Saturday, 16 May 2015

काबुल में निशाने पर हम!

काबुल में निशाने पर हम!

काबुल के पार्क पैलेस गेस्टहाउस पर हुए आतंकी हमले ने एक बार फिर इस बात को रेखांकित किया है कि अफगानिस्तान सरकार तालिबान व अन्य आतंकी गुटों की चुनौती का सामना करने में सक्षम नहीं है। इस आतंकी हमले में 14 लोग मारे गएए जिनमें 9 विदेशी हैं। मरने वालों में चार भारतीय नागरिक थे। भारत की खुफिया एजेंसी का मानना है कि इस आतंकी हमले का मुख्य निशाना भारत के राजदूत अमर सिन्हा थेए जो वहां अफगानी गायक अल्ताफ हुसैन के कार्यक्रम में शामिल होने वाले थे। सौभाग्य से अमर सिन्हा वहां नहीं गए।

जुलाई 2008 में काबुल के भारतीय दूतावास पर आतंकी हमला हुआ था। पिछले साल नरेंद्र मोदी द्वारा प्रधानमंत्री पद की शपथ लिए जाने के ठीक पहले हेरात में भारतीय कॉन्सुलेट पर आतंकी हमला किया गया था। इसलिए यह आशंका निराधार नहीं है कि पार्क पैलेस गेस्टहाउस पर हुआ आतंकी हमला उन्हीं संगठनों की करतूत हैए जिन्होंने पहले भी भारतीय ठिकानों पर हमला किया था। भारतीय दूतावास पर हुए हमले के संदर्भ में अफगानिस्तान सरकार की जांच एजेंसी ने हक्कानी समूह को इसके लिए जिम्मेदार पाया थाए जिसका पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई से सीधा रिश्ता है।

अफगानिस्तान के पुनर्निर्माण में भारत अग्रणी भूमिका निभा रहा हैए जो पाकिस्तान को पसंद नहीं है। भारत की भूमिका को सीमित करने में अन्य मोर्चों पर विफल रहने के बाद अब आईएसआई ने आतंकी गुटों का इस्तेमाल कर अफगानिस्तान में भारत के कूटनीतिज्ञों व नागरिकों को निशाना बनाया है। संभवतरू पाकिस्तान चाहता है कि भारत व अन्य देश अफगानिस्तान से बाहर हो जाएंए ताकि एक बार फिर वहां की राजनीतिक सत्ता में पाकिस्तान.समर्थक तत्वों का प्रभुत्व स्थापित हो जाए।

ऐसा लगता है कि पाकिस्तान सरकार ने अपने यहां बढ़ती आतंकी वारदातों से कोई सबक नहीं सीखा है और वह आज भी आतंकवादी तत्वों का इस्तेमाल करके अपना कूटनीतिक लक्ष्य प्राप्त करना चाहती है। पिछले साल अमेरिकी सेना की वापसी के बाद अफगानिस्तान में तालिबान व अन्य आतंकी गुटों की गतिविधियों में चिंताजनक बढ़ोतरी हुई है। पाकिस्तान संभवत इस आग में घी डालने का काम कर रहा है। पाकिस्तान को यह समझना चाहिए कि अफगानिस्तान में राजनीतिक अस्थिरता फैलने का सबसे अधिक नकारात्मक असर उसी पर पड़ेगा। अफगानिस्तान में तालिबान शासन की वापसी पड़ोसी देशों के लिए ही नहींए बल्कि अंतरराष्ट्रीय समुदाय के लिए एक बड़ी चुनौती होगी। इस संभावित खतरे से निपटने के लिए अंतरराष्ट्रीय प्रयास जरूरी हैं।

अफगानिस्तान सरकार के पास इतने संसाधन नहीं हैं कि वह इस चुनौती का सफलता के साथ सामना कर सके। अफगानिस्तान पुलिस व सुरक्षा बलों की क्षमता बढ़ाने के अंतरराष्ट्रीय प्रयासों में अभी तक अपेक्षित सफलता नहीं मिली है। पाकिस्तान को यह समझना होगा कि अफगानिस्तान भारत के खिलाफ युद्ध का मैदान नहीं है। अफगानिस्तान की धरती पर दोनों देश आपसी सहयोग करके नई इबारत लिख सकते हैं।
SOURCE : NAIDUNIYA.COM

No comments:

Post a Comment