जे पीर पराई जाने रे
आप अपनी जिंदगी किस तरह जीना चाहते हैंघ् यह तय होना जरूरी हैए आखिरकार जिंदगी है आपकी! यकीननए आप जवाब देंगे.जिंदगी तो अच्छी तरह जीने का ही मन है लेकिन यहीं एक अहम प्रश्न उठता है.जिंदगी क्या हैए इसके मायने क्या हैंघ् इसका यही निष्कर्ष सामने आया है कि दूसरों के भले के लिए जो सांसें हमने जी हैंए वही जिंदगी है पर कोई जीवन अर्थवान कब और कैसे हो पाता हैए यह जानना बेहद आवश्यक है। विंस्टन चर्चिल ने एक बार कहा थाए ष्हम जो अर्जित करते हैंए उससे जीविका चलती है और जो हम देते हैंए उससे जीवन बनता है।ष्
दरअसलए जीवन एक व्यवस्था है। ऐसी व्यवस्थाए जो जड़ नहींए चेतन है। स्थिर नहींए गतिमान है। इसमें लगातार बदलाव भी होने हैं। जिंदगी की अपनी एक फिलासफी हैए यानी जीवन.दर्शन। सनातन सत्य के कुछ सूत्रए जो बताते हैं कि जीवन की अर्थवत्ता किन बातों में है। ये सूत्र हमारी जड़ों में हैं.पुरातन ग्रंथों मेंए हमारी संस्कृति मेंए दादा.दादी के किस्सों मेंए लोकगीतों में।हम केवल घर को ही देखते रहेंगे तो बहुत पिछड़ जायेंगे और केवल बाहर को देखते रहेंगे तो टूट जायेंगे। मकान की नींव देखे बिना मंजिलें बना लेना खतरनाक है पर अगर नींव मजबूत है और फिर मंजिल नहीं बनाते तो अकर्मण्यता है। स्वयं का भी विकास और समाज का भी विकासए यही समष्टिवाद है और यही धर्म है। निजीवाद कभी धर्म नहीं रहा। जीवन वही सार्थक हैए जो समष्टिवाद से प्रेरित है। केवल अपना उपकार ही नहींए परोपकार भी करना है। अपने लिए नहीं दूसरों के लिए भी जीना है। जाॅन मेसन ब्राउन का कथन जीवन की इन्हीं सच्चाइयों को उद्घाटित करता हैकृष्जीवन पर हमारा कोई कर्ज नहीं हैए हम उसके कर्जदार हैं। असली खुशी किसी उद्देश्य के लिए अपने आपको लुटा देने से आती है।ष्
महात्मा गांधीए जो अपने को दरिद्रनारायण का पुजारी कहलाने में खुशी अनुभव करते थेए के आश्रम में नियमित यह गीत भी गाया जाता था रू.
वैष्णव जन तो तैने कहियेए जे पीर पराई जाने रे।
पर दुखे उपकार करे तोयेए मन अभिमान न आणे रे।
भगवान श्रीकृष्ण ने भी कहा है.सरलता ही जीवन हैए कुटिलता मृत्यु.यही जीवन का सार है। महान वैज्ञानिक आइंस्टीन का कथन भी इसी दिशा में इंगित करता है रू सरल एवं सादा जीवन ही श्रेष्ठ हैए यह मनुष्य के मन.मस्तिष्क और स्वास्थ्य के लिये भी उत्तम है।
ब्रिटिश प्रधानमंत्री सर विंस्टन चर्चिल गांधीजी को भले ही अध.नंगा फकीर कहकर उनका उपहास करते थेए किन्तु गांधीजी के तन पर मात्र एक ही कपड़ा व लंगोटी उन्हें देश के गरीबों का रहनुमा होने की याद दिलाती थी। गरीबों के हित.चिन्तक होने की प्रेरणा बापू को रस्किन की पुस्तक ष्अन्टु दिस लास्टष् से मिलीए इसीलिये उन्होंने ष्अन्त्योदय से सर्वोदयष् का नारा दिया।
ईसा मसीह के बारे में कहा जाता है कि वे सदैव गरीब और दलित तथा पापियों के उद्धार के लिये जीये। ष्अपने पड़ोसी को प्यार करनेष् की बात कहकर उन्होंने अपने से निकटस्थ का भी हित.साधने का संदेश दिया तथा एक शाश्वत सूत्र दिया कि तुम दूसरों के साथ वैसा ही व्यवहार करोए जैसा तुम दूसरों से अपने साथ व्यवहार चाहते हो। टाॅलस्टाय ने एक बार कहा थाकृजीवन का एकमात्र उद्देश्य मानवता की सेवा करना है।
महावीरए बुद्ध आदि महापुरुषों ने भी कहा है.दूसरों की भलाई करो और भूल जाओ। एक बुरे व्यक्ति को अच्छाई से जीतोए क्रोध को क्षमा से जीतोए कंजूस को और ष्देकरष् जीतोए हिंसा को अहिंसा से व घृणा को प्यार से जीतो। अठारह पुराणों के सार के रूप में दो ही बातें मुख्य हैं. दूसरों का उपकार करना ही धर्म और दूसरों को कष्ट देना ही पाप है। इसीलिये कहा है.परहित सरिस धर्म नहीं भाई। पर पीड़ा सम नहि अधमाई। भक्त चंडीदास ने भी कहा है.साबारे ऊपर मानुज सत्य। ताहारे ऊपर नाहि। सर्वोपरि सत्य व धर्म इंसानियत हैए इससे अलग कुछ नहीं।
वर्तमान युग में स्वार्थ इतना प्रबल हो गया है कि ष्परस्पर देवो भवष् की बात स्वप्न जैसी लगती है। एक समय थाएऐसा काम करने से व्यक्ति विरत रहता थाए जो दूसरे का अहित करता हो। आज इसका उलटा हो गया है। हमारा मतलब सधना चाहिएए भले ही उससे दूसरे का कितना ही अहित क्यों न हो जाये। वह व्यवस्था आज स्वप्नवत हो गई हैए जब जीवन.मूल्यों की प्रधानता थीए जिसमें भ्रातृ.भाव था और जिसमें एक.दूसरे के लिए त्याग और बलिदान की भावना थीए दूसरे के दुःख को अपना दुःख माना जाता थाए एक इंसानियत का रिश्ता सर्वोपरि होता था। हम उसी व्यवस्था को लाने का प्रयत्न करें।
फरिश्ते से बेहतर है इनसान बननाए मगर इसमें लगती है मेहनत ज्यादा। रत्तिदेव का यह कथन व्यक्ति को इस बात का संकेत व प्रेरणा देता है कि मुझे राज्यए सुख.वैभव.स्वर्ग अथवा पुनर्जन्म से मुक्ति नहीं चाहिये। मैं तो दीन.दुखी लोगों की सेवा करना चाहता हूं। इसलिये हर इनसान को जीवन का एक.एक क्षण जीना हैकृअपने लिएए दूसरों के लिए। यह संकल्प सदुपयोग का संकल्प होगाए दुरुपयोग का नहीं।
SOURCE : dainiktribuneonline.com
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