीं समझा जाता।वैज्ञानिक आधारों पर बात करें तो गंगा जैसी पवित्र नदी के प्रति सौ मिलीलीटर जल में कोलीफार्म बैक्टीरिया की तादाद 5000 से नीचे होनी चाहिएए पर जिस बनारस से निर्वाचित होकर नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री के पद तक पहुंचे हैंए उस बनारस में गंगा के सौ मिलीलीटर जल में 58000 कोलीफार्म बैक्टीरिया पाए हैं। सीपीसीबी के मुताबिक वहां हानिकारक बैक्टीरिया सुरक्षित मात्रा से 11ण्6 गुना ज्यादा हैं। ये हालात गंगा में मिलने वाले बिना उपचारित किए गए सीवेज के कारण पैदा हुए हैंए जो इसके तट पर मौजूद शहरों से निकलता है।पिछले साल फरवरी में स्मृति ईरानी द्वारा पूछे गए एक सवाल के जवाब में तत्कालीन पर्यावरण मंत्री वीरप्पा मोइली ने राज्यसभा में बताया था कि गंगा के किनारे मौजूद शहरों से रोजाना 2ण्7 अरब लीटर सीवेज का गंदा और विषैला पानी निकलता है। इन शहरों में मौजूद ट्रीटमेंट प्लांट इसमें से सिर्फ 1ण्2 अरब लीटर यानी 55 फीसदी सीवेज की सफाई कर पाते हैं। यानी शेष 45 प्रतिशत सीवेज गंगा में यूं ही मिलने दिया जाता है।गंगा की तरह देश की दूसरी नदियों का हाल इस तथ्य से बयां हो जाता है कि हमारे शहरों.कस्बों से रोजाना 38ण्2 अरब लीटर सीवेज का गंदा पानी निकलता हैए जिसमें से केवल 31 प्रतिशत यानी 11ण्8 अरब लीटर सीवेज के ट्रीटमेंट की व्यवस्था देश में है। वैसे तो बहती हुई नदियों में छोटे.मोटे प्रदूषण को खुद ही निपटाने की व्यवस्था होती है। ऐसी ज्यादातर नदियां ऑर्गेनिक प्रदूषण समाप्त करने की क्षमता रखती हैं। पर बात असल में दूसरे किस्म के प्रदूषणों की है। देश में गंगा व अन्य नदियों को तीन तरह के प्रदूषणों का सामना करना पड़ रहा है। पहला तो शहरों.कस्बों से नालों के रूप में मिलने वाला सीवेज ही है। दूसरा प्रदूषण औद्योगिक अवशेष और खतरनाक रसायनों का है। तीसरेए खाद और कीटनाशकों के वे अवशेष हैं जो खेतों की सिंचाई के पानी से रिस कर नदी में मिल जाते हैं।हरिद्वार तक आते.आते उत्तरांचल की 12 नगरपालिकाओं के तहत 89 सीवेज नाले गंगा में मिल जाते हैं। हरिद्वार में तीन सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट हैंए जो पूरी ताकत से काम करने के बावजूद सीवेज का सारा पानी साफ नहीं कर पाते हैं। इसके बाद गंगा किनारे पड़ने वाला बड़ा शहर कानपुर है जहां बेशुमार औद्योगिक कचरा इसमें प्रवाहित किया जाता है। पर्यावरण विशेषज्ञों और विश्व बैंक की एक टीम ने कानपुर में पैदा होने वाले प्रदूषण से गंगा को बचाने का एकमात्र उपाय यह पाया है कि यहां के सारे नालों को गंगा से दूर ले जाया जाए। साथ हीए कानपुर के जाजमऊ क्षेत्र की सभी 450 चमड़ा शोधन इकाइयों को कहीं और स्थानांतरित कर दिया जाए।इसी तरह इलाहाबाद में आधा दर्जन बड़े नालों का पानी सीधे गंगा में गिरता है। बनारस में भी जो सीवेज रोजाना पैदा होता हैए उसमें से एक तिहाई से ज्यादा गंगा में बिना ट्रीटमेंट के मिल रहा है। इस शहर के 33 नालों का गंदा पानी गंगा में न मिलेए इसे रोकने का कोई ठोस उपाय नहीं किया गया है। मोदी सरकार ने गंगा को साफ करने की ठानी है। लेकिन यहां कुछ चीजों को और ध्यान में रखना होगा। जैसे यह कि गंगा गुजरात की साबरमती की तरह छोटी नदी नहीं है। साबरमती की कुल लंबाई 370 किलोमीटर हैए इसलिए मोदी के लिए उसकी साफ.सफाई आसान रही। लेकिन 2525 किलोमीटर लंबी गंगा विभिन्न प्रांतों में बहते हुए लाखों के रोजी.रोजगार का इंतजाम भी करती है।
SOURCE : http://dainiktribuneonline.com/2015/05/

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