Monday, 25 May 2015

विचार के लिए सजा नहीं

विचार के लिए सजा नहीं

केरल हाईकोर्ट का यह फैसला गौर करने लायक है कि माओवादी होना अपने आप में कोई गुनाह नहीं है। श्याम बालाकृष्णन नाम के एक शख्स की ओर से दायर की गई रिट याचिका पर निर्णय सुनाते हुए अदालत ने माना कि माओवाद का राजनीतिक दर्शन हमारी संवैधानिक व्यवस्था से मेल नहीं खाताए लेकिन इसके बावजूद कोर्ट ने साफ किया कि विचारों की स्वतंत्रता और अंतरूकरण की मुक्ति हमारे प्राकृतिक अधिकार हैं। इसीलिएए जब तक कोई व्यक्ति गैरकानूनी गतिविधियों में लिप्त नहीं होताए महज विचारों के आधार पर उसे गिरफ्तार नहीं किया जा सकता।

अदालतों ने इससे पहले भी समय.समय पर ऐसी अनेक टिप्पणियां और फैसले दिए हैं। मगरए माओवाद से निपटने के नाम पर पुलिस और प्रशासन जिस तरह का गैरजिम्मेदार आचरण विभिन्न मामलों में दिखाते रहे हैंए उनमें कोई खास बदलाव अभी तक नहीं दिखा है। कबीर कला मंच और डॉण् विनायक सेन जैसे बहुचर्चित मामलों में अदालत की प्रतिकूल टिप्पणियां सुनने के बावजूद महाराष्ट्र पुलिस ने दिल्ली विश्वविद्यालय के एक जाने.माने प्रफेसर और शारीरिक तौर पर अशक्त ;90 फीसदी विकलांगता की श्रेणी में आने वालेद्ध जी एन साईबाबा को जिस तरह गिरफ्तार कियाए वह सकते में डाल देता है। नागपुर सेंट्रल जेल के अंडा सेल में बंद डॉण् साईंबाबा की गिरफ्तारी को एक साल से ऊपर हो चुका हैए फिर भी उन्हें जमानत नहीं मिली है। ऐसे में यह सवाल उठना लाजिमी है कि क्या हाईकोर्ट का यह फैसला पुलिस और प्रशासन के रवैये में बदलाव सुनिश्चित कर पाएगाघ्

सवाल यह भी है कि जब किसी को संदिग्ध माओवादी या माओवादियों का सिंपैथाइजर बताकर गिरफ्तार करने में पुलिस नहीं हिचकती तो उस पर गैरकानूनी गतिविधियों के दो.चार झूठे आरोप लगाने में उसे कितनी देर लगेगीघ् साफ है कि नागरिकों के मूलभूत अधिकार सुनिश्चित करने के लिए अभी काफी कुछ करना बाकी है। लेकिन इस फैसले की अहमियत से भी इनकार नहीं किया जा सकता। विचारों से किसी को माओवादी साबित करने के बाद अब पुलिस को यह भी बताना पड़ेगा कि संबंधित व्यक्ति माओवादियों की किस बैठक में शामिल था और किस गैरकानूनी कांड को अंजाम देने में उसने क्या भूमिका निभाई थी। हालांकि इस मामले में निर्णायक बदलाव अदालतें नहींए सरकार ही ला सकती है. अपने तंत्र को अधिक संवेदनशीलए जिम्मेदार और जवाबदेह बनाकर।
SOURCE : http://navbharattimes.indiatimes.com/other/opinion/editorial/articlelist

No comments:

Post a Comment