ब्रिटेन से संबंधों में अच्छे दिनों की आस
ब्रिटेन में सात मई को संसदीय चुनाव में हार के बाद प्रमुख विपक्षी लेबर पार्टी के नेता ऐड मिलिबैंड ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया। लिबरल डेमोक्रेटिक पार्टी के नेता निक क्लेग ने भी ऐसा ही किया। इस बार इस पार्टी को मात्र आठ सीटें हासिल हुई हैंए और उसे 46 सीटों का नुकसान हुआ है। यूकेआईपी के प्रमुख नाइलेज़ फराज़ ख़ुद अपनी सीट हार गये। नाइलेज़ फराज इतने शर्मसार हुए कि नेता पद पर बने रहने से इनकार कर दिया। चुनाव में अपनी पार्टी का अच्छा प्रदर्शन नहीं होने के बाद जिस तरह से एक के बाद एक विपक्षी नेताओं ने इस्तीफा दिया हैए उससे लगता है कि ब्रिटिश राजनीति में अब भी मर्यादा बाक़ी हैए और पार्टी के शिखर नेता बड़ी संज़ीदगी से उन मूल्यों का पालन कर रहे हैं। हमारे यहां ऐसा क्यों नहीं होताघ् क्यों चुनाव में परास्त नेता खुद जिम्मेदारी नहीं लेकरए जूनियर नेताओं पर ठीकरा फोड़ते हैंए और उन्हें बलि का बकरा बनाते हैंघ्
ब्रिटिश संसद के निचले सदनए ष्हाउस ऑफ कॉमन्सष् की 650 सीटों के लिए 7 मई को मतदान हुआ। सरकार बनाने के लिए 326 सांसदों की ज़रूरत होती है। शुक्रवार को आये परिणाम में सत्तारूढ़ कंज़रवेटिव पार्टी को 331 सीटें मिली और लेबर पार्टी को 232। तीसरे नंबर पर आई स्काटिश नेशनल पार्टी को 56 सीटें मिली और पिछली सरकार में सहयोगी रह चुके लिबरल डेमोक्रेट को मात्र आठ सीटें मिली हैंए यानी तीसरे से चौथे नंबर पर आ चुके लिबरल डेमोक्रेट को मात्र एक प्रतिशत मत मिले हैं। प्रधानमंत्री डेविड कैमरन को दूसरी बार सरकार बनाने के लिए लिबरल डेमोक्रेट के साथ की आवश्यकता नहीं पड़ेगी। कैमरन ने कहा कि मैं दूसरी बार प्रधानमंत्री पद की जिम्मेदारी संभालने को तैयार हूंए क्योंकि अब भी मेरे कई काम अधूरे हैं। कैमरन ने कहाए ष्तीसरी बार इसकी जिम्मेदारी पार्टी के किसी और नेता के कंधों पर होगी। कंज़रवेटिव पार्टी में कई सारे का़बिल नेता हैंए जिनमें चांसलर जार्ज ओसबोर्नए गृहमंत्री थेरेसा पर हम भरोसा कर सकते हैं।ष् प्रधानमंत्री कैमरन के इस बयान को कइयों ने दंभ भरा वक्तव्य कहा है। कुछ ने तो उन्हें ष्मगरूरष् तक कह डाला है।दूसरी पाली में जार्ज ओस्ाबोर्न ब्रिटेन के वित्त मंत्री बने रहेंगेए और प्रधानमंत्री कैमरन के बाद दूसरे नंबर पर ष्डिप्टीष् की भूमिका निभाते रहेंगे। थेरेसा भी गृहमंत्री बनी रहेंगीए और फिलिप हेमंड को विदेश मंत्रालय का प्रभार दिया गया है। फिलिप हेमंड यूरोप से वार्ता के मामले में अधिक प्रभावी नेता माने जाते हैं। अगले चुनाव तक इन तीन नेताओं के बीच कैमरन की जगह लेने की प्रतिस्पर्धा बनी रहेगी। प्रधानमंत्री यूरोपीय संघ में शामिल होने के सवाल पर जनमत संग्रह को किस तरह से प्रभावित करते हैंए इसका पता आने वाले दिनों में चल जाएगा। ब्रिटेन अभी अठाइस सदस्यीय यूरोपीय संघ का सदस्य नहीं बना है। यूरोपियन कौंसिल के अध्यक्ष डोनाल्ड टस्क ने बयान दिया है कि नवनिर्वाचित प्रधानमंत्री कैमरन सदस्यता वाले मामले को इस बार संजीदगी से लें। प्रधानमंत्री कैमरन 2017 में इस मुद्दे पर मतसंग्रह कराने का वादा यूरोपीय संघ से कर चुके हैं।
वैसे यह विचित्र है कि तुर्की दशकों से सदस्यता के लिए यूरोपीय संघ के दरवाज़े पर दस्तक दे रहा हैए लेकिन उसे मानवाधिकार हनन के बहाने टाल दिया जाता है। कैमरन ने कहा है कि मैं स्कॉटलैंड को और अधिकार दिलाने का प्रयास करूंगा। वेल्स और नॉर्दन आयरलैंड के साथ ऐसा ही होगा। स्कॉटलैंड में कैमरन अब ष्डैमेज कंट्रोलष् करेंगे। वहां उनकी कंज़रवेटिव पार्टी ने अच्छा प्रदर्शन नहीं किया है। स्कॉटलैंड में तीन सीटों को छोड़कर सारी सीटों पर ष्स्कॉटिश नेशनल पार्टीष् की फतह हुई है। कैमरन ब्रिटेन की एकता के लिए किस तरह की रणनीति बनाते हैंए इसकी प्रतीक्षा पूरा देश कर रहा है।
कैमरन के दोबारा सत्ता में आने से भारत.ब्रिटेन संबंघों के ष्अच्छे दिनष् आएंगेए ऐसी आशा नई दिल्ली में की जाने लगी है। ब्रिटेन के चुनाव में 15 लाख भारतीय वोटरों की बड़ी भूमिका रही है। दशक भर पहले वामपंथी रुझान वाली लेबर पार्टी को भारतीय मतदाता काफी पसंद करते थे। यह लेबर पार्टी ही थीए जिसने 2002 में गुजरात दंगे के बाद नरेंद्र मोदी का बायकाट करना तय कर लिया था। लेकिन बाद में दक्षिणपंथी इसके विरुद्ध माहौल बनाने लगे। ब्रिटेन के तीन बड़े विश्वविद्यालयों ने 2014 में मतदाताओं के रुझान के बारे में सर्वे कराया थाए जिसमें जानकारी मिली थी कि 1997 में 77 फीसदी भारतीय वोटर लेबर समर्थक थेए उनकी संख्या 2014 में मात्र 18 प्रतिशत रह गई थी।
दक्षिणपंथी भारतीय वोटरों को अपने आईने में उतारने के लिए क्या प्रधानमंत्री कैमरन ने धर्म का सहारा लिया थाघ् चुनाव प्रचार के समय एक वीडियो को देखकर तो ऐसा ही लगता हैए जिसमें प्रधानमंत्री डेविड कैमरन अपनी पत्नी सामांथा के साथ बैसाखी के दिन गुरुद्वारे गये थे और दीवाली पर मंदिर जाते हुए दिखाई दे रहे हैं। ष्कंज़रवेटिव फ्रेंड्स ऑफ इंडियाष् ब्रिटेन में मोदी समर्थक गुट हैए जिसने कैमरन के समर्थन में पूरी ताक़त झोंक दी थी। प्रधानमंत्री कैमरन अपने पिछले कार्यकाल में तीन बार भारत आ चुके हैं। ऐसी यात्राओं का असर भारतीय मूल के ब्रिटिश मतदाताओं पर पड़ना ही था।
प्रधानमंत्री मोदी के पद ग्रहण के बाद ऐसे कई मौके आए जब ब्रिटिश प्रधानमंत्री कैमरन ने उनका साथ दिया। ख़ासकर आतंकवाद को संरक्षण देने के सवाल पर कैमरन ने पाकिस्तान को पिछले दिनों काफी खरी.खोटी सुनाई थी। इस समय ब्रिटेन से ष्मेक इन इंडिया कार्यक्रमष् में सहयोग के कई सारे आयाम खुलने लगे हैं। ब्रिटिश कंपनियां भारतीय अधोसंरचना के क्षेत्र में निवेश करेंए इसके लिए एक अरब पौंड की ष्क्रेडिट लाइनष् की व्यवस्था कर दी गई है। कंज़रवेटिव पार्टी के मैनीफेस्टो में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् की स्थाई सीट के लिए भारत का समर्थन जैसी बातें भी कैमरन को भारतीय मूल के मतदाताओं के बीच लोकप्रिय बना रही थीं। प्रधानमंत्री मोदी बहुत जल्द ब्रिटेन जाएंगे और ऐसे सकारात्मक माहौल से अपनी कूटनीति को मज़बूत करेंगे!
SOURCE : PRABHASAKSHI.COM
No comments:
Post a Comment