विपक्ष की भूमिका का भी हो आकलन
केंद्र में भाजपा के नेतृत्व वाली ष्मोदी सरकारष् का एक साल पूरा हो चुका है। इसकी अब तक की सफलता.असफलता को गिनाने की कवायद जारी है। भाजपा अपने इस कार्यकाल की ष्उपलब्धियोंष् को गिनाने में लगी है और विपक्ष सरकार की ष्विफलताओंष् का लेखा.जोखा कर रहा है। वैसेए प्रधानमंत्री मोदी ने साल भर पहले ही कह दिया था कि अपने पांच वर्ष के शासन.काल में उनकी सरकार पहले ढाई साल में देश को पटरी पर लायेगी। वे दावा कर सकते हैं कि उनकी सरकार अभी इस काम में लगी है। फिर भीए साल भर पूरा होने पर किसी सरकार के कामकाज के लेखा.जोखा करने की एक परंपरा.सी है। सोए यह काम हो रहा है। लेकिनए इस प्रक्रिया में इस बात को नज़रअंदाज किया जा रहा है कि जहां नयी सरकार के कार्यकाल का एक साल पूरा हुआ हैए वहीं एक दशक के बाद कांग्रेस पार्टी को भी विपक्ष में बैठे हुए बारह महीने हो चुके हैं। यह अवसर विपक्ष की भूमिका के बारे में विचार करने का भी होना चाहिए। सवाल पूछा जाना चाहिए कि प्रमुख विपक्ष के रूप में इस दौरान कांग्रेस पार्टी ने क्या कुछ किया हैए और जो कुछ किया हैए क्या वह उन अपेक्षाओं पर खरा उतरती है जो किसी जागरूकए विवेकशील विपक्ष से की जानी चाहिएघ्इस प्रश्न का उत्तर तलाशने से पहले थोड़ा.सा विचार इस बात पर भी कर लिया जाना चाहिए कि जनतांत्रिक व्यवस्था में विपक्ष की भूमिका क्या होती है। चुनावों में जनता शासन करने के लिए किसी को चुनती हैए यह एक सर्वमान्य तथ्य है। और मान लिया जाता है कि जिसे मतदाता ने सत्ता के लायक नहीं माना हैए वह विपक्ष है। ग़लत नहीं है यह धारणा। लेकिन पूरी तरह सही भी नहीं है। चुनाव में पराजय का सीधा.सा मतलब मतदाता द्वारा नकारा जाना हैए या फिर यह भी माना जा सकता है कि मतदाता ने तुलनात्मक दृष्टि से किसी एक पक्ष को बेहतर माना है। इस दृष्टि से देखें तो जनता द्वारा नकारे जाने वालेए अथवा कम उपयुक्त पाये जाने वाले पक्ष की भूमिका कहीं ज़्यादा गंभीर लगने लगती है। और यदि इसी बात को इस रूप में समझें कि मतदाता ने किसी को नकारा नहीं हैए बल्कि विपक्ष में बैठने के लिए चुना है तो बात और अधिक साफ हो जाती है।
जनतांत्रिक व्यवस्था में जिस तरह निर्वाचित सरकार से मतदाता अपेक्षाएं करता हैए उसी तरह चुने हुए विपक्ष का भी कुछ दायित्व बन जाता है। विपक्ष का काम सरकार के कामकाज पर नज़र रखना होता है। इस नज़र रखने में नज़र सरकार की समूची रीति.नीति पर होनी चाहिए। जहां सरकार जनता के हित में कुछ अच्छा काम करती दिखेए वहां उसकी प्रशंसा होनी ही चाहिए। वैसेए सरकारें अपनी पीठ थपथपाने में माहिर होती हैंए इसलिए वे इस बात की ज्य़ादा चिंता नहीं करतीं कि विपक्ष उनके प्रति कितना उदार हैए पर इस बात की चिंता सरकारों को ज़रूर होनी चाहिए कि विपक्ष किन मुद्दों पर उनकी आलोचना कर रहा है। लेकिनए इसके लिए ज़रूरी यह भी है कि विपक्ष अपनी उस सकारात्मक भूमिका के प्रति निरंतर सजग रहे जिसकी एक जनतांत्रिक व्यवस्था में उससे अपेक्षा रहती है। जनतंत्र में विपक्ष की भूमिका विरोध के लिए विरोध करने की नहीं होती। सच बात तो यह है कि इस व्यवस्था में विपक्ष एक वैकल्पिक सरकार होती है। राष्ट्रीय.अंतरराष्ट्रीय मुद्दों पर विपक्ष की एक निश्चित समझ होनी चाहिए। यदि विपक्ष सरकार की किसी नीति की आलोचना करता है तो उसके पास एक वैकल्पिक नीति भी होनी चाहिए। यदि सरकार के काम करने का ढंग उसे ग़लत लगता है तो उसे मतदाता को यह भी बताना होगा कि उसकी दृष्टि में सही ढंग कौन.सा है। यह एक विशेष तरह की पहरेदारी है। दायित्वपूर्ण पहरेदारी। सिर्फ आलोचना करने के लिए नहींए सुधारने के लिए आलोचना करने वाली पहरेदारी।
सवाल उठता हैए इस एक साल में संसद मेंए और संसद के बाहर भीए कांग्रेस पार्टी ने विशिष्ट पहरेदारी वाली यह भूमिका कैसी निभायी हैघ् लोकसभा में कांग्रेस विपक्ष का सबसे बड़ा दल है। यह सही है कि उसे इतनी सीटें नहीं मिलीं जितनी संविधान के अनुसार अधिकृत विपक्षी दल को मिलनी चाहिएए पर इससे उसका दायित्व कम नहीं हो जाता। सरकार चाहती तो कम सीटों के बावजूद कांग्रेस को सदन में विपक्ष का नेता चुनने का अवसर दे सकती थीए लेकिन उसने वही किया जो इस संदर्भ में कांग्रेस की पिछली सरकारें करती रही थीं। ऐसा लगता हैए यहां नयी सरकार बेहतर उदाहरण प्रस्तुत कर सकती थी। लेकिन यदि उसने ऐसा करना उचित नहीं समझा तो इसके लिए उसे दोषी नहीं ठहराया जा सकता। बहरहालए आज की स्थिति यह है कि कांग्रेस सदन में विपक्ष में बैठा सबसे बड़ा दल हैए और एक बहुत लंबे अरसे तक शासन करने का एक अनुभव भी उसके पास है। इसलिएए एक ज़िम्मेदार विपक्ष के रूप में उससे अपेक्षाएं भी अधिक हैं। कितनी खरी उतरी है कांग्रेस इन अपेक्षाओं पर इस एक साल मेंघ्
इस दौरान संसद में कांग्रेस ने लगातार मुद्दे उठाये हैं। काफी शोर.शराबा भी किया है। एक लंबे मौन के बादए और एक लंबी छुट्टी के बादए कांग्रेस पार्टी के उपाध्यक्ष राहुल गांधी भी सदन में सक्रिय दिखाई दिये हैं। लेकिन यह सक्रियता आकर्षक जुमलों तक सीमित नहीं रहनी चाहिए। यह जुमले जनसभाओं में अच्छे लगते हैं। संसद में विपक्ष से ऐसे जुमलों से अधिक ठोस और सार्थक टिप्पणियों की अपेक्षा की जाती है। अपेक्षा की जाती है कि विपक्ष बताये कि सरकार कहांए कैसी ग़लती कर रही है। किसानों के मुद्दे पर संसद में और संसद के बाहर भी कांग्रेस ने जो भूमिका अपनायी हैए उसकी प्रशंसा की जानी चाहिए। लेकिन यह भूमिका सदन में शोर.शराबे अथवा सदन को ठप करने में यदि खो जाती है तो इससे किसानों का अहित तो होगा हीए जनतांत्रिक मूल्यों और व्यवस्था में अपेक्षित विश्वास मज़बूत होने का काम भी रुक जायेगा।
जनतंत्र में विपक्ष की भूमिका सरकार की भूमिका से कम महत्वपूर्ण नहीं होती। विपक्ष तो छाया मंत्रिमंडल बनाते हैं। वैकल्पिक नीतियां तैयार रखते हैं। जनतंत्र सफल तभी होता है जब इस तंत्र का हर पुर्जा अपना काम सही ढंग से करता है। विपक्ष एक बहुत ही महत्वपूर्ण पुर्जा है इस तंत्र का। कांग्रेस को इस बात को समझना भी है और प्रमाणित भी करना है। एक ज़िम्मेदार विपक्ष से यह अपेक्षा की जाती है कि वह निरंतर जागरूकता का परिचय देगाय ईमानदारी और कर्मठता के साथ सरकार की कमियों.ग़लतियों को उजागर करके उन्हें सही परिप्रेक्ष्य में रखेगा। व्यवस्था को पटरी पर लाने का काम सिर्फ सरकार का नहीं होताए जनतंत्र में विपक्ष को भी इस कार्य में पूरी निष्ठा के साथ जुटना होता है। कांग्रेस को यह निष्ठा प्रमाणित करनी है। अब सिर्फ चार साल बचे हैं उसके पास इस काम के लिए!
SOURCE : http://dainiktribuneonline.com/2015/05
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