भीतर से विरोध
पूर्व केंद्रीय मंत्री और बीजेपी नेता अरुण शौरी ने मोदी सरकार के बारे में जो कुछ कहा हैए उसे उनकी निजी भड़ास भी माना जा सकता है। लेकिन सहृदयता से देखें तो ये सिर्फ एक शुभचिंतक मित्र की खरी.खरी बातें हैंए जिसे नरेंद्र मोदी और उनके सहयोगियों को गंभीरता से लेना चाहिए। वैसे भी कुछ ही दिनों के बाद सरकार का एक साल पूरा होने के उपलक्ष्य में समारोहों का सिलसिला शुरू हो जाएगा। सत्ता पक्ष के लोग गवर्नमेंट की तारीफों के पुल बांधेंगे तो विपक्ष उसकी कमियां गिनाएगा।
यह सब रस्म.अदायगी की तरह होगाए जैसा आमतौर पर होता आया है। लेकिन एक चैनल को इंटरव्यू देते हुए शौरी ने बिना किसी लाग.लपेट के जो ठोस और तार्किक बातें कहीं हैंए उसके पीछे ऐसा कोई आग्रह खोजना मुश्किल है। ध्यान रहेए यह कोई अलग.थलग बयान नहीं है। थोड़ा ही पहले एनडीए के दोनों पुराने घटकों शिवसेना और अकाली दल के नेता भी स्पष्ट शब्दों में कह चुके हैं कि अहम सरकारी फैसले लेने से पहले उनकी राय नहीं ली जाती।
दबी जुबान से ऐसी खबरें खुद बीजेपी के बड़े नेताओंए यहां तक कि जिम्मेदार मंत्रियों की तरफ से भी लीक की जाती रही हैं कि अमित शाहए अरुण जेटली और खुद नरेंद्र मोदी को छोड़कर और कोई नहीं जानता कि सरकार अगले दिन क्या करने वाली है। ऐसे में इस बात की संभावना ज्यादा है कि अरुण शौरी की बातों में बीजेपी के आम कार्यकर्ता और समर्थक का दुख भी शामिल हो। उन्होंने साफ कहा है कि मोदीए शाह और जेटली की त्रिमूर्ति ही सारे फैसले करती हैए लेकिन इनमें से कोई भी किसी फैसले से जुड़ी जवाबदेही लेने को तैयार नहीं होता।
शौरी की सबसे बड़ी शिकायत यह है कि सरकार के फैसलों में दूरदर्शिता नहीं है। विकास के तमाम दावे खबरों में बने रहने के लिए काफी हैं लेकिन जमीन पर इनका कोई असर नहीं नजर आ रहा। श्घर वापसीश् और श्लव जिहादश् जैसे मुद्दों पर प्रधानमंत्री की चुप्पी की भी शौरी ने आलोचना की और कहा कि हर छोटे.बड़े मुद्दे पर ट्वीट करके मोदी ने लोगों की अपेक्षाएं बढ़ा दी हैंए लिहाजा अल्पसंख्यकों के मुद्दों पर जब वे चुप रहते हैं तो जनता में संदेह पैदा होता है।
शिवसेना कभी दबे.छुपे तो कभी खुलकर मोदी की कार्यशैली पर सवाल उठाती रही है। भूमि अधिग्रहण के मसले पर भी वह बीजेपी से पूरी तरह सहमत नहीं है। अकाली दल की तो शिकायत है कि भूमि अधिग्रहण बिल पेश करने से सिर्फ दो घंटे पहले उसे इसकी जानकारी दी गई। ऐसे में बिल पर राज्यसभा में अपने सहयोगियों की मदद पाने की उम्मीद सरकार कैसे कर सकती हैघ्
चूंकि नरेंद्र मोदी को अभी भीतर या बाहरए कहीं से भी कोई बड़ी चुनौती नहीं मिल रहीए इसलिए अपने शुभचिंतकों की ये बातें उन्हें अनावश्यक लग सकती हैं। पर कोई सत्ता तभी तक टिकाऊ रहती हैए जब तक उसे अपनों का समर्थन मिलता रहता है। मोदी और उनके मित्रों को सोचना चाहिए कि आगे बढ़ने की रौ में वे कहीं बियाबान की तरफ तो नहीं बढ़ रहे?
SOURCE : navbharattimes.com
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