Thursday, 14 May 2015

और चेहरा चमकाइए

 और चेहरा चमकाइए

सुप्रीम कोर्ट ने सरकारी पैसे से थोक भाव में मंत्रियों और नेताओं की मार्केटिंग पर रोक लगा दी है। अदालत ने साफ कहा है कि सरकारी विज्ञापनों में प्रधानमंत्रीए राष्ट्रपति और मुख्य न्यायाधीश को छोड़कर अन्य किसी भी व्यक्ति की फोटो या विजुअल न लगाया जाए। जिन तस्वीरों की छूट कोर्ट ने दी हैए उनका इस्तेमाल कैसे किया जाएए यह फैसला सरकार पर ही छोड़ दिया गया हैए लेकिन इनमें से किसी के भी फोटो का इस्तेमाल करने से पहले उसकी सहमति लेना जरूरी होगा।

साफ है कि विज्ञापन प्रकाशित होने पर एक तरह की जवाबदेही उस व्यक्ति विशेष पर भी आती है। इस आदेश का पालन कितना हो पा रहा हैए यह जांचने के लिए कोर्ट ने तीन सदस्यों की एक कमिटी गठित करने का भी निर्देश दिया है। ध्यान रहेए सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश का दायरा राज्यों के मुख्यमंत्रियों तक भी जाता है। यानी वे भी अपने राज्य की जनता को सरकारी पैसे से अपना मुस्कराता हुआ चेहरा नहीं दिखा सकते। विज्ञापन सामग्री पर नियंत्रण की यह बात तब सामने आईए जब बाकायदा एक याचिका दायर कर अदालत को बताया गया कि सरकार चला रही पार्टियां सरकारी विज्ञापनों का बेजा इस्तेमाल अपनी गतिविधियों को बढ़ा.चढ़ा कर पेश करने में करती हैं।

लेकिन ध्यान रहेए कोर्ट ने ऐसा कदम कोई पहली बार नहीं उठाया है। पहले भी सुप्रीम कोर्ट सरकारी विज्ञापनों के मामले में गाइडलाइन जारी कर चुका है। इसमें सख्त निर्देश दिए गए थे कि इन विज्ञापनों में न तो किसी राजनैतिक दल का चुनाव चिह्न रहना चाहिएए न ही उसका झंडा दिखाया जाना चाहिए। तब केंद्र सरकार की ओर से यह आपत्ति जाहिर की गई थी कि यह विषय न्यायपालिका के दायरे में ही नहीं आता। इसके लिए जन प्रतिनिधियों की जिम्मेदारी और जवाबदेही तय है। सवाल उठाया गया कि कोर्ट यह कैसे तय करेगा कि कौन सा विज्ञापन राजनैतिक लाभ के लिए बना है।

इस तरह के कुतर्क आगे भी दिए जाएंगेए लेकिन सुप्रीम कोर्ट के रवैये को देखकर लगता है कि करदाताओं के पैसे से देश के जनमत को प्रभावित करने की इस असाध्य बीमारी का इलाज अब होकर रहेगा। ऐसी ही सख्ती अगर श्व्यापक जनसमर्थनश् के नाम पर की जाने वाली छुटभैयों की बैनर.पोस्टर बाजी के खिलाफ भी दिखाई जाएए फिर पता चल जाएगा कि कौन सी पार्टी जनहित को लेकर कितनी सक्रिय और सतर्क है।

SOURCE : NAVBHARATTIMES.COM

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