Thursday, 28 May 2015

चीन को आईना दिखा आये मोदी

चीन को आईना दिखा आये मोदी

चीन की यात्रा पर गए नरेंद्र मोदी के दौरे की समाप्ति पर 15 मई को दोनों देशों के प्रधानमंत्रियों ने संयुक्त प्रेस वार्ता को संबोधित किया थाए तब इसे दिखावे के तौर पर ज्यादा और न्यूनतम प्राप्ति वाली कवायद ठहराया गया था। हालांकि उसी दिन शाम को जारी की गई संयुक्त प्रेस विज्ञप्ति में कुछ ऐसे नए समीकरण बनने की बात कही गई थी जो पिछली लीक से हटकर थे। यह त्सीनहुआ यूनिवर्सिटी में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का संबोधन थाए जिसने इस यात्रा को ऐतिहासिक बना दिया।
मोदी की इस यात्रा से पहले चीनी नेताओं को भारतीय प्रधानमंत्रियों की बीजिंग यात्रा को लेकर यही ख्याल था कि वे आते हैं और केवल राजनयिक लालित्य पर जोर देने पर ही खुद को सीमित रखते हैं। यह पहली बार था कि किसी भारतीय प्रधानमंत्री ने चीन की धरती पर खड़े होकर बेधड़क और साफ शब्दों में चीनी नीतियों को लेकर भारत की मूल चिंताओं और शंकाओं से उन्हें अवगत करवाया है। यह साहस दिखाने की लिए उनकी प्रशंसा होनी चाहिए। यहां यह मानना भी उचित होगा कि अपनी यात्रा के पहले ही दिन नरेंद्र मोदी ने शिंयाग शहर में राष्ट्रपति शी जिनपिंग से हुई अपनी व्यक्तिगत मुलाकात में भी भारत की इन चिंताओं पर उनका ध्यान दिलवाया होगा।

खैरए यूनिवर्सिटी में छात्रों को अपने संबोधन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि ष्हमें सीमा विवाद के सवाल को जल्द से जल्द हल करना होगा३ सीमा क्षेत्र के इन संवेदनशील इलाकों पर सदा ही अनिश्चितता बनी रहती है३ क्योंकि दोनों देशों में कोई नहीं जानता कि वास्तविक नियंत्रण रेखा दरअसल है कहां३ यही वजह है कि मैंने प्रस्ताव किया है कि इसे स्पष्ट तौर पर निर्धारित करने की प्रक्रिया को फिर से शुरू किया जाए३ हमें अपने बीच उपजी उन समस्याओं का युक्तिपूर्ण हल निकालना होगा जिनकी वजह से हमारे बीच तनाव रहता है.फिर चाहे ये वीजा संबंधी नीतियां हों या फिर सीमा पार बहने वाली नदियों के पानी का बंटवारा हो३ हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि अन्य देशों से बनने वाले संबंध हमारे आपसी रिश्तों में चिंताओं का कारण न बनें३।ष् इसका मकसद चीनी नेतृत्व को यह याद दिलवाना था कि भारत को सीमित करने के फेर में वह पाकिस्तान से गठबंधन करके दूर तक न निकल जाए। प्रधानमंत्री ने यह भी भली.भांति जता दिया कि ष्दोनों में कोई एकए दूसरे को काबू करने की स्थिति में नहीं है।ष्
संयुक्त घोषणापत्र में भी कुछ नए बने समीकरण पहली बार सामने आए हैं जहां इस बात का जिक्र था कि ष्भारत और चीन इस इलाके और विश्व में मुख्य शक्तियों के रूप में एक ही समय में दुबारा उभर रहे हैं।ष् इसमें यह आह्वान भी किया गया है कि ष्एक.दूसरे की चिंताओंए हितों और आकांक्षाओं को आपसी आदर और संवेदनशीलता से लिया जाना चाहिए।ष् यह हमेशा महसूस किया जाता रहा है कि चीन भारत की चिंताओं से लापरवाह रहता है और इसीलिए चुस्त राजनयिक कौशल की जरूरत है ताकि संयुक्त घोषणापत्र में इन चिंताओं का जिक्र मुख्य रूप से हो सके।
पहले वाले संयुक्त घोषणापत्रों की तुलना में मौजूदा संयुक्त वक्तव्य में आश्चर्यजनक रूप से उस हल का जिक्र था जिसमें दोनों देशों के बीच अरसे से लंबित पड़े भूभागीय और सीमा विवाद को सुलझाने की बात कही गई है। दोनों देश इस ओर भी सहमत हुए हैं कि ष्सीमा के सवाल का शीघ्र हल दोनों देशों के हितों के लिए मूल रूप से सहायक है और इस सामरिक उद्देश्य को पाने के लिए दोनों सरकारों को सतत प्रयास जारी रखने चाहिए।ष् साथ ही दोनों देशों की इच्छा है कि ष्सीमा विवाद को सुलझाने के लिए अब तक की वार्ताओं के नतीजे और इनसे बनी आपसी सहमति के आधार पर ही किसी हल की रूपरेखा तय करने के लिए बातचीत के दौर आगे भी लगातार जारी रहने चाहिए ताकि इस समस्या का न्यायपूर्णए उचित और मंजूरशुदा हल जितना ज्यादा संभव हो सकेए उतना जल्द निकाला जा सके।ष् उम्मीद की जानी चाहिए कि आगे चलकर चीन 2005 में हुए उस समझौते से दुबारा नहीं फिर जाएगा जिसमें कहा गया था कि ष्सीमा विवाद का हल निकालने के लिए राजनीतिक स्तर पर और मार्गदर्शक सिद्धांतों पर सहमति बननी चाहिए।ष् मौजूदा समझौते की खास बात यह है कि इसमें कहा गया है कि ष्सीमा का निर्धारण एकदम स्पष्ट और साफ पहचाने जा सकने वाली प्राकृतिक एवं भौगोलिक निशानियों के आधार पर होना चाहिएष् और दोनों देश ष्सीमा निर्धारणष् करते वक्त ष्सीमा क्षेत्रष् में रहने वाली अपनी.अपनी आबादी के हितों की रक्षा सुनिश्चित करेंगे।ष् लेकिन ठीक इसी वक्त भारत के त्वांग पर अपना अधिकार जताते हुए चीनी प्रशासन ने 2005 में हुए समझौते से पहले वाले दिनों में लौटने का कारनामा कर दिखाया।
बाकी के संयुक्त समझौता पत्र में सीमा पर शांति बनाए रखनेए सैनिक स्तर पर परस्पर भरोसा कायम करनेए नियंत्रण रेखा पर तैनात सैनिक टुकडि़यों के बीच आपसी संवाद बनानेए सीमा के आरपार व्यापारिक गतिविधियां चलानेए व्यापार में आने वाली अड़चनें दूर करनेए रेलवे के क्षेत्र में आपसी सहयोगए दोनों देशों के नागरिकों के बीच व्यक्तिगत स्तर पर संबंध कायम करने और सांस्कृतिक आदान.प्रदान के अलावा अन्य क्षेत्रों जैसे कि अंतरिक्षए एटमी ऊर्जा के शांतिपूर्ण उपयोगए जन.स्वास्थ्यए मेडिकल शिक्षा और पारंपरिक इलाज पद्धति इत्यादि में नई संभावनाएं तलाशने का उल्लेख है। आंकड़ों की बात करें तो दोनों पक्षों ने 10 बिलियन डॉलर के समझौतों पर हस्ताक्षर किएए जिसमें चीन भारत के आधारभूत ढांचे का विकास करने के लिए निवेश करेगा। प्रधानमंत्री की मेक.इन.इंडिया मुहिम ने यह रंग दिखाया कि उनकी शंघाई यात्रा के दौरान व्यापारी.से.व्यापारी स्तर पर 822 बिलियन डॉलर मूल्य के सहमति पत्रों पर दस्तखत किए गए। फिर भी रस्मी आयोजनों के बावजूद चीन से भारत के रिश्ते जटिल बने हुए हैं।
दरअसलए चीन के लिए भारत को एशिया में बराबर की शक्ति मानना गवारा नहीं और उसकी यही कोशिश है कि हिंद महासागर के इलाके में भारत को किनारे पर स्थित एक देश की भांति ही बनाकर रखा जाए। अपनी वृहद सामरिक नीतियों को मूर्त रूप देने की खातिर चीनए भारत की घेराबंदी करने के लिए सावधानीपूर्वक बनायी गई योजना पर अमल कर रहा है। चीन द्वारा पाकिस्तान को एटमी हथियार ले जाने में सक्षम मिसाइलें और अन्य सैन्य साजो.सामान बनाने की तकनीक हस्तांतरण वाला गठजोड़ दक्षिण.पूर्व एशिया में अशांति का बड़ा कारण है। चीन के समर्थन के बिना पाकिस्तान के लिए यह किसी भी तरह संभव नहीं कि वह भारत के खिलाफ छद्म युद्ध चलाए रखे। लिहाजा यह एक तरह से चीन द्वारा भारत के खिलाफ चलाए जाने वाला छद्म युद्ध भी है। चीन ने पाकिस्तान को यह गारंटी दे रखी है कि वह उसकी भौगोलिक सार्वभौमता को अक्षुण्ण बनाए रखेगा। बीती 20.21 अप्रैल को पाकिस्तान की यात्रा पर गए चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने चीन.पाकिस्तान आर्थिक गलियारे के आधारभूत ढांचे को बनाने की खातिर 46 बिलियन डॉलर देने की बात कही हैए जिसमें चीन के शिनजियांग इलाके को पाकिस्तान के अरब सागर के किनारे स्थित ग्वादर बंदरगाह को सड़क मार्ग से जोड़ा जाएगा। वैसे तो गिलगित.बालटिस्तान में चीनी इंजीनियर और पीएलए के फौजी इस तथ्य के बावजूद पिछले एक दशक से ज्यादा मौजूद रहे हैं कि यह इलाका पाकिस्तान द्वारा कब्जाए गए कश्मीर में आता है।
प्रधानमंत्री ने यह एकदम सही किया है कि उन्होंने देश की मूल चिंताओं खासकर इलाकाई सार्वभौमिकता और इससे उपजी नाजुक सुरक्षा स्थिति से वहां के नेताओं को चेता दिया है। अब यह शी जिनपिंग पर निर्भर करता है कि वे इसका संज्ञान लें और इसकी खातिर चीन के रवैये में सुधार करें।
SOURCE : http://dainiktribuneonline.com/2015/05/

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