जानलेवा हादसों का सफर
मध्य प्रदेश के पन्ना जिले में दिल झकझोरने वाले भयावह बस हादसे ने एक बार फिर सड़कों पर दौड़ती मौत का सच सामने ला दिया है। इस हृदय विदारक घटना ने फिर चेताया है कि कब इन दुर्घटनाओं को गंभीरता से लिया जायेगाघ् यह एक अफसोसजनक सच है कि भारत में औसतन 14 लोग हर घंटे सड़क हादसों में जान गंवा रहे हैं। देश में हर साल करीब एक लाख बीस हजार से ज्यादा लोगों की सड़क दुर्घटनाओं में असामयिक मौत होती है। सभी तरह के सरकारी और गैर सरकारी आंकड़े बताते हैं कि हर साल सड़क हादसों में बढ़ोतरी ही हो रही है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक भारत सड़क हादसों में दुनिया का अग्रणी देश है। संयुक्त राष्ट्र संघ ने सर्वाधिक सड़क दुर्घटनाओं वाले जिन 10 देशों की पहचान की हैए उनमें भी भारत सबसे ऊपर है। आबादी के लिहाज से चीन भले ही दुनिया में पहले नंबर पर हो लेकिन सड़क दुर्घटनाओं में मौतों के मामले में भारत उससे भी आगे है। चीन में सड़क दुर्घटनाओं से होने वाली मौतों का आंकड़ा भारत में होने वाली मौतों से लगभग आधा है। हालांकि वैश्विक स्तर पर भी सड़क दुर्घटनाओं में वृद्धि हो रही है।
सड़क दुर्घटनाओं के लिए जिम्मेदार कारणों में बढ़ते वाहन तो बड़ी वजह हैं हीए देश के हर कोने में अतिक्रमण के कारण सड़कों के सिकुड़ने और यातायात के नियमों के पालन को लेकर अनदेखी और उदासीनता भी एक बड़ी वजह है। बीते कुछ सालों में वाहनों की संख्या शहरों में ही नहींए गांवों में भी बढ़ी है। यही वजह है कि देश के हर हिस्से में सड़क हादसों की संख्या में इज़ाफ़ा हुआ है। आंकड़े बताते हैं कि सड़क दुर्घटनाओं के चलते होने वाली 63 फीसदी मौतें राष्ट्रीय राजमार्गों पर होती हैं। सड़कों पर दौड़ते इन वाहनों की संख्या में होता इज़ाफ़ा न केवल ट्रैफिक और दुर्घटनाओं का कारण बन रहा है बल्कि इससे मानव स्वास्थ्य से जुड़ी नई चुनौतियां भी सामने आ रही हैं। जिनमें प्रदूषण जैसी जानलेवा समस्या भी शामिल है। यातायात नियमों को तोड़ने पर नाममात्र को जुर्माने की राशि और मृतकों के लिए मुआवजे के खेल ने इस समस्या की गम्भीरता को ही दबा दिया है।
यही वजह है भारत में सड़क हादसों की सालाना संख्या लाखों में पहुंच गई है। हमारे देश में इन दुर्घटनाओं के कारण अर्थव्यवस्था को मानव संसाधन के लिहाज से दो लाख करोड़ रुपये की सालाना हानि होती है। यह विचारणीय और चिंतनीय है कि भारत आज सड़क हादसों के कारण अपना सर्वाधिक जनधन गंवाने वाले देशों में दुनिया का अव्वल देश है।
एक ओर जहां सरकार का उदासीन रवैया इन हादसों की संख्या बढ़ा रहा है वहीं दूसरी ओर सड़क पर चलते हुए नियम. कायदों को ताक पर रखने की गैर जिम्मेदार सोच आमजन के व्यवहार में भी झलकती है। कुछ मामलों में किसी एक दुस्साहसी वाहन चालक की गलती का खमियाज़ा अन्य लोगों को भुगतना पड़ता है। यह कैसा विरोधाभास है कि जिस युवा शक्ति के बल पर भारत अपनी वैश्विक पहचान बनाने का सपना देख रहा हैए सड़क दुर्घटनाओं में उनकी भी एक बड़ी संख्या हर साल अपना जीवन गंवा रही है। गौरतलब है कि हमारे देश में हर साल 12 लाख 70 हजार से भी ज्यादा लोग इन दुर्घटनाओं में घायल होते हैं। इनमें 85 फीसदी 20 से 25 साल की उम्र के युवा होते हैं। रफ्तार के रोमांच और नियमों की अनदेखी करने वाले कितने ही युवा सड़क हादसों का शिकार बनते हैं। शराब पीकर और मोबाइल पर बतियाते हुए गाड़ी चलाने वालों के हादसे बताते हैं कि कई बार ये तो जानलेवा आपदायें इनसान ख़ुद आमंत्रित करता है।
सड़क हादसों की साल.दर.साल भयावह होती स्थिति के चलते ही सरकार ने बीते साल एक नया कानून बनाने की पहल की थी। गौरतलब है कि अंतरराष्ट्रीय सड़क संगठन ;आईआरएफद्ध कई सालों से भारत सरकार पर सड़क हादसों को लेकर मौजूदा हालातों को सुधारने के लिए दबाव बना रहा था। सड़क परिवहन मंत्रालय ने सुरक्षा को अहमियत देते हुए नए कानून सड़क परिवहन एवं सुरक्षा विधेयक 2014 के तहत लगभग दो दशक के इंतजार के बाद मोटर वाहन कानून में क्रांतिकारी बदलाव को गंभीरता से लिया।
हाल ही में सुप्रीमकोर्ट ने देश में बढ़ती सड़क दुर्घटनाओं पर गहरी चिंता जताई है। सुप्रीमकोर्ट ने सरकार और संसद से ये आग्रह किया है कि वे इस तरह के मामलों में दोषी की सज़ा बढ़ाने के लिए कानून में संशोधन करने पर विचार करें। उच्चतम न्यायालय का इन हादसों को लेकर संज्ञान लेना बताता है कि समस्या की भयावहता के प्रति सरकार और आमजन को जागरूक होना ही चाहिए। सड़क हादसों की लगातार गहराती समस्या को देखते हुए अब यातायात नियमों को लेकर सख्ती और भारी जुर्माने का प्रावधान किये जाने की ज़रूरत है।
आवश्यकता इस बात की भी है कि न केवल परिवहन का बुनियादी ढांचा बेहतर किया जाये बल्कि जन सामान्य को भी जागरूक और संवेदनशील बनाया जाये।
SOURCE : DAINIK TRIBUNE
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