Tuesday, 26 May 2015

पानी की वैश्विक राजनीति

पानी की वैश्विक राजनीति

असम के मुख्यमंत्री तरुण गोगोई ने प्रधानमंत्री से आग्रह किया था कि चीन यात्रा के दौरान ब्रह्मपुत्र नदी के पानी के बंटवारे के मुद‍्दे को हल करें। मीडिया रपटों की मानें तो इस मुद‍्दे पर कोई प्रगति नहीं हुई । यह हमारे लिए खतरे की घंटी हैए चूंकि सम्पूर्ण विश्व में पानी के मुद‍्दे पर टकराव बढ़ रहे हैं। इस्लामिक स्टेट द्वारा टिगरिस तथा यूफरेटिस नदियों पर कब्जा करने का प्रयास किया जा रहा है। ये नदियां इराक की जीवनधारा हैं।
साठ के दशक में इस्राइल ने 6 दिन का युद्ध छेड़ा था जिसका उद्देश्य जार्डन नदी के पानी पर अधिकार जमाना था। इन विषयों के जानकार ब्रह्म चेलानी के अनुसार पाकिस्तान द्वारा कश्मीर के मुद्दे को लगातार उठाने का उद्देश्य उस राज्य से बहने वाली नदियों पर वर्चस्व स्थापित करना है। बांग्लादेश के साथ तीस्ता के पानी के बंटवारे का विवाद सुलझ नहीं सका है। अधिकतर बांग्लादेशी मानते हैं कि भारत ने फरक्का बेराज द्वारा पानी को हुगली में डाइवर्ट करके दादागीरी दिखाई है। चीन द्वारा ब्रह्मपुत्र पर बांध बनाने से भारत चिंतित है। अरुणाचल पर चीन की पैनी नजर रहने का एक कारण उस राज्य के प्रचुर जल संसाधन हैं। नेपाल द्वारा बांधों से पानी छोड़े जाने को बिहार की बाढ़ का कारण माना जाता है।
सीधे देखें तो पानी के बंटवारे में एक देश को लाभ और दूसरे का नुकसान एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। गंगा के पानी का अधिक हिस्सा भारत द्वारा हुगली में डाइवर्ट करने का सीधा असर बांग्लादेश पर होगा। उस देेश को पानी कम मिलेगा। परन्तु ऐसे हल भी संभव हैं जो दोनो देशों के लिए लाभदायक हों। फरक्का बेराज को लें। बेराज की वर्तमान समस्या तलछट की है। फरक्का के तालाब में तलछट जम जाती है। ऊपरी सतह से पानी निकाल कर हुगली को डाइवर्ट कर दिया जाता है। नीचे बैठी तलछट को फ्लश करके पदमा में बहा दिया जाता है जो कि बांग्लादेश को चली जाती है। परिणाम है कि पानी का बंटवारा तो आधा.आधा होता है परन्तु अनुमानित 90 प्रतिशत तलछट बांग्लादेश को जाती है। तलछट के इस अप्राकृतिक बंटवारे से दोनों देश त्रस्त हैं। बांग्लादेश में अधिक मात्रा में तलछट पहुंचने से पदमा का पाट ऊंचा होता जा रहा है और बाढ़ का प्रकोप बढ़ रहा है। हुगली में तलछट कम पहुंचने से समुद्र की तलछट की भूख शांत नहीं हो रही है और वह हमारे तट को खा रहा है। गंगासागर द्वीप छोटा होता जा रहा है। लोहाचारा और गोडामारा द्वीपों से लगभग एक लाख लोगों को विस्थापित होना पड़ा है। इस दोहरी समस्या का हल है कि फरक्का के आकार में बदलाव किया जाए। नेपाल द्वारा नदियों पर बड़े बांध बनाकर पानी को रोकने का प्रयास किया जा रहा है। लेकिन कभी.कभी इनसे ज्यादा मात्रा में पानी छोड़ दिया जाता हैए जिससे बिहार में बाढ़ का प्रकोप बढ़ जाता है।
इस समस्या का समाधान भूमि के गर्भ में उपलब्ध एक्वीफरों के माध्यम से निकल सकता है। धरती के नीचे तालाब एवं नदियां होती हैं। सेन्ट्रल ग्राउन्ड वाटर बोर्ड के अनुसार उत्तर प्रदेश के एक्वीफरों की भंडारण क्षमता 76 बिलियन क्यूबिक मीटर है जो कि टिहरी बांध से 25 गुणा ज्यादा है। इसी प्रकार के एक्वीफर नेपाल में भी हैं। हमें साझा नीति बनाकर नेपाल को प्रेरित करना चाहिए कि पानी का भंडारण एक्वीफरों में करे। इस्राइल ने इस तकनीक का बखूबी विकास किया है। तालाबों से वाष्पीकरण के कारण 10.20 प्रतिशत पानी का नुकसान हो जाता है। यह पानी बच जाएगा। बड़े बांधों में निहित विस्थापन तथा भूकम्प जैसी समस्याओं से भी छुटकारा मिल जाएगा। एक्वीफरांे से अधिक मात्रा में पानी नहीं छोड़ा जा सकेगा और हमें बाढ़ से राहत मिलेगी।
सिंधुए ब्रह्मपुत्रए तीस्ता तथा गंगा के पानी के बंटवारे को लेकर चीनए पाकिस्तानए नेपाल तथा बांग्लादेश के साथ हमारा तनाव बना रहता है। इन नदियों के ऊपरी देश का प्रयास रहता है कि अधिकाधिक पानी को रोक ले जबकि निचला देश चाहता है कि अधिकाधिक पानी को बहने दिया जाए। चीन तथा नेपाल के संदर्भ में हम निचले देश हैं जबकि पाकिस्तान तथा बांग्लादेश के संदर्भ में ऊपरी देश हैं। यहां एक देश की हानि दूसरे देश का लाभ है। जैसे तीस्ता में अधिक पानी छोड़ने से भारत को हानि और बांग्लादेश का लाभ है। इसका हल है कि लाभ पाने वाला निचला देश हानि झेलने वाले ऊपरी देश को मुआवजा दे। जरूरी है कि पानी के उपयोग से होने वाले लाभ का सही आकलन किया जाए। तीन वर्ष पूर्व नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने पर्यावरण मंत्रालय को परियोजनाओं के लाभ .हानि का आकलन करने के लिए नियमों को स्पष्ट करने को कहा था। पर्यावरण मंत्रालय ने इंडियन इंस्टीट्यूट आफ फारेस्ट मैनेजमेंट को यह जिम्मेदारी सौंपी थी। रपट सौंपे डेढ़ वर्ष हो गए परन्तु मंत्रालय ने इस गम्भीर मुद्दे को ठंडे बस्ते में डाल दिया है।

कर्नाटक के गुलबर्गा में अंगूरए राजस्थान के जोधपुर में लाल मिर्च तथा उत्तर प्रदेश में गन्ने की फसल के लिए भारी मात्रा में पानी का उपयोग किया जा रहा है जिससे भूमिगत पानी का जलस्तर गिरता जा रहा है। विलासिता की इन फसलों को उगाने के लिए हम अपने भूमिगत पानी के भंडार को समाप्त कर रहे हैंै। सरकार को चाहिए कि हर जिले की ष्फसल आडिटष् कराए।

SOURCE : http://dainiktribuneonline.com/2015/05

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