जैसे को तैसा
एक बार ईश्वर चंद्र विद्यासागर एक अंग्रेज अधिकारी से मिलने गए। अंग्रेज अधिकारी न तो खड़ा हुआए न ही उसने उन्हें बैठने को कहा। वह मेज पर दोनों पैर पसारकर बातें करता रहा। ईश्वर चन्द्र उससे बातचीत कर चुपचाप लौट आए। कुछ दिनों बाद उसी अधिकारी को किसी काम के सिलसिले में उनसे मिलने उनके कार्यालय आना पड़ा। ईश्वर चन्द्र ने भी उसी प्रकार पैर मेज पर रख लिए। उसे बैठने तक के लिए नहीं कहा। अंग्रेज ने उनके इस व्यवहार की उच्च अधिकारियों से शिकायत की। ऐसे व्यवहार के बारे में पूछे जाने पर ईश्वर चन्द्र ने अफसोस करते हुए कहाकृओह! मैंने सोचा आप लोग इसी तरह से अतिथि सत्कार करते होंगे। मैं जब इनसे मिला था तो इन्होंने मुझे ऐसी ही सीख दी थी। यह सुन अंग्रेज अधिकारी को अपनी गलती का एहसास हो गया।
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