Thursday, 21 May 2015

दोमुंही सियासत

दोमुंही सियासत

दिल्ली की केजरीवाल सरकार और केंद्र के बीच टकराव रुकने का नाम नहीं ले रहा। ताजा विवाद कार्यवाहक मुख्य सचिव की नियुक्ति को लेकर है। राज्य सरकार के न चाहते हुए भी लेफ्टिनेंट गवर्नर ;एलजीद्ध नजीब जंग ने इस पद पर शकुंतला गैमलिन को नियुक्त कर दिया। जब राज्य सरकार ने इस फैसले पर आपत्ति जताई और गैमलिन के कामकाज को लेकर टिप्पणी की तो केंद्रीय गृह राज्य मंत्री किरन रिजिजू ने इसे नॉर्थ ईस्ट के लोगों का अपमान बता दिया। साफ लग रहा है कि केंद्र सरकार अपने फैसले को स्टेट गवर्नमेंट पर थोपने की कोशिश कर रही है और चाहती है कि मुख्यमंत्री और उनके सहयोगी चुपचाप इसे स्वीकार कर लें। देश की प्रमुख विपक्षी पार्टियों ने केंद्र के इस रवैये पर सवाल उठाए हैं।

दिल्ली प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अजय माकन ने साफ कहा कि मुख्य सचिव की नियुक्ति मुख्यमंत्री की मर्जी से ही होनी चाहिए। सीपीएम के महासचिव सीताराम येचुरी ने भी केंद्र द्वारा राज्य सरकार के अधिकारों के अतिक्रमण का विरोध किया। और तो औरए खुद बीजेपी भी हमेशा स्वयं को एक संघवादी पार्टी बताती है और राज्य सरकारों के अधिकार सुरक्षित रखने की वकालत करती रही है। लेकिन बात क्या हैए जो केंद्र की सत्ता संभालते ही वह संघीय शिष्टाचार की सारी सीमाएं पार करते हुए एक राज्य सरकार को अपमानित करने में जुट गई हैघ् इसे पार्टी का दोमुंहा रवैया नहीं तो और क्या कहेंगेघ् यही नहींए वह तो दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा देने की भी पुरजोर वकालत करती रही है। लेकिन उसका अभी का व्यवहार बताता है कि वह दिल्ली में सिर्फ और सिर्फ एक कठपुतली सरकार ही चाहती है।

जब भी अधिकारों की बात आती हैए लेफ्टिनेंट गवर्नर जीएनसीटीडी एक्टए 1991 का हवाला देने लगते हैं कि उन्हें अमुक.अमुक अधिकार प्राप्त हैं। लेकिन कानून के शब्दों के बजाय उसमें निहित भावों को देखने की कोई जरूरत वे नहीं महसूस करते। सत्ता का विकेंद्रीकरण और जनता की व्यापक भागीदारी हमारे संविधान की बुनियाद है। दिल्ली को राज्य का दर्जा देने का फैसला इसकी बढ़ती आबादी और इससे पैदा होने वाली सामाजिक.आर्थिक चुनौतियों को ध्यान में रखकर किया गया थाए ताकि यहां की प्रशासनिक प्रक्रिया में जनता की भागीदारी सुनिश्चित की जा सके। सिर्फ इसकी संवेदनशील स्थिति के कारण कानून.व्यवस्था और जमीन के मामले दिल्ली सरकार को नहीं सौंपे गए।

केंद्र दिल्ली पर अपना नियंत्रण लेफ्टिनेंट गवर्नर के जरिए सुनिश्चित करता हैए लेकिन मौजूदा केंद्र सरकार इस व्यवस्था को जिस हद तक खींच रही हैए उसे देखते हुए लगता नहीं कि यह ज्यादा दिन चलने वाली है। आज दिल्ली कई मामलों में पूर्ण राज्यों से आगे है। एलजी को अधिकार इसलिए नहीं मिले हैं कि वे एक निर्वाचित राज्य सरकार को अपनी ताकत का अहसास कराते रहें। उन्हें यह जिम्मेदारी इसलिए मिली हैए ताकि कुछ असाधारण स्थितियों में ठीक एक अभिभावक की तरह वे जनता के हितों की रक्षा कर सकें। केंद्र की बीजेपी सरकार अगर ऐसा सोचती है कि यह सब करके वह अरविंद केजरीवाल की ढिबरी टाइट कर देगी तो यह उसकी बहुत बड़ी गलती है।
SOURCE : navbharattimes.com

No comments:

Post a Comment