यह कैसी अभिव्यक्ति
अमेरिकी शहर गारलैंड में पैगंबर मोहम्मद साहब का कार्टून बनाने की प्रतियोगिता किसी बड़े बवाल को न्योता देने जैसी ही थी। गनीमत रही कि बवाल उतना बड़ा नहीं हुआ। दो हथियारबंद लोगए जिनके बारे में कहा जा रहा है कि आतंकवादी संगठनों से संपर्क को लेकर कई सालों से उनपर नजर रखी जा रही थीए प्रतियोगिता स्थल से बाहर सुरक्षाकर्मियों के हमले में मारे गए और उनकी गोली से एक सुरक्षाकर्मी घायल हो गया।
यूरोप और अमेरिका में कुछ श्समझदार लोगश् इस तरह की कार्टूनिंग को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का बहुत जरूरी हिस्सा बता रहे हैंए हालांकि इनके दावे से सहमत लोगों की तादाद बहुत बड़ी नहीं है। स्वतंत्रता क्या हैए इसका दायरा कहां तक होना चाहिएए इस बारे में पिछले दो.तीन सौ वर्षों में काफी बहस की जा चुकी है। आम समझ यह है कि आपको अपनी छड़ी वहीं तक घुमाने की स्वतंत्रता हैए जहां यह मेरी नाक को नहीं छूती। दुनिया में ऐसा एक भी उदाहरण मौजूद नहीं हैए जहां आम इस्लामी दायरे में ईसा मसीह या किसी अन्य आस्था से जुड़े दैवी व्यक्तित्व का मजाक उड़ानेए उसे नीचा दिखाने की कोशिश की गई हो।
यह बहुत बड़ा दुर्भाग्य है कि कई धर्मांध कट्टर संगठन अभी खुद को इस्लाम का प्रतिनिधि बताते हुए दुनिया के परेशानहाल इलाकों में फल.फूल रहे हैं। लेकिन ये संगठन और इनसे जुड़े लोग सबसे ज्यादा नुकसान भी आम मुसलमानों को ही पहुंचा रहे हैं। बड़े धरातल पर देखें तो यह इस्लाम के भीतर की वैचारिक लड़ाई हैए जो पिछले चालीस वर्षों में अमेरिका द्वारा उदार मुसलमानों के खिलाफ कट्टर मुस्लिम सरकारों और संगठनों को खुला समर्थन दिए जाने के चलते बिल्कुल एकतरफा हो गई है।
हालत यह है कि मुसलमान कहते ही आज लोगों को एक निर्दोष व्यक्ति का सिर काटता हुआ हत्यारा श्जिहादीश् ध्यान में आता हैए मिर्जा गालिब और मुल्ला नसरुद्दीन से लेकर एआर रहमान और शाहरुख खान तक का चेहरा याद नहीं आता। बड़ी.बड़ी बातें करने वालों को यह याद दिलाना जरूरी है कि दुनिया में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता सभी धर्मों के उदार तत्वों को बढ़ावा देकर या लोगों को धर्म से हटकर सोचने के लिए तैयार करके ही हासिल की जाएगीए किसी आस्था केंद्र या महापुरुष की बेइज्जती करके नहीं।
SOURCE : NAVBHARAT TIMES
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