खाली होती थाली
हमारी पसंद.नापसंद कई बार इतनी तेजी से बदल जाती है कि हमें एहसास तक नहीं होता। हमारी फूड हैबिट्स में बदलाव पर आई फिक्की की हालिया रिपोर्ट इस संदर्भ में कई अहम सवाल उठाती है। रिपोर्ट में बताया गया है कि पिछले 20 वर्षों के दौरान हमारे भोजन में प्रोटीन की मात्रा तेजी से कम हुई है। ध्यान रहेए दालों और मांसाहार में पाया जाने वाला प्रोटीन हमारे स्वास्थ्य के लिए सबसे जरूरी चीज है। 1993 में ग्रामीण क्षेत्रों में प्रति व्यक्ति रोजाना प्रोटीन की खपत 60ण्2 ग्राम हुआ करती थी जो 2011.12 में घट कर 56ण्5 ग्राम रह गई। शहरी क्षेत्रों में यह गिरावट उतनी ज्यादा नहीं थीए फिर भी यह 57ण्2 ग्राम से घटकर 55ण्7 ग्राम तक तो आ ही गई।
एक्सपर्ट्स के मुताबिक इस कमी के पीछे कई तरह के फैक्टर काम कर रहे हैंए लेकिन फूड हैबिट्स में आया बदलाव इसका एक बड़ा कारण है। इस दौरान भोजन में फलए सब्जीए डेयरी आइटमए मांसए मछलीए अंडा आदि का हिस्सा थोड़ा बढ़ा हैए लेकिन लोगों ने दाल खाना काफी कम कर दिया है। सबसे ज्यादा चिंताजनक है खाने में चर्बीदार चीजों का बढ़ना। लोग जाने.अनजाने तली.भुनी चीजें बहुत ज्यादा खाने लगे हैं। आंकड़ों के मुताबिक तेल और फैट की दैनिक खपत ग्रामीण क्षेत्रों में 31 ग्राम से बढ़ कर 42 ग्राम हो गईए जबकि शहरी क्षेत्रों में यह 42 ग्राम से 52ण्5 ग्रामए यानी लगभग प्रोटीन के बराबर हो गई। चिप्सए बिस्किटए स्नैक्स और कोल्ड ड्रिंक्स जैसी चीजें 1993.94 में ग्रामीण क्षेत्रों में खाने का बमुश्किल 2 फीसदी हिस्सा बनाती थींए मगर 2011.12 में उनका हिस्सा बढ़कर 7 फीसदी हो गया।
शहरी क्षेत्रों में इसी अवधि में इनका हिस्सा 5ण्6 से बढ़कर 9 फीसदी का हो गया। पहली नजर में ऐसा लग सकता है कि ये बदलाव अनायास आ गए हैं. लोगों की पसंद.नापसंद सरकार के आदेशों से तो तय नहीं होती। लेकिन इस दौरान परिवारों का माहौल बदला हैए कई घरों में पति.पत्नी दोनों काम पर जाने लगे हैंए जिंदगी की रफ्तार बढ़ गई है। नई फूड हैबिट इन बदलावों का ही नतीजा है। विज्ञापनों ने भी इसमें बड़ी भूमिका निभाई है।
स्वाभाविक है कि बाजार हमारे स्वास्थ्य से ज्यादा अपने प्रॉफिट की चिंता करता है। वरना बर्गर में तला हुआ आलू डालने के बजाय दाल का रोस्टेड पकौड़ा क्यों नहीं डाला जा सकताघ् फूड हैबिट बदल सकती है. सिर्फ थोड़ा सा केयरिंग ऐटिट्यूड चाहिए।
SOURCE : navbharattimes.com
No comments:
Post a Comment