लापता बच्चों की गुत्थी
आज लापता बच्चों की दिन.ब.दिन बढ़ती तादाद अब हमारे देश की ही नहींए दुनिया की समस्या बन चुकी है। गौरतलब है कि दुनिया में तकरीबन 12 लाख से अधिक बच्चों की सालाना खरीद.फरोख्त होती हैए जिनमें एक बहुत बड़ी तादाद भारतीय बच्चों की होती है। समूचे देश में आजकल सालाना तकरीबन एक लाख बच्चे गायब होते हैं।
बीते साल संसद में पेश सरकारी आंकड़ों के अनुसार जनवरी 2011 से जून 2014 के बीच 3ण्27 लाख बच्चे गायब हुए। इनमें से तकरीबन 45 फीसदी से ज्यादा बच्चों का आज तक पता नहीं लगाया जा सका है। इन 3ण्27 लाख गायब बच्चों में 1ए81ए011 लड़कियां और 1ए46ए647 लड़के शामिल हैं। इसमें देश के चार राज्य शीर्ष पर हैं जिनमें महाराष्ट्रए मध्य प्रदेशए दिल्ली और आंध्र प्रदेश शामिल हैं। इन राज्यों में क्रमशः 50ए947ए 24ए836ए 19ए948 और 18ए540 बच्चे गायब हुए हैं।जाहिर है कि ये बच्चे आपराधिक गिरोहों के हत्थे चढ़ जाते हैं जहां यातनाए शोषणए दुर्व्यवहार और उत्पीड़न उनकी नियति बन जाती है। पर्यटन उद्योग ने इसमें प्रमुख भूमिका निभाई है जिसके चलते इस बाजार में आज कम उम्र की बच्चियों की मांग सबसे ज्यादा है। यही वजह है कि बीते सालों में 12 से 16 वर्ष तक उम्र की लापता लड़कियों की तादाद ज्यादा रही। जबकि 12 साल से कम उम्र के लापता बच्चों में लड़कों की तादाद ज्यादा है।
देश की राजधानी दिल्ली समूचे देश में आये.दिन लापता होने वाले बच्चों के मामले में शीर्ष पर है। राजधानी दिल्ली से सटे जिलों यथा गाजियाबादए गौतम बुद्ध नगर खासकर नोएडा की हालत और भी बदतर है। इन इलाकों में तो बच्चे सुरक्षित ही नहीं हैं। इसमें सबसे बड़ा कारण पुलिस की उदासीनताए गरीबी और कानून व्यवस्था व बाल अधिकारों को लेकर जागरूकता का अभाव है। देखा जाये तो दिल्ली से औसतन हर रोज 18 से 19 बच्चे गायब होते हैं। आंकड़ों के हिसाब से जनवरीए 2015 से 15 अप्रैलए 2015 के बीच दिल्ली से 2168 बच्चे लापता हुए। मासिक हिसाब से यह आंकड़ा करीब पांच सौ चालीस बच्चों का बैठता है जबकि इन लापता बच्चों में से 1202 बच्चे ही वापस परिवार को मिल सके। 966 बच्चों का अभी तक कोई पता नहीं चल सका है।
यदि मिसिंग पर्सन्स स्कवॉड की मानें तो ज्यादातर मामलों की जांच में बच्चों को अगवा करने वाले उनके परिचित होते हैं। आंकड़े बताते हैं कि करीब पचास फीसदी मामलों में परिचितए नौकरए नौकरानियों या पूर्व कर्मचारियों का हाथ होता है। राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की मानें तो हर साल दिल्ली से तकरीबन सात हजार बच्चे गायब हो जाते हैं। पुलिस के पास पहुंची लापता बच्चों की सूचनाओं में से कुल मिलाकर बमुश्किल 10.12 फीसदी मामलों की ही पुलिस में रिपोर्ट दर्ज हो पाती है। असल में बच्चों की गुमशुदगी के मामले अब पुलिस से ज्यादा चाइल्ड हेल्प लाइन के पास दर्ज कराये जाते हैं। पुलिस के इस रवैये और बच्चों की गुमशुदगी की लगातार बढ़ती घटनाओं पर तकरीबन पांच साल पहले दिल्ली हाईकोर्ट और सुप्रीमकोर्ट पुलिस को चेता भी चुकी है।
बचपन बचाओ आंदोलन के संस्थापक और नोबेल पुरस्कार से सम्मानित कैलाश सत्यार्थी का कहना है कि इनके गायब होने के पीछे आपराधिक गिरोह का हाथ होता है। अपनी साख बचाने के लिए पुलिस द्वारा सामाजिक या आर्थिक कारणों की आड़ ली जाती है। यह भी कड़वा सच है कि अधिकांश बच्चे आपराधिक गिरोहों द्वारा उठाये जाते हैं जिन्हें ढाबोंए भीख मांगनेए जेब तराशने के काम के लिए और बच्चियों को बाल वेश्यावृत्ति के लिए बेच दिया जाता है। इसके अलावा इनका इस्तेमाल ड्रग्सए हथियारों की तस्करीए बाल पोर्न वीडियो में काम करवाने के लिएए चोरी और लूटपाट के लिएए बाल मजदूरी के लिए किया जाता है।
बच्चों का पता लगाने के लिए मिसिंग पर्सन्स स्कवॉड में पूरा विवरण दर्ज कर उसे पूरे देश में मैसेज किया जाता है। गौरतलब है कि लापता बच्चों के मामलों पर नजर रखने के लिए संप्रग सरकार के दौरान करीब 32 राज्यों ने केन्द्र के साथ एक करारनामे पर दस्तखत किये थेए जिसके तहत वे एक ही सॉफ्टवेयर के जरिये गुमशुदा बच्चों के मामलों पर नजर रखने और उनकी जानकारी का आदान.प्रदान कर सकेंगे। यदि पुलिस ही सही ढंग और ईमानदारी से अपने काम को अंजाम दे तो फिर न्यायपालिका को इस मामले में हस्तक्षेप करने की जरूरत ही नहीं पड़ेगी।
SOURCE : http://dainiktribuneonline.com/2015/06/
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