सिर पर एक छत
केंद्र सरकार ने शहरी गरीब तबकों के लिए अपनी फ्लैगशिप परियोजना श्हाउसिंग फॉर ऑल बाई 2022श् के तहत अगले सात वर्षों में सभी बेघरों को घर मुहैया कराने के फैसले पर मोहर लगा दी है। यह योजना तीन चरणों में लागू होगीए जिसमें तीन सौ शहरों को समेटने वाले दो चरण इसके कार्यकाल में पड़ने वाले हैं।योजना के दो स्पष्ट हिस्से हैं। एकए झुग्गी.झोपड़ियों में रहने वालों को तैयार फ्लैट देना और दूसराए निजी पहल पर अपना मकान बनाने या खरीदने वालों को बैंकों से मिलने वाले कर्ज में जबर्दस्त राहत देना। झुग्गी पुनर्वास के तहत केंद्र सरकार की ओर से प्रति फ्लैट एक लाख रुपये का अंशदान दिया जाएगाए जबकि आर्थिक रूप से कमजोर तबकों द्वारा निजी पहल पर बनने या खरीदे जाने वाले घरों के लिए 15 साल के कर्ज पर लगने वाले ब्याज में 6ण्5 फीसदी हिस्सा सरकार बैंकों को अपनी तरफ से मुहैया कराएगी।
दूसरे शब्दों में कहें तो गरीब तबके मौजूदा दरों पर मात्र 4 फीसदी ब्याज वाला बेहद सस्ता होम लोन बैंकों से उठा सकेंगे। जबर्दस्त मंदी से जूझ रहे हाउसिंग सेक्टर के लिए ये दोनों सरकारी पहलकदमियां काफी राहत देने वाली साबित होंगीए हालांकि अतीत में ऐसी पहलकदमियों को जिन अड़चनों का सामना करना पड़ा हैए वे अभी और भी मजबूत ढंग से इस परियोजना के आड़े आएंगी और सरकार को उनसे निपटने के लिए शुरू से ही सतर्क रहना होगा।
झुग्गियों की जगह फ्लैट खड़े करने की पहल आज तक कहीं भी परवान नहीं चढ़ पाई हैए क्योंकि इनमें रहने वालों को यह फायदे का सौदा नहीं लगता। झुग्गी.झोपड़ियों में रहने वाले लोग या तो अपनी रहने की जगह में ही कोई छोटा.मोटा काम.धंधा चलाते हैंए या फिर उनकी काम की जगह कहीं आस.पास ही होती है। पुनर्वास में उनका कारोबार या रोजगार चल पाने की कोई गारंटी नहीं होतीए लिहाजा वे इसके लिए राजी नहीं होते। कई बार ऐसा भी होता है कि उजाड़ा कोई और जाता है और पुनर्वास किसी और का होता है ;अक्सर उसकाए जिसके पास पहले से ही एक या एक से ज्यादा फ्लैट होते हैंद्ध।
इस प्रक्रिया में मुख्य भूमिका राज्य सरकारों को निभानी पड़ती हैए लिहाजा झुग्गी पुनर्वास की कामयाबी के लिए केंद्र सरकार को राज्यों से समझदारी बनाकर चलना होगा। होम लोन में राहत की योजना अपेक्षाकृत कम उलझी हुई है। मुश्किल सिर्फ एक है कि खासकर महानगरों में आम तौर पर सारे शहरों में फ्लैटों की न्यूनतम कीमतें ही इतनी ज्यादा हो चुकी हैं कि सस्ते से सस्ता ब्याज भी कमजोर तबकों को घर खरीदने के लिए प्रेरित नहीं कर पा रहा है। इन सारी उलझनों के बावजूद एनडीए सरकार की यह पहल स्वागत योग्य है और अपनी पूरी ताकत लगाकर अगर वह अपने कार्यकाल में इसके एक हिस्से को भी अमल में उतार पाई तो शहरी गरीब तबकों की नजर में वह अपनी एक यादगार छवि बना ले जाएगी।
SOURCE : http://navbharattimes.indiatimes.com/other/opinion/editorial/articlelist/2007740431.cms
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