बढ़ती अर्थव्यवस्था का कमजोर बाजार
बीते कुछ हफ्तों में शेयर बाजार लगातार नीचे गिरता जा रहा है। गौरतलब है कि मुंबई शेयर बाजार का संवेदी सूचकांक जो 4 मार्चए 2015 को 30ए000 अंक पार कर गया थाए 7 मईए 2015 तक घटकर मात्र 26599 अंक तक पहुंच गया। इसी दौरान भारतीय रुपया जो डॉलर के मुकाबले मजबूती पकड़ रहा था और जनवरी 2015 में 61ण्8 रुपये प्रति डॉलर पर पहुंच गयाए 7 मईए 2015 तक आते.आते कमजोर होते हुए 64ण्25 रुपये प्रति डॉलर तक पहुंच गया। हालांकि इसके बाद इसमें मामूली सुधार जरूर हुआ हैए लेकिन फिर भी वह लगभग 64 रुपये प्रति डॉलर के आसपास ही है। स्वाभाविक तौर पर ऐसी स्थिति में सरकार और नीति निर्माताओं में चिंता व्याप्त है। रुपये के कमजोर होने का महंगाई पर असर पड़ सकता है। देश में कुल आयात जीडीपी के लगभग 29 प्रतिशत तक पहुंच चुके हैं। ऐसे में रुपये में 3 प्रतिशत की गिरावटए महंगाई को एक फीसदी तक बढ़ा सकती है।
हालांकि शेयर बाजारों और रुपये में गिरावट से क्षणिक रूप से चिंतायें जरूर बढ़ जाती हैंए लेकिन इतिहास गवाह है कि शेयर बाजार कभी भी अर्थव्यवस्था के बैरोमीटर नहीं होते। इस बात को अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष ;आईएमएफद्ध की मई 2015 को जारी ष्एशिया पेसिफिक रिजनल आउटलुकष् रिपोर्ट भी साबित करती है। रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत एक उज्ज्वल स्थिति में है और भविष्य में इसकी ग्रोथ दुनिया की बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में सबसे ज्यादा तेज होगी। रिपोर्ट में मोदी सरकार के सुधार कार्यक्रमों को भी सराहा गया है। उधर दुनिया की बड़ी रेटिंग एजेंसियों ने भी भारत की रेटिंग में सुधार की प्रक्रिया को आगे बढ़ाया हैए और रेटिंग एजेंसी ष्मूडीष् ने अप्रैल 2015 में भारत के प्रति दृष्टिकोण को ष्स्थिरष् से ष्सकारात्मकष् बताया है और अगले 12 से 18 महीनों में भारत की रेटिंग को बढ़ाने की ओर संकेत किया है। लगभग इसी प्रकार से ष्स्टेंटर्ड एण्ड पुअरष् ने भी भारत के प्रति अपने रुख को बेहतर किया है।पिछले कुछ समय से भारतीय अर्थव्यवस्था में मजबूती के लक्षण दिखाई देने लगे हैं। गौरतलब है कि 2011.12 और 2012.13 में जीडीपी ग्रोथ कम रहने के कारण भारत के आर्थिक जगत में जो चिंता के बादल छा रहे थेए वह 2013.14 एवं 2014.15 में ग्रोथ दर 7ण्4 प्रतिशत तक बढ़ जाने के कारण छंटते हुए दिखाई दे रहे हैं। अगले साल यह ग्रोथ 8 से 8ण्5 प्रतिशत तक रह सकती है। उधर दो अंकों में पहुंची उपभोक्ता महंगाई की दर अब 5 फीसदी तक पहुंच चुकी है और विदेशी भुगतान का घाटा जो जीडीपी के 4ण्8 प्रतिशत तक पहुंच गया थाए अब मात्र 1ण्6 प्रतिशत ही रह गया है। इस साल बजट से पहले जारी किए गए आर्थिक सर्वेक्षण में बताया गया था कि अर्थव्यवस्था एक ऐसी मधुर स्थिति में है जो कभी.कभार ही होता है। आज भारत चीन को पछाड़ कर दुनिया की सबसे तेज गति से बढ़ने वाली अर्थव्यवस्था बनने जा रहा है। विदेशी निवेश का प्रवाह भी बढ़ रहा है और दुनिया का रुख भी भारत के बारे में बदला है।शेयर बाजरों और रुपये में आ रही गिरावट के पीछे मोदी सरकार द्वारा किए जा रहे आर्थिक सुधारों में रुकावटए विदेशी संस्थागत निवेशकों पर लगाये जा रहे न्यूनतम वैकल्पिक करए कंपनियों की घटती आमदनी और कृषि क्षेत्र में प्राकृतिक आपदाओं के कारण आए संकट के चलते मांग में आने वाली संभावित कमी आदि त्वरित कारण बताये जा रहे हैं। अप्रैल माह में विदेशी संस्थागत निवेशकों ने 1100 करोड़ रुपये के शेयरों की निवल बिकवाली की ;सनफार्मा डील को छोड़करद्ध और अभी तक वे मई माह में 6500 करोड़ रुपये की निवल बिकवाली कर चुके हैं। ऐसे में अपने शेयर बेचकर वे काफी बड़ी मात्रा में विदेशी मुद्रा बाहर ले जा रहे हैंए जिसके चलते रुपये में भारी गिरावट आ रही है।डॉण् अश्विनी महाजनगौरतलब है कि वर्ष 2013 में भारतीय रुपया गिरकर 69 रुपये प्रति डॉलर के आसपास पहुंच गया था। उस समय स्थिति यह थी कि जीडीपी ग्रोथ घटकर मात्र 4ण्8 प्रतिशत तक पहुंच गई थीए उपभोक्ता महंगाई की दर 12.13 प्रतिशत के आसपास पहुंच रही थी और विदेशी व्यापार घाटा जीडीपी के 11 प्रतिशत और विदेशी भुगतान घाटा 4ण्8 प्रतिशत तक पहुंच गया था। ऐसे में भारतीय रुपया एशियाई करेंसियों में सबसे ज्यादा तेजी से गिराए जिसके चलते पहले से चल रही भारी महंगाई की स्थिति उससे ज्यादा बदतर हो गई।लेकिन आज परिस्थितियां भिन्न हैं। भारत की जीडीपी ग्रोथ चीन की ग्रोथ को पार कर चुकी है। उपभोक्ता महंगाई तो घटी ही हैए थोक महंगाई और अधिक कम हुई है। आज देश के सामने कोई बड़ा विदेशी भुगतान संकट भी नहीं है। हाल ही में जारी विश्व बैंक की एक रपट में कहा गया था कि भारत में बिजनेस करना काफी कठिन है।शेयर बाजारों का रुख जैसा भी होए शेष दुनिया में देश की अर्थव्यवस्था के प्रति आशावादी रुख है। आईएमएफ की रिपोर्ट में मोदी सरकार द्वारा उठाये गए कदमोंए विशेष तौर पर जीएसटीए जनधन योजनाए विदेशी निवेश इत्यादि को विशेष तौर पर सराहा गया है। पूर्व में जो देश राजनीतिक अस्थिरता और मंदी से गुजर रहा थाए अब उसके प्रति दुनिया के विश्वास में खासा इजाफा हुआ हैए जिसके चलते 2013 में 290 अरब डॉलर की तुलना में मार्च 2015 तक 344 अरब डॉलर का विदेशी निवेश हो चुका है। लेकिन रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि कंपनियों के कर्ज बढ़ने के कारण शेयर बाजारों में गिरावट होना स्वाभाविक है।वर्तमान में शेयर बाजारों में गिरावट संस्थागत निवेशकों के अपने कारण हो सकते हैं। भारतीय अर्थव्यवस्था में कमजोरी वर्तमान शेयर बाजार में वर्तमान गिरावट का कारण कतई नहीं है। जहां तक रुपये के अवमूल्यन का सवाल हैए वह संस्थागत निवेशकों द्वारा धन को बाहर ले जाने के कारण होता है। ऐसे में रिजर्व बैंक को चाहिए कि वह रुपये में गिरावट को थामने के लिए बाजार में हस्तक्षेप करे और अपने खजाने से डॉलर बाजार में बेचे। इस प्रकार की अस्थायी व्यवस्था करना कोई नई बात नहीं है।
SOURCE : V
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