ऐसे कैसे बनेंगे महाशक्ति
संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष की एक रिपोर्ट के अनुसार दुनिया भर में भारत सबसे बड़ी युवा आबादी वाला देश है। कुल जनसंख्या के मामले में भारतए चीन से पीछे हैए लेकिन 10 से 24 साल की उम्र के 35ण्6 करोड़ लोगों के साथ भारत सबसे अधिक युवा आबादी वाला देश है। चीन 26ण्9 करोड़ की युवा आबादी के साथ दूसरे स्थान पर है।
अब सवाल यह है कि इतनी बड़ी युवा आबादी का भारत क्या सकारात्मक उपयोग कर पा रहा है क्योंकि आंकड़ों के मुताबिक़ साल .दर.साल बेरोजगारी बढ़ रही है और देश में स्किल्ड युवाओं की भारी संख्या में कमी है। पिछले दिनों सीआईआई की इंडिया स्किल रिपोर्ट.2015 के मुताबिक हर साल सवा करोड़ युवा रोजगार बाजार में आते हैं। आने वाले युवाओं में से 37 प्रतिशत ही रोजगार के काबिल होते हैं। यह आंकड़ा कम होने के बावजूद पिछले साल के 33 प्रतिशत के आंकड़े से ज्यादा है और संकेत देता है कि युवाओं को स्किल देने की दिशा में धीमी गति से ही काम हो रहा है। एक दूसरी रिपोर्ट के अनुसार तो हर साल देश में 15 लाख इंजीनियर बनते हैं लेकिन उनमें से सिर्फ 4 लाख को ही नौकरी मिल पाती है।नेशनल एसोसिएशन ऑफ सॉफ्टवेयर एंड सर्विसेज कंपनीज यानी नैसकाम के एक सर्वे के अनुसार 75 फीसदी टेक्निकल स्नातक नौकरी के लायक नहीं हैं। आईटी इंडस्ट्री इन इंजीनियरों को भर्ती करने के बाद ट्रेनिंग पर करीब एक अरब डॉलर खर्च करती है। इंडस्ट्री को उसकी जरूरत के हिसाब से इंजीनियरिंग ग्रेजुएट नहीं मिल पा रहे हैं। डिग्री और स्किल के बीच फासला बहुत बढ़ गया है। इतनी बड़ी मात्रा में पढ़े.लिखे इंजीनियरिंग बेरोजगारों की संख्या देश की अर्थव्यवस्था और सामाजिक स्थिरता के लिए भी ठीक नहीं है।
असल में हमने यह बात समझने में बहुत देर कर दी कि अकादमिक शिक्षा की तरह ही बाजार की मांग के मुताबिक उच्च गुणवत्ता वाली स्किल शिक्षा देनी भी जरूरी है। एशिया की आर्थिक महाशक्ित दक्षिण कोरिया ने स्किल डेवलपमेंट के मामले में चमत्कार कर दिखाया है और उसके चौंधिया देने वाले विकास के पीछे स्किल डेवलपमेंट का सबसे महत्वपूर्ण योगदान है। इस मामले में उसने जर्मनी को भी पीछे छोड़ दिया है। 1950 में दक्षिण कोरिया की विकास दर हमसे बेहतर नहीं थी। लेकिन इसके बाद उसने स्किल विकास में निवेश करना शुरू किया। यही वजह है कि 1980 तक वह भारी उद्योगों का हब बन गया। उसके 95 प्रतिशत मजदूर स्किल्ड हैं या वोकेशनली ट्रेंड हैंए जबकि भारत में यह आंकड़ा तीन प्रतिशत है।
स्किल इंडिया बनाने के उद्देश्य से मोदी सरकार ने अलग मंत्रालय बनाया है। नेशनल स्किल डेवलपमेंट मिशन भी बनाया गया है। केन्द्रीय बजट में भी इसके लिए अनुदान दिया गया है। मतलब पहली बार कोई केंद्र सरकार इसके लिए इतनी संजीदगी से काम करने की कोशिश कर रही है। इसे देखते हुए लगता है कि स्किल डेवलपमेंट को लेकर केंद्र सरकार की सोच और इरादा तो ठीक है लेकिन इसका कितना क्रियान्यवन हो पायेगाए ये तो आने वाला समय ही बताएगा क्योंकि अभी तक स्किल डेवलपमेंट के लिए कोई ठोस काम नहीं हुआ है और न ही इसके कोई बड़े नतीजे आये हैं।
बिना स्किल के और लगातार बेरोजगारी बढ़ने की वजह से इंजीनियरिंग कालेजों में बड़े पैमाने पर सीटें खाली रहने लगी हैं। उच्च और तकनीकी शिक्षा के वर्तमान सत्र में ही पूरे देशभर में 7 लाख से ज्यादा सीटें खाली हैं। एक तरफ प्रधानमंत्री देश के लिए ष्मेक इन इंडियाष् की बात कर रहे हैं वहीं दूसरी तरफ देश में तकनीकी और उच्च शिक्षा के हालात बदतर स्थिति में हैं। सच्चाई यह है कि देश के अधिकांश इंजीनियरिंग कॉलेज डिग्री बांटने की दुकान बनकर रह गये हैं। इन कालेजों से निकलने वाले लाखों युवाओं के पास इंजीनियरिंग की डिग्री तो है लेकिन कोई कुछ भी कर पाने का स्किल नहीं हैै। आज हमारे इंजीनियरिंग के शैक्षिक कोर्स 20 साल पुराने हैं। इसलिए इंडस्ट्री के हिसाब से छात्रों को अपडेटेड थ्योरी भी नहीं मिल पाती। पिछले दिनों एक कार्यक्रम में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था कि युवाओं में प्रतिभा का विकास होना चाहिए। उन्होंने डिग्री के बजाय योग्यता को महत्व देते हुए कहा था कि छात्रों को स्किल डेवलपमेंट पर ध्यान देना होगा।
शैक्षणिक स्तर पर स्किल डेवलपमेंट के मामले में जर्मनी का मॉडल पूरी दुनिया में प्रसिद्ध है। जर्मनी में डुअल सिस्टम चलता है। वहां के हाई स्कूल के आधे से ज्यादा छात्र 344 कारोबार में से किसी एक में ट्रेनिंग लेते हैं। इसके लिए वहां छात्रों को सरकार से महीने में 900 डॉलर के करीब ट्रेनिंग भत्ता भी मिलता है। जर्मनी में स्किल डेवलपमेंट के कोर्स मजदूर संघ और कंपनियां बनाती हैं। वहां का चेंबर्स और कामर्स एंड इंडस्ट्रीज परीक्षा का आयोजन करता है। पिछली यूपीए सरकार ने 2009 में जर्मनी के साथ स्किल डेवलपमेंट को लेकर कार्यक्रम भी बनाए थे लेकिन सरकारी लालफीताशाही के दौर में देशभर में उनका ठीक से क्रियान्वयन नहीं हो पाया।
SOURCE : http://dainiktribuneonline.com/2015/05
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