कैमरन की चुनौतियां
ब्रिटेन में जनादेश दोबारा कंजरवेटिव पार्टी के पक्ष में आया है। पिछली बार उसने गठबंधन सरकार बनाई थीए इस बार अकेले दम पर बना सकती है। प्रधानमंत्री डैविड कैमरन फिर से सत्ता संभालने जा रहे हैं। साफ है कि हेल्थ पॉलिसीए टैक्स या माइग्रैंट पॉलिसी पर उनके स्टैंड को अधिकतर लोगों ने अपना समर्थन दिया है। ब्रिटेन के यूरोपीय संघ छोड़ने को लेकर जनमत संग्रह करवाने के उनके प्रस्ताव को भी जनता ने गंभीरता से लिया है।
लेबर पार्टी इसका विरोध करती रही हैए इस कारण लोगों ने उसे नकार दिया। जाहिर हैए प्रधानमंत्री के सामने सबसे बड़ी चुनौती यही आने वाली है। उन्होंने वादा किया है कि 2017 के अंत तक जनमत संग्रह करवाएंगे। हालांकि वे ब्रिटेन की यूरोपीय संघ में मौजूदगी के कट्टर विरोधी नहीं हैं। उनका कहना है कि वे अपने देश को इस संघ में देखना चाहते हैंए लेकिन जनमत संग्रह के बाद। असल में कैमरन सदस्य देशों के राष्ट्रीय हितों में ईयू का दखल कम से कम चाहते हैं। ब्रिटेन के ईयू से बाहर निकलने पर यूरोप का शक्ति संतुलन गड़बड़ा जाएगा। आखिर ब्रिटेन जी.7 का एक ताकतवर सदस्य है। वह संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का स्थायी सदस्य और एक नाभिकीय शक्ति भी है।
दूसरी तरफ अलग होने पर ब्रिटेन को निर्यात में करीब 400 अरब यूरो का नुकसान हो सकता है। ईयू से अलगाव के अलावा इस चुनाव में एक लड़ाई ब्रिटेन से ही अलग होने को लेकर भी चली है। स्कॉटिश नैशनल पार्टी ;एसएनपीद्ध को मिली जबर्दस्त सफलता इस चुनाव का बेहद अहम पहलू है। इसने स्कॉटलैंड की 59 में से 56 सीटों पर बाजी मारी है। एसएनपी की जीत में भारतीयों की भी खासी भूमिका है। दरअसल पार्टी का एक बड़ा अजेंडा था. स्कॉटिश युनिवर्सिटीज में भारतीय छात्रों की वापसी। एसएनपी स्कॉटलैंड की स्वतंत्रता की मांग को लेकर शुरू से आक्रामक रही है। नौ महीने पहले स्कॉटलैंड के ऐतिहासिक जनमत संग्रह में जनता ने 45 के मुकाबले 55 फीसदी के समर्थन से यूके का हिस्सा बने रहने का निर्णय लिया था।
इसलिए इतने कम समय में एसएनपी को मिले अपार जन समर्थन पर सबको आश्चर्य हो रहा है। जाहिर हैए एसएनपी से निपटना कैमरन के लिए आसान नहीं होगा। हालांकि उन्होंने स्कॉटलैंड और वेल्स को तत्काल शक्ति हस्तांतरण करने का वादा किया है। एसएनपी को मिली बढ़त के पीछे बड़ा कारण यह है कि स्कॉट जनता वेस्टमिंस्टर मॉडल को संदेह से देखती है। उसे यह भी लगता है कि उत्तरी सागर से निकलने वाले तेल की सारी कमाई ढोकर लंदन ले जाई जा रही है। अगर जनमत संग्रह हुआ और ब्रिटेन ने ईयू से निकलने का फैसला किया तो स्कॉटलैंड पक्के तौर पर उससे अलग हो सकता है। ऐसे में देखना हैए कैमरन अंदर.बाहर ब्रिटेन के हितों को किस तरह सुरक्षित रख पाते हैं।
SOURCE : navbharattimes.com
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