क्या कर बैठा चीन
मुंबई आतंकी हमले के मुख्य आरोपी और लश्कर ए तैयबा के प्रमुख आतंकवादी जकी उर रहमान लखवी को जेल से छोड़े जाने के मुद्दे पर चीन का पाकिस्तान के साथ खड़ा होना भारत नहींए पूरी दुनिया के लिए एक बड़ी घटना है। 26 नवंबर 2008 को मुंबई शहर में कत्लेआम जैसी इस घटना ने संसार के सभी शांतिप्रिय लोगों को झकझोर कर रख दिया था। जिस तरह से भारतीय सुरक्षा बलों और मुंबई पुलिस के जवानों ने इस घटना का मुकाबला किया और दस में से एक हमलावर आतंकी अजमल कसाब को जिंदा पकड़ लियाए उसका पूरी दुनिया में चल रही आतंकवाद विरोधी मुहिम पर जबरदस्त असर पड़ा।
कसाब के जरिए मिले ठोस सबूतों की बदौलत ही सभी अंतरराष्ट्रीय कूटनीतिक मंचों पर यह माना जाने लगा कि कुछ श्नॉन स्टेट ऐक्टर्सश् पाकिस्तान को अपना अड्डा बनाकर वहीं से आतंकवादी गतिविधियां संचालित कर रहे हैं। उसके बाद स्वाभाविक रूप से पाकिस्तान सरकार पर इन आतंकवादी गिरोहों और उनके नेताओं पर अंकुश लगाने का दबाव बढ़ा तो उसकी ओर से की जाने वाली हीला.हवाली भी सबकी नजरों में आई। इन्हीं सब का मिला.जुला नतीजा था कि इस बार जब भारत ने संयुक्त राष्ट्र की पाबंदी समिति ;सैंक्शन कमिटीद्ध में यह बात उठाई कि लखवी को जेल से रिहा किया जाना संयुक्त राष्ट्र के प्रस्ताव 1267 ;जो आतंकवादी समूहों से जुड़े नामित व्यक्तियों और संस्थाओं से संबंधित हैद्ध का उल्लंघन है और इसके लिए पाकिस्तान के खिलाफ कार्रवाई होनी चाहिएए तो पाबंदी समिति के सारे सदस्य इसके पक्ष में थे।
एकमात्र अपवाद रहा चीनए जिसने अपने वीटो पावर का इस्तेमाल करते हुए इस प्रस्ताव को रुकवा दिया। दिलचस्प बात है कि चीन ने अपने इस स्टैंड के पक्ष में दलील भी ठीक वही दीए जिसकी आड़ अब तक पाकिस्तान लेता रहा है। यानी यह कि भारत लखवी के खिलाफ पर्याप्त सबूत नहीं दे पाया है। अगर एक सरकार किसी अपराधी को बचाने में जुट जाए तो उसके खिलाफ संसार के सारे सबूत नाकाफी साबित होंगे। चीन को इस संबंध में अलग से कुछ बताने की जरूरत नहीं है। लेकिन उसे यह याद दिलाना जरूरी है कि आतंकवाद जितनी बड़ी समस्या भारत के लिए हैए उतनी हीए बल्कि उससे भी ज्यादा बड़ी यह खुद चीन के लिए है।
पाकिस्तान को किसी भी मुद्दे पर समर्थन देने या न देने का फैसला चीन अपनी दूरगामी रणनीति के तहत ही करेगाए लेकिन उसका जो भी कदम आतंकवाद के प्रति नरमी बरतने या उसे संरक्षण देने का बहाना साबित होगाए उसके नतीजे अंततरू उसे ही भुगतने पड़ेंगे। आज विश्व में शायद ही कोई ऐसा देश होए जो किसी न किसी रूप में आतंकवाद की आंच को महसूस न कर रहा हो। ऐसे में वैश्विक कूटनीतिक मंचों पर किसी भी देश को ऐसा कोई स्टैंड नहीं लेना चाहिएए जिसका फायदा आतंकवाद के लिए जिम्मेदार किसी नॉन स्टेट ऐक्टर को मिलता हो। ऐसा करना एक नया भस्मासुर पैदा करने जैसा ही हैए क्योंकि अंततरू उसे पैदा करने वाला भी उसका शिकार होने से बच नहीं पाएगा।
SOURCE :http://navbharattimes.indiatimes.com/
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