एक योजना के अनेक किंतु.परंतु
अभी पिछले साल की ही तो बात है। एक सौ नये स्मार्ट सिटी बनाने का हसीन सपना दिखाकर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को कुछ गांवों को ष्आदर्शष् बनाने का भी नेक ख्याल आया। उन्होंने महत्वाकांक्षी सांसद आदर्श ग्राम योजना घोषित करके उसका जिम्मा नवनिर्वाचित सांसदों पर डाल दिया।
ग्रामीणों को इससे अपने भविष्य की सुनहरी उम्मीद जागी थी। वे सोचने लगे थे कि गांवों को आदर्श बनाये जाने का यह सिलसिला चल पड़े तो कौन जाने देर.सवेर उनके गांव की प्रतीक्षा का भी अंत हो जाये। लेकिन अबए जब अपेक्षित तैयारीए स्पष्ट नजरियेए विचार.विमर्श और बजट के बगैर घोषित इस योजना के समुचित गति पकड़ने से पहले ही उसके अंतर्विरोध सामने आने लगे हैं। सांसदों की अरुचि व अगम्भीरता छिपाये नहीं छिप रहीं और प्रथम ग्रासे मक्षिका पातः जैसी स्थिति बन गयी है।नरेंद्र मोदी ने सदिच्छा जतायी थी कि सांसदों की ही तरह देशभर के विधायक भी अपने क्षेत्र के किसी न किसी गांव को गोद लेकर उसका कायाकल्प करने में लग जायेंगे। हकीकत यह है कि लोकसभा व राज्यसभा के कुल मिलाकर एक सौ से ज्यादा सांसदों ने किसी गांव को गोद लेने की जरूरत नहीं समझी है। अब इस देरी के लिए जो भी बहाने बनाये जायें या इसका जैसे भी औचित्य सिद्ध किया जायेए इससे योजना को लेकर उनकी उत्साहहीनता की चुगली तो होती ही है।
लेकिन जमीनी हकीकत समझनी हो तो एक नजर उन सांसदों पर भी डाल लेनी चाहिएए जिन्होंने गांव तो गोद ले लिये हैं। केन्द्रीय मंत्री उमा भारती नेए जो झांसी.ललितपुर निर्वाचन क्षेत्र की सांसद हैंए पहले.पहल जो दो गांव आदर्श बनाने के लिए चुनेए उनमें से एक ललितपुर का सड़कौड़ा उनका पैतृक गांव था तो दूसरा झांसी का पहले से ही सुविधासम्पन्न श्रीनगरए जो शहर से केवल पांच किलोमीटर दूर है। दूसरे मंत्री देवरिया के सांसद कलराज मिश्र की प्राथमिकता में भी उनका पैतृक गांव पयासी सबसे पहले रहा। भले ही निर्देश हैं कि सांसद अपना या अपने जीवनसाथी का पैतृक गांव नहीं चुनेंगे।
दूसरी ओर कई सांसदों द्वारा पूरी नेकनीयती से गोद लिये गये गांवों में भी जैसा स्वर्ग उतारने का सपना दिखाया गया थाए वह उतर नहीं रहा। इसलिए कई लोग पूछने लगे हैं कि ऐसी कच्छप गति से देश के सात लाख गांवों में आखिरी का नम्बर कब आयेगाघ् प्रधानमंत्री ने योजना घोषित की तो उनका दावा था कि वे गांवों के बारे में महात्मा गांधी की सोच से प्रेरित हैं। लेकिन वे साफ नहीं कर पाये थे कि गोद लिये गये गांवों में सफाईए स्वास्थ्यए शिक्षा और विकास की सहूलियतों के साथ सौहार्द कैसे सुनिश्चित किया जायेगाघ् जैसे अब तक किया जाता रहा है तो उसमें नया क्या होगाघ्
अब योजना को लेकर सांसदों की अरुचि के कई कारण बताये जाते हैं। एक तो उनमें से कई को शिकायत है कि पहले इस बाबत उनके विचार तक नहीं जाने गये जबकि इसकी सफलता व विफलता दोनों उन पर भारी पड़ेगी। पहले तो गांवों के चुनाव को लेकर आरोप लगेंगे। वे ठीक से आदर्श नहीं बने तब तो मुसीबत होगी हीए बन गये तो भी क्षेत्र के अन्य वंचित गांवों व उनके निवासियों का सौतियाडाह से जनमा विरोध झेलना पड़ेगा।
एक और पेच हैए गोद लिये गये गांवों के लिए अलग से कोई धन आवंटन नहीं किया जाना है और सांसदों को अपनी निधि से ही उन्हें आदर्श बनाना है अन्यथा उन विकास योजनाओं का धन इस्तेमाल करना हैए जिनका बजट केन्द्र या राज्य सरकारें समय.समय पर जारी करती हैं।
पिछले दिनों कई सांसदों ने प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर पूछा भी था कि वे इस योजना का भारी खर्च कहां से जुटायेंघ् बेशकए सरकार के लिए इस फांस से निकलने का सबसे सुरक्षित तरीका सांसद निधि बढ़ाना है क्योंकि लोकलेखा समिति के कांग्रेसी अध्यक्ष केण्वीण् थामस तक इसकी पैरवी कर रहे हैं। इस निधि के उपयोग में सम्बन्धित सांसदों की इच्छा ही सर्वोपरि होती हैए जिसे वे महज सांसद आदर्श ग्राम के लिए न्योछावर नहीं करना चाहते। दूसरी ओर सुप्रिया सुले जैसे सांसद भी हैंए जो उन सरकारी विभागों से आजिज आकर सांसद निधि बंद करवाना चाहते हैं।
सांसद निधि की राशि बढ़ाने के बाद भी यह योजना पटरी पर आ सकेगीए इसमें गम्भीर संदेह बने रहेंगे। यह सवाल भी बना रहेगा कि उसने योजना घोषित की तो उसमें इतनी अस्पष्टताएं और पेच क्यों रहने दियेघ् सरकार इन सवालों के जवाब तो शायद दे भी दे लेकिन आदर्श स्थापना के लिए जरूरी आदर्श सांसद वह कहां से लायेगीघ्
SOURCE : http://dainiktribuneonline.com/p/
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