Friday, 29 May 2015

इनसानी नादानी से उपजी तपिश

इनसानी नादानी से उपजी तपिश

मौसम
देश के कई इलाकों में गर्मी और लू कहर बरपा रही है। सूरज की तपिश से लोग अपने घरों में बैठने को मजबूर हैं लेकिन घरों में भी राहत नहीं। लगातार हो रही बिजली कटौती ने लोगों का जीना मुहाल कर रखा है। अनेक क्षेत्रों में अधिकतम तापमान के रिकार्ड टूट गये हैं। 45 डिग्री सेल्सियस और उससे अधिक तापमान के वे आंकड़े हैंए जो भीषण गर्मी में झुलस रहे मनुष्य पर ही सवाल खड़े कर रहे हैं। ये साबित कर रहे हैं कि पिछले दशकों में इनसान ने अपनी प्रकृति से जिस तरह का खिलवाड़ किया हैए आज उसी का नतीजा भोगने की नौबत आ गयी है।
एक ओर तेजी से बढ़ते वाहनों व उद्योगों से निकलने वाली हानिकारक गैसें लगातार वायुमंडल को दूषित कर रही हैंए वहीं दूसरी ओर कम हरियाली व कंक्रीट के बढ़ते दायरे तापमान बढ़ाने में आग में घी जैसा काम कर रहे हैं। आमतौर पर ठंडे माने जाने वाले पहाड़ भी गर्म हो रहे हैं क्योंकि पहाडों पर अंधाधुंध वृक्ष कट रहे हैं जिससे हरियाली को बडा आघात पहुंचा है। पहाड़ी इलाके के बूढ़े.बुजुर्गों से बात करने पर मालूम चलता है कि आज से कुछ वर्षों पहले चारों तरफ हरियाली थी। थोड़ी भी गर्मी बढ़ती थी तो शाम तक बारिश हो जाती और फिर से मौसम सुहाना हो जाता था। परए अब ऐसा नहीं होता। पहाड़ी इलाकों में भी मैदानी इलाकों की तरह कड़ाके की गर्मी पड़ने लगी है। चिलचिलाती धूप ने सबको बेहाल कर दिया है।
अब कितनी भी गर्मी बढ़ेए बारिश नहीं होती। कंक्रीट क्षेत्र जरूरत से अधिक बढ़ने से वायुमंडलीय वातावरण को क्षति पहुंची है। यूं तो यह वैश्विक स्तर की समस्या है। तापमान वैश्विक स्तर पर बढ़ रहा है। नासा के अर्थ आब्जर्वेटरी के अनुसार पिछले पचास सालों के अंतराल में वैश्विक तापमान में औसतन 0ण्9 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि हुई है लेकिन इसके लिए स्वयं इनसान ही जिम्मेदार है।
मनुष्य वातानुकूलित जीवनशैली के लिए तैयार है लेकिन उसकी प्रकृति को संवारने की मानसिकता नहीं है। अब पेड़.पौधेए फूल.पत्ती आदि उसके जीवन का हिस्सा नहीं हैं। वह किसी भी कीमत पर आरामदायक जीवनशैली चाहता हैए जिसकी कीमत प्रकृति को चुकानी पड़ती है। अनेक इलाकों में पीने का पानी नहीं है। अनेक क्षेत्रों में बिजली नहीं है। मगर जीने के लिए विकल्प भी तैयार हैं और जीवन की गाड़ी आगे बढ़ रही है। किंतु इस किस्म का प्रवाह स्वस्थ वातावरण को खोकर अप्राकृतिक रूप से उपलब्ध कराया जा रहा हैए जिसको लेकर कोई भी गंभीर नहीं है। यहां तक कि इस बार मानसून के आगमन में देरी होने के बावजूद चिंता का वातावरण दिखाई नहीं दे रहा है। पानीए बिजली जैसी समस्याओं के लिए लोग हंगामा कर रहे हैं लेकिन प्राकृतिक संसाधनों से जुड़ी समस्याओं को जड़ से समझने के लिए पर्यावरण को पहले समझना अधिक जरूरी है। उसके बाद लगातार प्रकृति के साथ हो रहे खिलवाड़ को रोकना जरूरी है। तभी गर्मी की चिंता और चर्चा का कोई अर्थ हो सकता है। वरना तेज विकास और बढ़ती आबादी के बीच समस्याओं का दोष किसी और को देने की बजाय स्वयं को देना होगा क्योंकि अब प्रकृति कमजोर ही नहींए बल्कि मजबूर भी हो चली है।
मौसम को इस तरह तबाह करने के पीछे सीधे तौर पर आम से लेकर खास लोग सभी ही जिम्मेदार हैं। बड़े लोगों के घर एसी समेत तमाम आधुनिक सुविधाओं से लैस हैंए मरन तो आम आदमी का है। गरीब आदमी को इस भीषण गर्मी में पीने के पानी तक के लिए जद्दोजहद करनी पड़ रही है। अब ले.देकर भीषण गर्मी से राहत दिलाने के लिए मानसून का बेसब्री से इंतजार किया जा रहा है।
यह सब जानते हैं कि बढ़ती गर्मी की वजह क्या हैए लेकिन उससे आंखें चुराई जाती हैं। मानव कितना भी तरक्की के दावे करेए लेकिन प्रकृति के आगे वह हमेशा बेबस रहा है। यही वजह है कि झुलसा देने वाली गर्मी से पार पाने की सभी कोशिशें नाकाम रही हैं। जब पारा 45 डिग्री सेल्सियस से लेकर 48 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच रहा है तो समझा जा सकता है कि गर्मी की प्रचंडता कितनी होगी। ऐसे विकट हालात हमें यह सोचने के लिए भी मजबूर करते हैं कि आखिर गर्मी की इस प्रचंडता की वजह क्या हैघ् हर विश्व पर्यावरण दिवस पर पर्यावरण को होने वाले नुकसान से मौसम में बदलाव होने की बातें की गईं। पर्यावरणविद‍् लगातार चेता रहे हैं कि प्रकृति से छेड़छाड़ बंद नहीं की गई तो दुनिया को और भी बुरे दिन देखने पड़ सकते हैं।
जंगलों का दोहन लगातार जारी है। हाईवे बनाने के लिए लाखों पेड़ काट डाले गएए लेकिन उनकी जगह सैकड़ों पेड़ भी नहीं लगाए गए। हाइवे से पेड़ काटने के बाद उन्हें लगाना सरकार की जिम्मेदारी हैए लेकिन वह कहीं से भी गंभीर नजर नहीं आती।
ग्लोबल वार्मिंग के खतरे को देखते हुए दुनिया की सभी सरकारों को चेतने की जरूरत है। वह विकास लगातार जारी हैए जिसमें मानव जाति का विनाश छिपा है।
SOURCE : http://dainiktribuneonline.com/

No comments:

Post a Comment