नोट बदलने से क्या हालात भी बदलेंगे
वर्ष 2005 से पहले जारी करेंसी नोटों को चलन से बाहर करने की रिजर्व बैंक द्वारा तय 30 जून तक समय.सीमा समाप्त होने वाली है। इसके बाद 2005 से पहले छपे करेंसी नोट वैध रहेंगेए लेकिन उनका चलन बंद हो जायेगा। केन्द्रीय बैंक ने 2005 से नोटों के पिछले भाग में छोटे अक्षरों में उसे जारी करने का वर्ष छापना शुरू किया है। कहा जा रहा है कि ऐसे करेंसी नोटों में सुरक्षा फीचर 2005 के पहले के करेंसी नोटों से बेहतर है।
बहरहालए 2005 के करेंसी नोटों की वैधता अगले दिशा.निर्देश के जारी होने तक बनी रहेगी। हांए इस तरह के करेंसी नोटों को बदलने के लिये लोगों को 30 जून के बाद बैंक की शरण में जाना होगा। कहने का तात्पर्य है कि दुकानदार या व्यक्ति ऐसे करेंसी नोटों को लेने से मना कर सकता हैए लेकिन बैंक ग्राहकों एवं गैर.ग्राहकों से 2005 से पहले जारी करेंसी नोटों को बदलने का काम करते रहेंगे। 1 जुलाई 2015 से 500 रुपये और 1000 रुपये के 10 से अधिक नोट बदलने के लिए गैर.ग्राहकों को करेंसी नोट बदलने वाली शाखा में पहचान प्रमाणपत्र और आवास प्रमाणपत्र जमा कराना होगा।यहां बताना समीचीन होगा कि रिजर्व बैंक पहली बार इस तरह का कदम नहीं उठाने जा रहा है। इसके पहले 1978 में जनता पार्टी की सरकार के समय 1000ए 5000 और 10000 रुपये के करेंसी नोटों को रिजर्व बैंक ने चलन से बाहर किया था। उल्लेखनीय है कि 1949 में 5000 और 10000 रुपये के करेंसी नोट जारी किये गये थे। उस कालखंड में देश में काले धन की व्यापकता में जबरदस्त इजाफा हुआ था। यह कदम विशेष तौर पर काले धन पर नियंत्रण कायम करने के लिए उठाया गया था।
बीते सालों में देश में नकली करेंसी नोटों के चलन में गुणात्मक वृद्धि हुई है। भ्रष्टाचार की वजह से भी काले धन में अकूत बढ़ोतरी हुई है। इस आलोक में कहा जा सकता है कि सरकार अपने प्रस्तावित कदम की मदद से नकली करेंसी नोटों और काले धन पर अंकुश लगाना चाहती है। एक अनुमान के अनुसार 2011.12 के दौरान देश में 69ण्38 करोड़ रुपये के जाली करेंसी नोट चलन में थे। जानकारों की मानें तो 27 अरब के जाली करेंसी नोट 100 और 500 रुपये के हैं। यह महज एक अनुमान हैए जो हकीकत से बहुत ही कम है। नकली करेंसी नोटों की पहचान जरूर थोड़ी मुश्किल हैए लेकिन इस दिशा में उम्मीद की किरण यह है कि 2005 के बाद छपे करेंसी नोटों में सुरक्षा के कई नये मानकोंए मसलनए मशीन से देखे जा सकने वाले सिक्योरिटी थ्रेडए इलेक्ट्रोटाइप वाटर मार्कए प्रकाशन का वर्ष आदि को जोड़ा गया हैए जिसकी पहचान से नकली करेंसी नोटों को चलन से बाहर किया जा सकता है।
अपने ताजा फैसले के माध्यम से इस बार भी रिजर्व बैंक काले धन पर नियंत्रण करना चाहता है। इस क्रम में 1978 की तरह 2005 के पहले के करेंसी नोट को बदलने के क्रम में अफरातफरी की स्थिति बनने से इनकार नहीं किया जा सकता। उम्मीद है कि कालांतर में बड़ी संख्या में बड़े करेंसी नोटों के रूप में नकदी का खुलासा होगा। सीएमएस की रिपोर्ट के अनुसार 2014 के लोकसभा चुनाव में खर्च की गई एक तिहाई राशि काला धन थी। भारत की 70 प्रतिशत आबादी अभी भी गांवों में रहती है। इस आबादी में निरक्षर लोगों की संख्या ज्यादा है। दूसरी बात यह कि हमारे देश में वित्तीय समावेशन की प्रक्रिया अभी तक पूरी नहीं हुई है। मौजूदा समय में बैंकिंग सुविधाओं से एक बड़ी आबादी महरूम है। लिहाजाए 2005 से पहले छपे करेंसी नोटों को चलन से बाहर करने से ग्रामीणों की एक बड़ी आबादी भी प्रभावित होगी। इसलिए ग्रामीणों को इस दिशा में जागरूक करने की जरूरत हैए जो निश्चित रूप से आसान नहीं है। जाहिर है ईमानदार लोगों के पास भी 2005 से पहले के करेंसी नोट होंगे और अनजाने में या जानकारी के अभाव में उनके पास रखे करेंसी नोट भी बेकार हो सकते हैंए जिनकी भरपाई करना उनके लिए आसान नहीं होगा।
जहां तक नकली करेंसी नोटों के देश में चलन की बात है तो उसका एक अहम हिस्सा पड़ोसी देशों से आता है। बावजूद इसके सरकार इस पर काबू पाने में नाकाम रही है। इस बाबत दूसरा पहलू यह है कि 2005 के बाद के करेंसी नोट भी बड़ी संख्या में नकली हैंए लेकिन उस पर अंकुश लगाने के संबंध में सरकार चुप्पी साधे हुए है। लिहाजा 2005 के पहले के करेंसी नोट और उसके बाद के करेंसी नोट के बीच सीमा रेखा खींचना औचित्य से परे है। सच कहा जाये तो नकली करेंसी नोटों से निजात पाने के लिए सरकार को अपने खुफिया तंत्र को मजबूत बनाना होगा। पूर्व में भी रिजर्व बैंक ने इस तरह का निर्णय लिया थाए जिसका परिणाम संतोषजनक नहीं रहा। तब गेहूं के साथ घुन पिसाने वाली कहावत ग्रामीण इलाकों में खूब चरितार्थ हुई थी।
देश में नकली करेंसी नोटों का चलन और काला धन जरूर एक गंभीर मुद्दा हैए लेकिन इस पर लगाम लगाने के लिए रिजर्व बैंक द्वारा करेंसी नोट को चलन से बाहर करना तर्क की कसौटी पर खरा नहीं उतरता। इसके लिये प्रशासनिक स्तर पर कड़े कदम उठाने की जरूरत है। सीमा रेखा पर चौकसी बढ़ानेए पुलिस को चुस्त.दुरुस्त करनेए खुफिया तंत्र को चौकस व काबिल बनाने आदि की कवायद से स्थिति में सुधार आ सकता है।
SOURCE : http://dainiktribuneonline.com/2015/06/
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