Monday, 25 May 2015

आईएसआई का अफगानिस्तान में नया खेल

आईएसआई का अफगानिस्तान में नया खेल

मंगलवारए बारह मई को पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ काबुल में थे। उनकी उपस्थिति में दोनों देशों के बीच खुफिया सहयोग के वास्ते एमओयू पर हस्ताक्षर हुए। इस समझौते के बाद अब आईएसआईए अफग़ान खुफिया एजेंसी एनडीएस के कर्मियों को प्रशिक्षित करेगी। एमओयू में लिखा गया है कि दोनों खुफिया एजेंसियां साझे रूप में दुश्मन खुफिया एजेंसी और अलगाववाद के विरुद्ध लड़ेंगी। यह बताने की ज़रूरत नहीं है कि एमओयू में दुश्मन खुफिया एजेंसी किसे लक्षित करके कहा गया है।
आईएसआईए भारत के विरुद्ध एनडीएस को तैयार करेगीए इस शातिराना चाल को हामिद करज़ई जैसे नेता अच्छी तरह से समझ रहे हैं। पूर्व राष्ट्रपति हामिद करज़ई इस एमओयू पर इतना भड़के हुए हैं कि उन्होंने उसे फौरन खारिज़ किये जाने की मांग कर दी। अफग़ान नेशनल डायरेक्टोरेट ऑफ सिक्योरिटी के प्रमुख रहमतुल्ला नाबिल कह चुके हैं कि इस समझौते को मैं सही नहीं समझता। 5 फरवरी 2015 को अफग़ान सेना के छह कैडेट जब पहली बार पाकिस्तान के ऐबटाबाद में 18 महीने के प्रशिक्षण के लिए गयेए तभी स्पष्ट हो गया कि नवाज़ शरीफ अफगानिस्तान के नये निजाम को अपने आईने में उतार चुके हैं। अफगानिस्तान में भारत का 40 करोड़ डालर की लागत से टैंकए एयरक्राफ्ट रिफर्बिशिंग प्लांट लगना थाए जिसके माध्यम से वहां कबाड़ में परिवर्तित हो रहे टैंकए हेलीकॉप्टर और युद्धक विमानों को नये जैसा कर देना था। लेकिन राष्ट्रपति अशरफ गनी को यह रास नहीं आया। उसे स्थगित किये जाने का कोई तर्क भी नहीं दिया गया है।

28 अप्रैल 2015 को अफग़ान राष्ट्रपति अशरफ गनी नई दिल्ली में थे। उन्हें भारतीय विदेश मंत्रालय द्वारा आयोजित कूटनीतिकों और थिंक टैंक की सभा को संबोधित करना था। जहां पर यह आयोजन थाए उसके पांच सौ वर्गमीटर के इलाके को मिलिटेरी छावनी में बदल दिया गया था। सभी आने वालों को आधा घंटा पहले सीट ग्रहण करने का निर्देश था। मोबाइल फोन नहीं ला सकते थे। नंबर वाले निमंत्रण कार्डए लिफाफे आईडी कार्ड के साथ लाने अनिवार्य थे। हम सब चार स्तरीय सुरक्षा व्यवस्था से हैरान थेए और सवाल भी कर रहे थे कि क्या अशरफ गनीए संयुक्त राष्ट्र महासचिव बान की मून से भी अधिक महत्वपूर्ण हैंघ् बान की मून के वास्ते इतना सुरक्षा ताम.झाम तो नहीं था। अशरफ गनी को यहां पर किससे ख़तरा थाए तालिबानए आईसिस या आईएसआई सेघ्
अशरफ गनी भारत आये ज़रूरए लेकिन उनकी देहभाषा से एहसास हो रहा थाए मानो कोई रिमोट कंट्रोल के ज़रियेए उन्हें नियंत्रित कर रहा हो। गऩी ने कई बार पाकिस्तानए चीन से दोस्ती के हवाले से क्षेत्र में शक्ति संतुलन की बात की। सुषमा स्वराज सितंबर 2014 की काबुल यात्रा में इस आरजू के साथ गईं कि राष्ट्रपति अहमदज़ई नई दिल्ली आएंगे। हम आरजू और इंतज़ार में उलझे रहेए उधर अफग़ान राष्ट्रपति 28 अक्तूबर 2014 को चीनी नेताओं से मिलने पेइचिंग रवाना हो गये। ऐसा क्या था कि राष्ट्रपति अशरफ गनी अहमदज़ई ने अपनी पहली विदेश यात्रा की शुरुआत चीन से कीए और नई दिल्ली के बदले पेइचिंग जाना ज़रूरी समझाघ् इस सवाल का उत्तर इसी से मिल जाता है कि राष्ट्रपति अहमदज़ईए तालिबान से तालमेल बैठाने के लिए चीनी नेताओं से सहयोग चाहते थे। सुनकर थोड़ा अटपटा सा लगता है कि शिनचियांग में उईगुर अतिवादियों और तुर्किस्तान इस्लामिक पार्टी से परेशान चीनए तालिबान से किस प्रकार तालमेल बैठाने लगा। चीन की तुर्की से भी उईगुर अतिवादियों को शह देने के कारण ठन गई है।
अफगानिस्तान को अब तक साढ़े बारह अरब डॉलर के सहयोग के बावजूद भारत के हितए इस देश में सुरक्षित नहीं दिखते। 2008.2009 में काबुल स्थित भारतीय दूतावास पर दो बार हमले हुएए जिसमें 75 लोग मारे जा चुके थे। जुलाई 2008 में काबुल स्थित भारतीय दूतावास पर कार बम से हमला हुआए जिसमें 58 लोगों की मौत हो गई और 141 लोग घायल हो गये। इस हमले के ठीक पहले ब्रिगेडियर रवि दत्त मेहता और डिप्लोमेट वीण् वेंकटेश्वरा राव दूतावास में प्रवेश कर रहे थे। दोनों की मौत घटनास्थल पर ही हो गई। उस समय अफगान सरकार ने स्वीकार किया था कि इस आक्रमण को अंजाम देने में आईएसआई की बड़ी भूमिका रही थी। 18 अक्तूबर 2009 को एक बार फिर काबुल स्थित भारतीय दूतावास पर कार बम से हमला हुआए जिसमें 17 लोग मारे गये। मृतकों में नौ भारतीय डाक्टर थे। उसके छह माह के भीतरए 10 फरवरी 2010 को काबुल स्थित भारतीय दूतावास पर एक और आक्रमण हुआ और दस भारतीयों समेत 18 लोग मारे गये। इसके छह दिन बादए 26 फरवरी 2010 को काबुल स्थित आर्य गेस्ट हाउस पर हथियारबंद आतंकियों ने आक्रमण कियाए जिसमें 17 लोग मारे गये। आतंकी तीन वर्षों तक चुप रहेए फिर 4 अगस्त 2013 को जलालाबाद स्थित भारतीय कौंसिलावास पर हमला कियाए जिसमें बारह लोग मारे गये। दस माह बादए मोदी के शपथ के चार दिन पहले 22 मईए 2014 को हेरात स्थित भारतीय कौंसिलावास पर धावा बोला गया थाए जवाबी कार्रवाई में चार आतंकी ढेर कर दिये गये।
ऐसा लगता हैए मई के तीसरे हफ्ते भारतीयों पर हमले की बरसी मनाने का सिलसिला अफगानिस्तान में आरंभ हो चुका है। 20 मई 2015 को काबुल के पार्क पैलेस होटल पर तालिबान आतंकियों ने आक्रमण कियाए जिसमें 14 लोग मारे गये। मरने वालों में चार भारतीय थे। उस समय पार्क पैलेस में हिन्दुस्तानी संगीत के उस्ताद इल्ताफ अहमद सारंग का शो आयोजित किया गया थाए जिसमें भारतीय राजदूत अमर सिन्हा भी आमंत्रित थे। लेकिन व्यस्तता की वजह से अमर सिन्हा आये नहीं। मतलब साफ था कि आतंकी भारतीय राजदूत को मारने का लक्ष्य लेकर चल रहे थे। पाक.अफग़ान खुफिया सहयोग समझौते की जो भाषा हैए उसके बाद राष्ट्रपति अशरफ गनी अहमदज़ई को स्पष्ट कर देना चाहिए कि भारतए अफग़ानिस्तान का शत्रु हैए या मित्र। इस समझौते के दो ही लक्ष्य दिखते हैंए एक भारत को अफग़ानिस्तान से किनारे कर देनाए और दूसराए रॉ को इस इलाक़े में निपटाना!

SOURCE : http://dainiktribuneonline.com

No comments:

Post a Comment