Monday, 11 May 2015

गुणवान संतान की आकांक्षा

गुणवान संतान की आकांक्षा

यदि मनुष्य के अंदर भक्ति भाव नहींए भगवान के प्रति कोई श्रद्धा.विश्वास नहींए जो दानी नहींए केवल लेना ही लेना जानता है ए जीवन में शौर्यत्व नहींए ऐसे व्यक्ति नर.पशु ही हैं। समाज में दो प्रकार के व्यक्ति होते हैं ए एक देव प्रवृत्ति वाले जो परहित की बात सोचतेए समझते और करते हैं और दूसरे आसुरी प्रवृत्ति वाले व्यक्ति जो समाज का हित तो दूरए वे समाज को हानि पहंुचाते रहते हैं।
नीतिकार चाणक्य ने कहा है .जिस व्यक्ति के पास विद्या नहीं हैए जो न दानी हैए न ज्ञान ग्रहण करने का प्रयत्न करता है ए न ही उसमें शीलता का कोई गुण हैए न उसमें धर्माचरण हैए ऐसे व्यक्ति को मनुष्य का रूप लिए वास्तव में मृग की तरह धरती पर निरा बोझ समझा गया है जो जंगल में इधर.उधर व्यर्थ छलांग लगाते फिरते रहकर ही अपना जीवन गुजार देता है। इसलिए हर माता.पिता यह चाहते हैं कि उनके यहां ऐसी संतान पैदा हो जो परमात्मा की भक्त होए दानी होए शूरवीर होए विद्यावान व तपस्वी होए श्रेष्ठाचार में निपुण होए उसमें शालीनता व शिष्टाचार होए धर्मपथगामी हो।
उत्तम संतान की प्राप्ति हेतु व्यक्ति को चाहिए कि वह स्वयं संयमितए आदर्श व संस्कारित जीवन जिए। निरोगता बनाए रखे। आयुर्वेद में आया है. इस शरीर से ही सारे काम बनते हैं। शरीर नहीं है तो प्राणी कुछ भी क्रिया नहीं कर सकता। शरीर हैए लेकिन स्वस्थ नहीं है तो भी जीवन में रोचकता का अभाव रहता है। वह कोई भी काम बखूबी कर सकने में पूर्णतया सक्षम नहीं होता और उसके लिए यह संसार फीका लगता है।
मनोवैज्ञानिकों का कथन है.एक स्वस्थ दिमाग भी एक स्वस्थ शरीर में ही रहता है। निरोग रहना सबके लिए वांछनीय है। सभी माता.पिता चाहते हैं कि संतान निरोग होए वह महान बनकर अपनी महानता की रौशनी चतुर्दिक फैलाए। उनकी प्रत्याशा भी यही रहती है कि घर में ऐसा पुत्र अथवा पुत्री उत्पन्न हो जो उनके लिए तो सुख देने वाला हो हीए साथ.साथ वह ऐसा भी कुछ महान कार्य कर दिखाने वाला हो जिससे समाज व उसका राष्ट्र समुन्नत व रोशन हो उठे।
देवकी के यहां योगेश्वर श्रीकृष्ण पैदा हुए जिन्होंने गीता का ऐसा उपदेश दिया कि जिस किसी का भी इस गीता के ष्गीतष् पर जीवन टिक गयाए उसका अर्जुन की तरह मोह नष्ट हो गया। जिसने गीता को अपने आचरण में उतारा तो उसके जीवन में दुखों की निवृत्ति होने में देर न लगी। माता कौशल्या की कोख से श्रीरामचंद्र भगवान पैदा हुए जिन्होंने जीवन की अनूठी मर्यादा का पालन कर दिखाया। आज मनुष्य उस आदर्श मर्यादा का पालन करे तो एक गृहस्थी का जीवन भी भगवान राम की भांति प्रशंसनीय हो सकता है।
संस्कार बहुत मायने रखते हैं। संस्कार को ध्यान में रखते हुए संयम व शास्त्रोक्त जीवन जीते हुए प्रत्येक दम्पति अपने यहां संतान पैदा करे तो ऐसी पैदा करे जो बड़ा होकर या तो भगवान का भक्त बने या वह राष्ट्र की रक्षा करने वाला शूरवीर बने या फिर दूसरों की पीड़ा अपने ऊपर लेकर उन्हें अपने धन आदि से दीन.हीन की सहायता करने वाला दानी सज्जन बने। ऐसी संतान जिसमें यदि भगवान के प्रति कोई आस्था नहीं हैए राष्ट्र के प्रति कोई दायित्व की भावना नहीं है और किसी समाज में व्यक्ति के दुख.दर्द के प्रति कोई संवेदना नहीं हैए ऐसे निष्ठुर व कठोर हृदय वाले उत्पन्न पुत्र से किसी मां का पुत्रहीन रह जाना ही श्रेयस्कर कहा गया है।
अब प्रश्न यह भी उठता है कि उत्तम संतान पैदा करना क्या मनुष्य के वश की बात हैघ् शास्त्र संकेत करते हैं कि. हां। भगवत साधना व शास्त्रोक्त विधि.निषेध का विधिवत अनुष्ठान करके सत्यवर्ती दम्पति के द्वारा मनचाही संतान पैदा की जा सकती है। आज क्लोन की एक वैज्ञानिक तकनीक के माध्यम से पशुओं में इच्छित गुणों वाले शावक पैदा कर लिए गए हैंए तो शास्त्रों में भी ऐसे उदाहरण हैं कि यज्ञादि अनुष्ठानों के द्वारा अभिष्टों की प्राप्ति की जाती रही है। राजा दशरथ के संदर्भ में यहां ऐसा ही माना जाता है।
किसी मां के यहां दुर्गुणी बालक पैदा हो जाए तो वह मां एक बार तो ऐसा सोचे बगैर नहीं रहेगी.काश! ऐसे बच्चे को जन्म देने की अपेक्षा तो मेरा पुत्रहीन रहना ही ठीक था। अपने घर में रावणए दुर्योधनए कंस व हिरण्यकशिपु कोई भी नहीं पैदा करना चाहताए लेकिन ध्रुवए श्रवणए प्रह्लादए स्वामी दयानन्दए व कर्ण जैसे दानवीर व्यक्ति जिन्होंने समाज व राष्ट्र के लिए अपनी जान की बाजी लगा दी थीए ऐसे.ऐसे लाल सभी अपने घर में पैदा हुआ चाहते हैं।
जैसे रात्रि के घोर अंधकार को दूर करने के लिए अनन्त सितारों की अपेक्षा एक चंद्रमा का उदय श्रेष्ठ व उत्तम हैए ऐसे ही समाज में व्याप्त कुरीतियों व बुराई रूपी अंधकार के निराकरण हेतु हजारों बच्चे पैदा होने की अपेक्षा एक महान सपूत का पैदा होना उत्तम है।
SOURCE : DAINIKTRIBUNEONLINE.COM

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