Tuesday, 26 May 2015

बेचैन देश की आकांक्षाओं का बोझ

बेचैन देश की आकांक्षाओं का बोझ

यहां कुछ उन सत्ताधीशों का जिक्र जरूरी हैए जो भारी बहुमत से सत्ता में आयेए जिन पर जन.अपेक्षाओं का भारी बोझ रहा। वर्ष 1984 में जब राजीव गांधी अप्रत्याशित रूप से तीन.चौथाई बहुमत के साथ सत्ता में आये तब भी जनता की अपेक्षाएंंंं उफान पर थीं। एक.चौथाई सदी के बाद जब नरेंद्र मोदीए जो राजीव गांधी के बाद पूर्ण बहुमत से सत्ता में आये तो उन पर भी अपेक्षाओं का बोझ उसी तरह था। वे इस लुभावने नारे कि ष्अच्छे दिन आने वाले३ष् के साथ आगे बढ़े थे। अब जबकि उनके कार्यकाल का एक वर्ष पूरा हुआ है तो लोग अक्सर व्यंग्यात्मक भाषा में पूछते हैं कि क्या वाकई अच्छे दिन आ गए हैंघ्
एक साल के थोड़े समय में मोदी को जिन चुनौतियों का सामना करना था उन्हें देखते हुए करिश्माई बदलाव एक वर्ष में पूरा कर पाना न तो व्यावहारिक था और न ही संभव। जो लोग मोदी को जानते हैं वे बताते हैं कि वह निरर्थक बातों से विचलित नहीं होते क्योंकि वे जानते हैं कि उनके एक साल के कार्यकाल की तुलना उनके पूर्ववर्तियों से नहीं की जा रही है। यानी उनके कार्यकाल का मूल्यांकन एकपक्षीय है। जब उनके पूर्ववर्ती समकक्ष मनमोहन सिंह ने प्रधानमंत्री के रूप में 2004 में पहली पारी शुरू की तो किसी को ऐसी उम्मीद नहीं थीए अतरू अपेक्षाएं भी कम ही थीं। मगर नरेंद्र मोदी को इस तरह का लाभ नहीं मिला।
गत शुक्रवार को केंद्रीय वित्त एवं सूचना मंत्री अरुण जेटली ने दावा किया कि नरेंद्र मोदी सरकार ने सिर्फ एक साल में देश की जनता को यूपीए सरकार के दौरान व्याप्त निराशा व अवसाद से निकालकर आशा व नवीनीकरण की दिशा में बढ़ाया है। उन्होंने कहा कि मोदी सरकार ने जो निर्णय लेने में तत्परता दिखाई उसमें गति व पारदर्शिता दिखाई देती है। उन्होंने इस बात का भी उल्लेख किया कि सरकार के पारदर्शी निर्णयों के चलते अर्थव्यवस्था पटरी पर आई है और यही वजह है कि अर्थव्यवस्था आठ प्रतिशत विकास दर की ओर उन्मुख है। यदि भारत में बेचैनी थी तो वजह जनसाधारण का असंतुष्ट होना था। निरूसंदेह जेटली का यह आकलन किसी हद तक सत्य के करीब है।
यद्यपि यह कोई अंतिम और पर्याप्त मानक नहीं है मोदी सरकार के प्रदर्शन के आकलन का। उनकी पार्टी के ही साथी अरुण शौरी ने हालिया टीवी साक्षात्कार में मोदी सरकार की नीतियों में अस्पष्टता व आर्थिक नीतियों की दिशाहीनता के लिए आलोचना की थी। उनका यह भी आरोप था कि छोटी मंडली ही सरकार चला रही है। राहुल गांधी ने सरकार का उपहास करते हुए इसे सूट.बूट की सरकार बताया था जो कॉरपोरेट घरानों के प्रभाव में है। कुछ सवाल खड़े करते रहे हैं कि यह भारत सरकार है या मोदी सरकार। तर्क दिया गया कि प्रधानमंत्री कार्यालय तमाम मंत्रियों के अधिकार क्षेत्रों में खासी दखलंदाजी करता रहता है।
इतना ही नहीं सरकार को लेकर कई निर्मम टिप्पणियां भी सामने आती रही हैं। टिप्पणी कि यह शासन अधिक ष्सेल्फीष् बजाय कि सामूहिक दायित्व के। यह भी कि मोदी बातें तो बड़ी.बड़ी करते हैं मगर क्रियान्वयन करते कम हैं। उनकी एक साल की अवधि में लगातार होने वाली 18 देशों की यात्राओं को लेकर भी खूब चर्चाएं हुईं। एक एसएमएस पर आया चुटकुला खूब चर्चाओं में रहा कि वे कभी.कभी भारत भी आते रहते हैं। यह भी कि विकास के मुखौटे के पीछे मोदी आरएसएस के एजेंडें को बढ़ावा दे रहे हैं। यह भी कि अल्पसंख्यकों को आश्वस्त करने के लिए उन्होंने कुछ नहीं किया।
मेरे लिए उनके पहले साल के कार्यकाल के तीन महत्वपूर्ण पड़ाव रहे हैं। पहला राष्ट्रपति भवन परिसर में सार्वजनिक रूप से नरेंद्र मोदी का शपथग्रहण समारोह जिसमें सार्क प्रमुखों खासकर पाकिस्तानी प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने भी भाग लिया। इसके कुछ महीनों बाद तेजी से कूटनीतिक संबंधों को नए आयाम दिये। दुनिया की प्रमुख शक्तियों जिनमें चीनए जापान और चीन शामिल हैंए के साथ संबंधों को बढ़ावा देकर सशक्त विदेश नीति का परिचय दिया।
दूसरा महत्वपूर्ण मौका पंद्रह अगस्त को लालकिले के परकोटे से देश को स्वतंत्रता दिवस पर संबोधन थाए जिसके जरिये उन्होंने सरकार की रीति.नीतियों को उजागर किया। इस दौरान उन्होंने सरकार की महत्वपूर्ण योजनाओं मसलन स्वच्छ भारत अभियान और जन धन योजना की घोषणा की। निश्चित रूप से इन दीर्घकालीन नीतियों को यदि कायदे से लागू किया जाता है तो इससे न केवल जरूरतमंदों और गरीब तबके को लाभ मिलेगा बल्कि देश की छवि भी सुधरेगी। साथ ही मोदी ने कॉरपोरेट घरानों को मेक इन इंडिया का मौका देकर उत्साहित किया।

तीसरा उल्लेखनीय मौका तब आया जब नरेंद्र मोदी ने एक रॉक स्टार की तर्ज पर अमेरिका के मेडिसन स्क्वॉयर गॉर्डन में भारतवंशियों को संबोधित किया। इससे उनकी वैश्विक छवि बनी और वे विदेशी निवेशकों में भरोसा जगाने में सफल रहे। प्रधानमंत्री ने लंबे मधुमास का आनन्द लिया जब तक कि दिल्ली में आम आदमी पार्टी ने फरवरी में हुए दिल्ली विधानसभा चुनाव में भाजपा का सफाया नहीं कर दिया। टीम मोदी जो अब तक अपराजेय नजर आ रही थीए की हालत इस चुनाव परिणाम ने पतली कर दी। मगर उनकी भूमि अधिग्रहण विधेयक को अमलीजामा पहनाने की कोशिशें तार्किक आधार हासिल न कर पाई। वहीं दूसरी ओर बेमौसमी बारिश और ओलावृष्टि से फसलों को हुए नुकसान की क्षतिपूर्ति में सरकार चूकी नजर आई और इससे किसानों में असंतोष बढ़ा। यही वजह है कि राहुल गांधी को सरकार पर हमले का मौका मिला कि सरकार किसान.श्रमिक विरोधी और कॉरपोरेट समर्थक है।
इन आलोचनाओं के बावजूद यह स्वीकारना होगा कि मोदी सरकार ने पहले साल में देश को ऊर्जावान बनाया और देश के मौजूदा परिदृश्य के लिए जरूरी परिवर्तन व दिशा की ओर उन्मुख हुई। दि ट्रिब्यून ने सरकार के कार्यों का जो आकलन करवाया उसमें अच्छा और बहुत अच्छा परिणाम तो नजर आया मगर सर्वोत्तम नहीं। यह सब मोदी को प्रेरित करेगा कि अपने दूसरे वर्ष के कार्यकाल में और बेहतर करें। सरकार द्वारा की गई घोषणाओं का अनुपालन तेजी से करें। इन प्रयासों में वे पायेंगे कि सारा देश उनके साथ खड़ा है।
SOURCE : http://dainiktribuneonline.com/2015/05

No comments:

Post a Comment