पुराने वैभव की तलाश में तुर्की
तुर्की में आगामी 7 जून को होने वाले संसदीय चुनावों की तैयारियां मुकम्मल होने को हैं। ऐसे में मौजूदा राष्ट्रपति रेसेप तयैैप एर्डोगन की निजी महत्वाकांक्षा और देश में भारी संख्या में रह रहे कुर्दों से उनके भावी संबंध इनके नतीजों पर बहुत कुछ निर्भर करते हैं। उल्लेखनीय है कि इससे पहले एर्डोगन तीन बार प्रधानमंत्री निर्वाचित हो चुके हैं।
जब से तुर्की के संस्थापक कमाल अतातुर्क ने ओट्टोमन साम्राज्य के खंडहरों पर इस आधुनिक देश का निर्माण किया थाए तब से इस राष्ट्र के परिदृश्य पर किसी अन्य नेता का इतना दबदबा नहीं रहा जितना कि एर्डोगन का है। उनकी दो बड़ी दक्षताओं में से एक है फौज को अपनी जगह रखनाए जो दरअसल अपनी धर्मनिरपेक्षता की वजह से एक अलग जमात बन चुकी है। एर्डोगन की दूसरा कौशल यह है कि वे अपने समर्थकों का सबसे बढ़ा गढ़ माने जाने वाले ऐनातोलिया के लोगों के धार्मिक रुझान के मुताबिक देश को रूढि़वादिता की ओर धकेलना चाहते हैं।
एसण् निहाल सिंह
इन उपलब्धियों के अलावा एर्डोगन ने अपने अधिनायकवादी रवैये और विरोधियों के प्रति अपने अधीर प्रतिक्रम का प्रदर्शन घोषित रूप से किया है। उदाहरण के लिए इस्ताम्बुल के गेजी पार्क में हुए भारी प्रदर्शन को आनन.फानन में कुचलने वाला प्रकरण तो यही दर्शाता है। उनका प्रयास यह भी है कि भले ही ओट्टोमन साम्राज्य की भव्यता को हू.ब.हू फिर से नहीं भी बनाया जा सकताए तब भी उस काल की भावना को पुनर्जीवित तो किया ही जा सकता है। सच तो यह है कि दंगों का कारण भी यही था कि एर्डोगन इस हक में थे कि गेजी पार्क को हटाकर वहां पर ओट्टोमन.स्टाइल की बैरकें बना दी जाएं। अब उनका नया राष्ट्रपति निवास शानो.शौकत में ओट्टोमन काल जैसा ही भव्य है।
तुर्की को विश्व शक्तियों की पहली कतार में खड़ा करने की एर्डोगन की ख्वाहिश कभी उनके नीचे काम करने वाले प्रधानमंत्री अहमत देवूतोग्लू जैसी ही है। अहमत को सत्तारूढ़ न्याय और विकास पार्टी ;एकेपीद्ध का अध्यक्ष इसलिए भी बनाया गया था क्योंकि राष्ट्रपति रहते हुए स्वयं एर्डोगन किसी राजनीतिक दल में कोई पद या स्थान ग्रहण नहीं कर सकते थे। वैसे भी पार्टी के संविधान के मुताबिक राष्ट्रपति रहते हुए वे प्रधानमंत्री पद के लिए अपनी उम्मीदवारी पर फिर से दावा प्रस्तुत नहीं कर सकते।
एर्डोगन लोकतांत्रिक प्रणाली से मिलती.जुलती व्यवस्था की जगह राष्ट्रपति शासन जैसी व्यवस्था लागू करना चाहते हैं। आगामी चुनावों के नतीजे इसलिए भी विशेष हैं कि देश के कानून में बदलाव लाने की खातिर एकेपी पार्टी को 550 सदस्यों वाली संसद में कम.से.कम 330 सीटें जीतनी होंगी। निवर्तमान संसद में एकेपी के 312 सांसद थे।
एर्डोगन की हसरतों का एक और ढका पहलू भी है। उन्होंने अपनी सफलता मौलाना फैतुल्लाह गुलेन के साथ मिलकर पाई थीए फिलहाल गुलेन इन दिनों अमेरिका में स्व.निर्वासित जीवन जी रहे हैंए फिर भी तुर्की में उनके उत्साही समर्थकों का एक बड़ा नेटवर्क आज भी मौजूद है। तथ्य तो यह है कि 2013 में इन दोनों नेताओं की दोस्ती टूटने के बाद एर्डोगन के मंत्रिमंडल में शामिल कई बड़े मंत्रियों को भ्रष्टाचार के आरोप में गिरफ्तार किया गया था और जिन्हें बाद में इस्तीफा देना पड़ा था। अंदरखाते यह बात सबको मालूम थी कि यह काम पुलिस और न्याय विभाग में मौजूद मौलाना गुलेन के समर्थकों ने कर दिखाया है।
अपने आकारए जनसंख्या और भौगोलिक स्थिति की वजह से तुर्की इस सारे इलाके में अहम भूमिका रखता है। वह नाटो संगठन का भी सदस्य है। ये बात अलग है कि इसके कई निर्णयों से इस संघ के कई सदस्य अकसर हैरान होते हैं कि आखिर यह मुल्क है किसकी तरफघ् तुर्की ने लगभग 15 लाख सीरियाई शरणार्थियों को पनाह दे रखी हैए हालांकि वह अमेरिका को यह मनवाने में असफल रहा है कि सीरिया के राष्ट्रपति बशर.अल.असद को अपदस्थ करने के लिए और भी कुछ किया जाना चाहिए। हाल ही तक सीरिया के गृह युद्ध में लड़ने के लिए जाने वाले जिहादियों का मुख्य आवागमन रास्ता तुर्की बना हुआ था।
वास्तव में तुर्की और खुद एर्डोगन की किस्मत विरोधाभासों से भरी है। कमाल अतातुर्क ने धार्मिक कट्टरवादियों और रूढि़वादी तत्वों के विरोध प्रदर्शनों की परवाह न करते हुए तुर्की को आधुनिक संसार का हिस्सा बना दिया था। उदाहरण के लिए महिलाओं को स्कार्फ से सिर ढांपने की रूढि़वादी परंपरा पर प्रतिबंध लगा दिया था और तुर्की भाषा को रोमन लिपि में लिखा जाने लगा था। लेकिन अब फिर स्कार्फ लौट आए हैं।
जल्द ही होने वाले संसदीय चुनाव के नतीजे बता देंगे कि एर्डोगन अपनी खुद की बहुमत वाली सरकार बनाने की हसरत को पूरा करने में कितना कामयाब रहे हैंए परंतु पूर्वानुमान बता रहे हैं कि वहां गठबंधन की सरकार बनेगी। एर्डोगन की निजी आकांक्षाएं और आने वाले समय की घटनाएं कुर्द समस्या के भाग्य का फैसला करने में अहम भूमिका अदा करेंगी।
एक तरह से यह दोनों समस्याएं आपस में जुड़ी हुई हैं क्योंकि एर्डोगन ने शांति प्रक्रिया को शुरू करने में साहस दिखाया है।
एर्डोगन द्वारा की गई घोषणाओं से अगर अनुमान लगाया जाए तो उनका सपना एक ऐसा देश बनाने का है जो पुराने ओट्टोमन वैभव और एक अति आधुनिक राष्ट्र का संगम हो और जो इस्लामिक सिद्धांतों से दिशा.निर्देश लेता हो।
हालांकि नाटो संगठन का सदस्य होने के नाते तुर्की पश्चिमी पाले में खड़ा पाया जाता है लेकिन दीगर नीतियों और मुद्दों पर अपनी स्वतंत्र सोच के चलते अमेरिका और अन्य सहयोगियों की इसकी ओर से चिंता बनी रहती है। अमेरिका द्वारा इराक में आक्रमण किए जाने के वक्त तुर्की ने अपने इलाके से होकर जाने वाले रास्तों का उपयोग करने की इजाजत अमेरिकी गठबंधन सेनाओं को नहीं दी थी। इसके अलावा तुर्की को यह भी मलाल है कि उसके देश में पनाह लिए लाखों सीरियाई शरणार्थियों को फिर से उनके मुल्क में बसाने की खातिर सीरियाई सीमा के अंदर उड़ान.निषिद्ध क्षेत्र बनाने की उसकी मांग को अमेरिका ने ठुकरा दिया था। इसका नतीजा यह हुआ कि यह सीरियाई शरणार्थी तुर्की समेत अन्य पड़ोसी मुल्कों में भी फैल गए हैं और अब खतरा यह हो चला है कि कहीं वे उन देशों के अंदर भूमि को हथिया कर अपने लिए एक नया राष्ट्र न बना लें।
अमेरिकी हथियारों और मदद के बलबूते तुर्की के पास एक सुदृढ़ और आधुनिक सेना है। एकेपी पार्टी के उद्भव ने तुर्की के राजनीतिक परिदृश्य को बदल कर रख दिया है और मध्यमार्गी इस्लामिक सोच की ओर इसका झुकाव एर्डोगन जैसे अधिनायकवादी राजनेता के नेतृत्व में देश को एक वैभवशाली स्थिति में लाना चाहता है।
SOURCE : http://dainiktribuneonline.com/2015/05