Friday, 22 May 2015

इस शहरीकरण की कीमत भी समझिए

इस शहरीकरण की कीमत भी समझिए

हम जिस दुनिया को आज देख.सुन पा रहे हैंए उसमें शहरीकरण एक बड़ा पहलू है। सिर्फ भारत में नहींए अमेरिकाए ब्रिटेनए ऑस्ट्रेलिया जैसे विकसित देशों में भी शहरीकरण के नए से नए चेहरे अब तक सामने आ रहे हैं। जैसेए हाल में ब्रिटेन में एक नया अध्ययन सामने आया हैए जिसमें बिजली की राशनिंग की बात कही गई है। जिस किस्म का आक्रामक शहरीकरण हमारे देश में भी हो रहा हैए बहुत मुमकिन है कि ऐसे सुझाव यहां भी जल्द ही दिए जाने लगेंगे।
ब्रिटेन में हुए एक अध्ययन में कहा गया है कि वर्ष 2035 तक वहां इंटरनेट का इस्तेमाल ही देश में उत्पादित समस्त बिजली का उपभोग करने लगेगा। हालांकि यह 20 साल बाद की बात हैए लेकिन वहां अभी ही 8 से 16 फीसदी बिजली की खपत इंटरनेट की वेबसाइटें चलाए रखने में हो रही है। इस समस्या को देखते हुए ब्रिटेन में सुझाव दिया गया है कि क्यों न अब बिजली की राशनिंग प्रणाली शुरू कर दी जाए। समस्या अकेले ब्रिटेन की नहीं हैए फिलहाल गरीब या विकासशील माने जा रहे भारत में भी ऐसा ही संकट उठ खड़ा होने को है। यह समस्या है बढ़ते शहरीकरण की।
आज स्थिति यह है कि हमारे देश में हर कोई चाहता है कि शहरों का मौजूदा चेहरा बदले। उनमें सुधार होकृइसके वास्ते उन्हें स्मार्ट सिटी का दर्जा दिलाने की होड़ है। वकालत हो रही है कि ऐसे शहरों में मेट्रो रेलए शॉपिंग मॉलए एम्यूजमेंट पार्क और मल्टीप्लेक्सों के साथ हर वह चीज उपलब्ध होए जो उन्हें अत्याधुनिक बनाती है। इस लिहाज से दिल्ली से लेकर देहरादून तक में शॉपिंग मॉल्स का खुलना एक बड़ी उपलब्धि है। कहा जाता है कि शॉपिंग मॉल लोगों को सिर्फ खरीददारी के लिए नहीं उकसाते हैंए बल्कि रोजगारों का सृजन भी करते हैं। पर ये शॉपिंग मॉल किस तरह देश के उपयोगी संसाधनों की बर्बादी का कारण भी बन रहे हैंए इसका एक संकेत पिछले साल जूनए 2014 में दिल्ली के उपराज्यपाल नजीब जंग के एक फैसले से मिल गया था।
तत्काल प्रभाव से लागू किए गए उनके एक आदेश के तहत तय किया गया था कि दिल्ली के शॉपिंग मॉल्स को रात 10 बजे के बाद बिजली नहीं मिलेगी। यह बिजली संकट से निपटने की दिशा में एक छोटा और सांकेतिक उपाय जरूर था पर इससे एक बड़ी समस्या की तरफ नजर गई है। समस्या है शॉपिंग मॉल्स में खर्च या कहें कि बर्बाद होने वाली उस बेशकीमती बिजली कीए जिसकी देश के छोटे शहरोंए कस्बोंए गांवोंए खेतों व कारखानों को ज्यादा जरूरत है और जहां बिजली कटौती लगातार चलने वाला एक उपक्रम बन गया है।
शॉपिंग मॉल्स में बिजली के इस्तेमाल की तीन प्रमुख वजहें हैं। एकए वहां ज्यादा से ज्यादा लोगों की आमदरफ्तए दो.मॉल खुले रहने की अवधि और तीन. उस कारोबार की प्रकृति जो वहां होता है। कई बार लोगबाग वहां खरीददारी करने की बजाय सिर्फ समय काटने के लिए जाते हैंए पर मॉल के हर कोने में मौजूद दुकान में पर्याप्त रोशनी और एयरकंडीशनिंग की व्यवस्था रखनी पड़ती है। इसके अलावा गलियारों को रोशन रखनेए पार्किंग और बाहरी सजावट पर भी शॉपिंग मॉल में बहुत ज्यादा बिजली का इस्तेमाल होता है जो कि एक आम दुकान में नहीं होता।
शॉपिंग मॉल किसी आम बिल्डिंग के मुकाबले कितनी अधिक बिजली खाते हैंए इसे लेकर अंतरराष्ट्रीय पर्यावरण संस्था. ग्रीनपीस ने वर्ष 2013 में चीन में एक तुलनात्मक अध्ययन किया था। ग्रीनपीस ने 236 व्यावसायिक इमारतों में बिजली की खपत की तुलना की और पाया कि एक औसत शॉपिंग मॉल में प्रति घंटे 658 किलोवॉट बिजली की खपत प्रति वर्गमीटर के दायरे में होती है। यह खपत चीन के ताई.कोकत्सुई नामक शहर में स्थित ओलंपियन सिटी वन में इस्तेमाल होने वाली बिजली के मुकाबले 13 गुना अधिक थी। औसत यह है कि 300 मेगावॉट बिजली उत्पादन करने वाले प्लांट की सारी बिजली एक बड़े शॉपिंग मॉल में ही खर्च हो जाती है।
उल्लेखनीय है कि वर्ष 2013 के मई माह तक देश में 570 शॉपिंग मॉल चालू हालत में थेए जबकि सात साल पहले तक ऐसे मॉल्स की संख्या आधे से कम यानी 225 थी। यह आंकड़ा वर्ष 2013 में एक रीयल एस्टेट कंसल्टेंसी फर्म के अध्ययन से सामने आया था। हालांकि ये आंकड़े इन मायनों में आश्वस्तकारी कहे गए थे कि चहुंओर छाई मंदी और खास तौर से रीयल एस्टेट सेक्टर में कायम कुहासे के बावजूद कहीं तो भूसंपत्ति की जबरदस्त मांग बनी हुई है।
शॉपिंग मॉल्स का तेज विस्तार साबित करता है कि 90 के दशक में जिस आर्थिक उदारीकरण की शुरुआत हुई थीए उसके असर से शहरी मध्यवर्ग के जीवन मेंए रहन.सहन में और कामकाज में काफी परिवर्तन हो गया है। अब शहरी कामकाजी तबका पूरे हफ्ते अपने दफ्तर और बिजनेस में मेहनत करने के बाद कमाए हुए पैसे को परिवार के साथ घूमने.फिरने और खरीददारी में खर्च करना चाहता है।

पर शॉपिंग मॉल के रूप में दिखने वाली चकाचौंध का सिर्फ एक पहलू है। दूसरा पहलू वह है जिसमें शॉपिंग मॉल एक बड़े विलेन के रूप में नजर आते हैं और संसाधनों पर डाका डालते हैं। जैसेए यह देखा जा रहा है कि जिन शहरी इलाकों में कोई बड़ा शॉपिंग मॉल खुल जाता हैंए वहां दशकों से बिजनेस कर रहे छोटे.छोटे सैकड़ों दुकानदारों का कामधंधा ठप हो जाता है। न तो इन छोटी दुकानों पर अब पहले की तरह ग्राहक आते हैं और न ही उन दुकानों में काम करने वाले कम पढ़े.लिखे लोग मिलते हैं जो शॉपिंग मॉल के मुकाबले कम मजदूरी पर वहां काम किया करते थे। यह सवाल अब जोरशोर से उठेगा कि जिस मात्रा में शॉपिंग मॉल में बिजली.पानी का खर्च होता हैए उसके अनुसार हरेक मॉल के लिए इतनी अधिक बिजली और पानी कहां से आएगाघ्
पैसा बनाने की मुहिम में जुटे लोगों ने शॉपिंग मॉल्स जैसी चीजें बनाकर अपनी जेबें तुरत.फुरत भरने का नुस्खा तो सीख लिया हैए पर वे इस ओर से बिल्कुल बेपरवाह हैं कि उनका निर्माण किसी का अहित करने वाला तो नहीं है। दिल्ली हो या मुंबईए आलीशान इमारतों का निर्माण वहां जोरों पर है। उन भव्य भवनों के चलते हजारों लोगों की रोजी.रोटी छिन गई है और बिजली.पानी जैसे संसाधनों पर बेवजह भारी बोझ पड़ गया है।
शॉपिंग मॉल्स के बनने और बढ़ने की यदि यही रफ्तार रहीए तो आने वाले वक्त में हजारों रोजगारों का संकट और बिजली.पानी जैसे संसाधनों की सर्वत्र कमी एक बड़ी त्रासदी के रूप में देश में उपस्थित हो सकती है।
SOURCE: DAINIKTRIBUNEONLINE.COM

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