बदलेंगे राजनीतिक समीकरण
यह महज संयोग भी हो सकता है कि सिर्फ एक सप्ताह के अंदर ही दो ऐसे अदालती फैसले आये हैंए जो असरदार लोगों को कानूनी शिकंजे से राहत प्रदान करते हैं। हिट एंड रन मामले में सत्र न्यायालय द्वारा सुनायी गयी पांच साल की सजा स्थगित कर बांबे उच्च न्यायालय ने फिल्म अभिनेता सलमान खान को तात्कालिक राहत प्रदान की है तो कर्नाटक उच्च न्यायालय ने आय से अधिक संपत्ति मामले में तमिलनाडु की पूर्व मुख्यमंत्री जयललिता को बरी ही कर दिया है। जयललिता का मामला लगभग 19 साल पुराना था। कर्नाटक उच्च न्यायालय द्वारा सोमवार को सुनाये गये फैसले में जयललिता को बरी कर दिये जाने पर मुख्य आपत्ति तो विशेष लोक अभियोजक बीण्वीण् आचार्य ने ही उठायी है कि उन्हें मौखिक दलीलों के जरिये उच्च न्यायालय को समझाने का मौका ही नहीं दिया गया। सिर्फ 10 सेकंड में सुना दिये गये 919 पृष्ठ के इस फैसले में जयललिता और उनके तीन सहयोगियों को बरी करने का जो आधार बनाया गया हैए वह भी कम दिलचस्प नहीं है। फैसले में कहा गया है कि जयललिता की संपत्ति आय के स्रोतों से 8ण्12 प्रतिशत ही ज्यादा हैए जो स्वीकार्य 10 प्रतिशत से कम है। बेशक कर्नाटक सरकार या डॉण् सुब्रमण्यम स्वामी इस फैसले के विरुद्ध सर्वोच्च न्यायालय में अपील कर सकते हैंए लेकिन फिलहाल तो जयललिता अपनी अदालती विजय पर प्रसन्न हैं और अन्नाद्रमुक में जश्न का माहौल है।दरअसल अन्नाद्रमुक के लिए यह अदालती फैसला किसी संजीवनी से कम नहीं है। इसी मामले में निचली अदालत द्वारा गत वर्ष 27 सितंबर को सुनायी गयी सजा के बाद जयललिता को मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा था। अपने पुराने विश्वस्त पन्नीरसेलवम को उन्होंने दोबारा मुख्यमंत्री बनाया। अब जबकि जयललिता बरी हो गयी हैंए पांचवीं बार तमिलनाडु की मुख्यमंत्री बनना महज एक औपचारिकता होगी। जयललिता की यह अदालती जीत ज्यादा महत्वपूर्ण इसलिए भी है कि राज्य में अगले साल विधानसभा चुनाव होने हैं। उनके कानूनी शिकंजे में फंसे होने के चलते द्रमुकए कांग्रेस और भाजपाए सभी राजनीतिक दल मनसूबे बना रहे थेए लेकिन अब अन्नाद्रमुक को सहानुभूति का लाभ भी मिलना तय है। मुख्यमंत्री बनने के लिए जयललिता को उपचुनाव लड़कर विधानसभा सदस्य बनना होगाए लेकिन संभावना यह भी जतायी जा रही है कि ज्यादा से ज्यादा सहानुभूति पाने के लिए वह समय.पूर्व विधानसभा चुनाव का दांव भी चल सकती हैं। करुणानिधि की वृद्धावस्था और अंतर्कलह से त्रस्त द्रमुक उन्हें टक्कर देने की स्थिति में नहीं है तो अस्तित्व बचाने को संघर्षरत कांग्रेस और उपस्थिति दर्ज करवाने को बेचैन भाजपा से भी कोई खतरा नहीं है। फिर राज्यसभा में अल्पमत की मुश्किलों से जूझ रही भाजपानीत केंद्र सरकार तो अन्नाद्रमुक से मदद भी चाहेगीए जो कांग्रेस के बाद लोकसभा में दूसरा बड़ा विपक्षी दल है।
SOURCE : DAINIKTRIBUNEONLINE.COM
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