दायरों के बीच ऊंची हाेती दीवार
अगर आपको याद हो तो पिछले शिक्षक दिवस के मौके पर बड़े स्तर पर सरकारी तामझाम के साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का भाषण देश के तमाम स्कूली बच्चों और उनके शिक्षकों को विशेष रूप से सुनाया गया था। भाषण में गायत्री मंत्रए सूर्य नमस्कारए पौराणिक शिक्षाए जन्मदिन मनाने की भारतीय परंपराए संस्कृत से संस्कृति का संबंधए विदेशी शिक्षा का बहिष्कारए अकबर महान तो महाराणा प्रताप क्यों नहींए ऐसी तमाम बातें वर्ष भर होती रहीं। पर कोई उनसे पूछे कि इन बातों पर अमल कितना हुआए तो शायद ही उनके पास कहने को कोई जवाब हो। देश में कुकुरमुत्तों की तरह फैले पब्लिक स्कूलों की शिक्षा में भारतीय परंपराए संस्कृत से संस्कृति का संबंध जैसी बातों की कोई जगह नहीं है। वह सिर्फ अंग्रेजी जानते हैं और इसी अंग्रेजियत को शिक्षा से जोड़कर देखते हैं।
सरकारी स्कूलों व उनमें पढ़ने वाले छात्रों को समाज लाचारी और हिकारत की नजर से देखता है। यही वजह है कि निजी स्कूलों पर हमेशा मेहरबान सरकार अपने ही स्कूलों की इतनी उपेक्षा कर चुकी है कि आज सरकारी स्कूल को हिकारत की नजर के साथ देखने की आदत पड़ गई है। किसका बच्चा किस स्कूल में पढ़ता हैए इस आधार पर उसकी समाज में हैसियत तय होती है। निजी स्कूलों में बाहरी तामझाम इतना अधिक कर दिया जाता है कि उसका मूल मकसद यानी शिक्षा कहीं कोने में छिपी रहती है। वहां के बच्चों के परीक्षा परिणाम अच्छे या बुरे कैसे भी रहेंए उनका भविष्य रोशन रहेए उन्हें अच्छे से अच्छे कालेज में दाखिला मिल जाएए इतनी पूर्व तैयारी अभिभावक करके रखते हैं।पर सरकारी स्कूल में पढ़ने वाले अधिकतर बच्चों के साथ ऐसा नहीं है। वे जर्जर इमारतों मेंए टूटी.फूटी कुर्सियों या टाट पट्टी पर बैठकर पढ़ते हैं। उनके शिक्षकों का व्यवहार भी अमूमन उनके साथ बहुत अच्छा नहीं रहता। क्योंकि उन्हें वेतन सरकार से मिलता हैए बच्चों के डोनेशन से नहीं। कम्प्यूटरए विज्ञान की प्रयोगशाला या इसी तरह की अन्य सुविधाएं उन्हें मुश्किल से हासिल होती हैं और बहुत से सरकारी स्कूलों में यह भी नहीं होता। इसके बाद जो सरकार आती हैए वह अपनी नीतियां थोपने के लिए इन सरकारी स्कूलों को जरिया बनाती है।
सीबीएसई के नतीजे विगत कुछ दिनों से सुर्खियों में बने हुए हैं। पहले 12वीं कक्षा के परिणाम घोषित हुए और फिर 10वीं के। 12वीं कक्षा के लिए वर्ष 2014 में 10 लाख 40 हजार 368 बच्चों ने परीक्षा दीए जो पिछले साल से 1ण्2 प्रतिशत अधिक थे। 10वीं कक्षा के लिए 13 लाख 73 हजार 853 बच्चों ने परीक्षा दीए जो पिछले साल से 3ण्37 प्रतिशत अधिक थे। नए सत्र के प्रारंभ होने पर सरकार की चिंता ड्राप आउट संख्या को कम करने की रहती है। इस लिहाज से यह देखना सुखद है कि 10वीं और 12वीं दोनों में परीक्षा देने वाले बच्चों की संख्या बढ़ी है। इसका एक सामान्य अर्थ यह निकाला जा सकता है कि शिक्षा के प्रति जनसामान्य में जागरूकता बढ़ी है। जागरूक जनता से देश में शिक्षा का भविष्य उज्ज्वल होने की संभावना बढ़ती है। इसके बाद यह जिम्मेदारी सरकार की होती है कि वह शिक्षा के क्षेत्र में अपनी अधिकतम ऊर्जा व संसाधन लगाएए ताकि बच्चों की एक बड़ी आबादी इससे लाभान्वित हो। 10वीं और 12वीं के परीक्षा परिणामों को देखने से यह निष्कर्ष निकालना कठिन नहीं है कि विगत एक वर्ष में देश में शिक्षा का स्तर बढ़ा नहीं है।
भाजपा सरकार के एक साल का हासिल दर्शाने के लिए रिपोर्ट कार्ड भले शत.प्रतिशत दर्शाएं लेकिन अकेले शिक्षा के क्षेत्र की बात करें तो इसमें सरकार के प्रदर्शन का प्रतिशत गिरा है। इस साल 12वीं कक्षा में 82 प्रतिशत बच्चे उत्तीर्ण हुए हैंए जो पिछले साल के मुकाबले 0ण्66 प्रतिशत कम हैं। इसी तरह इस वर्ष 10वीं कक्षा में 97ण्32 प्रतिशत बच्चे उत्तीर्ण हुए हैंए जबकि विगत वर्ष यह प्रतिशत 98ण्87 प्रतिशत था। जवाहर नवोदय विद्यालय ने इस बार भी 10वीं व 12वीं के परिणामों में सबसे अच्छा प्रदर्शन किया हैए हालांकि पिछले साल के मुकाबले यह थोड़ा कमजोर प्रदर्शन रहा। केन्द्रीय विद्यालयों में भी 10वीं और 12वीं के परीक्षा परिणाम पिछले साल के मुकाबले कमजोर रहे। यह बात किसी भी सरकार को समझाने की आवश्यकता नहीं कि बच्चे देश का भविष्य होते हैं। इस वाक्य को महज एक जुमले की तरह इस्तेमाल न करके दूरदर्शिता के साथ उसे समझना चाहिए।
एचआरडी मिनिस्टर स्मृित ईरानी सरकारी स्कूलों की सुध भी ले लें। जो केन्द्रीय विद्यालयए नवोदय विद्यालय उच्चकोटि की शिक्षा के लिए देश में जाने जाते थेए वहां शिक्षा का स्तर क्यों और कैसे गिर गयाए क्यों सफल विद्यार्थियों के परिणामों में कमी आईए इसकी पड़ताल करवा लें तो नौनिहाल निहाल हो जाएं। आज के समय में भारतीय परंपराए संस्कृत से संस्कृति का संबंध जैसी शिक्षा के प्रसार की वकालत तो सभी करते हैंए पर अमल कोई नहीं करता।
SOURCE : http://dainiktribuneonline.com/
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