मीडिया का बड़बोलापन
भारतीय टीवी न्यूज चैनलों के सतहीए सनसनीबाज रवैये पर देश में भी सवाल उठते रहते हैं। लिहाजा वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम डे पर हैशटैग के साथ नेपाली टिप्पणी श्गो होम इंडियन मीडियाश् ट्विटर पर पूरी दुनिया में ट्रेंड करती रही तो इसे लेकर ज्यादा दुखी होने की जरूरत नहीं है। भारत में छोटे पर्दे पर चलने वाली खबरों का हाल बुरा हैए लेकिन बाकी दुनिया में भी यह खास अच्छा नहीं है।
संवेदनशीलता इस मीडियम की विशेषता नहीं हैए हालांकि समय बीतने के साथ कामकाज में थोड़ा पक्कापन आने की उम्मीद जरूर की जाती है। चिंता की बात दूसरी हैए जिस पर अमल तो दूरए फिलहाल कोई सोचने को भी राजी नहीं है। भारत छोटे.छोटे पड़ोसियों से घिरा एक विशाल देश है। यह भौगोलिक स्थिति भारतीय कूटनीति के लिए एक स्थायी समस्या बनी रहती है। कोई पड़ोसी देश मुश्किल में पड़ जाए और आप आगे बढ़कर उसकी मदद न करें तो पूरी दुनिया आपकी लानत.मलामत पर उतारू हो जाती है। और अगर मदद करने में आपने ज्यादा उत्साह दिखा दिया तो संबंधित देश को लगता है कि उसकी अपनी तो कोई औकात ही नहीं बची।नेपाल को लें तो पिछले पंद्रह वर्षों में वहां भारत विरोधी हिंसक प्रदर्शन ऐसे विचित्र.विचित्र मुद्दों पर भड़क उठे हैं कि सामान्य स्थितियों में उनका जिक्र भी झेंप पैदा करता है। एक बार तो वहां हृतिक रोशन के एक ऐसे श्बयानश् पर सैकड़ों दुकानें फूंक दी गई थींए जो उन्होंने दिया भी नहीं था! श्भारत का वर्चस्ववादी षड्यंत्रश् वहां हर चुनाव में मुद्दा बना रहता है। ऐसे में हमारे राजनेताओं और राजनयिकों के लिए अच्छा यही होता है कि वे ज्यादा से ज्यादा काम करें और कम से कम बोलें. जैसा उनके चीनी जोड़ीदार किया करते हैं।लेकिन दुर्भाग्यवशए ज्यादा बोलना अभी भारतीय राजनीति में सफलता का पर्याय बना हुआ हैए जिसके चलते भारतीय मीडिया ही नहींए हर समर्थ व्यक्ति को श्ओवर द टॉपश् होनेए देसी जुबान में कहें तो छत पर चढ़कर बांग देने का लाइसेंस मिल गया है। भारतीय सुरक्षा बलों और राहत कर्मियों ने नेपाल में इतना अच्छा काम किया है। उनका सारा किया.धरा मिट्टी में न मिल जाएए इसके लिए अपनी आवाज और चेहरे पर मुग्ध लोगों से निवेदन है कि कृपया संयत रहें।
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