Sunday, 28 June 2015

कंपल्सरी वोटिंग

कंपल्सरी वोटिंग

पिछले कुछ चुनावों में वोटिंग परसेंटेज में दस प्रतिशत तक की वृद्धि देखी गई है। जिस शहरी मध्यवर्ग को पहले पोलिंग बूथ के पास भी फटकते नहीं देखा जाता थाए वह अब अपने एक.दो बेशकीमती घंटे लगाकरए लंबी.लंबी लाइनों में खड़ा होकर पूरे उत्साह से वोट देता नजर आता है। लेकिन निश्चित रूप से मतदान प्रतिशत में अब भी सुधार की गुंजाइश है और इसके लिए जो कुछ भी किया जा सकता हैए उसे करने में कोई कोताही नहीं बरती जानी चाहिए। गुजरात में इसे लेकर जल्द ही एक बड़े प्रयोग की शुरुआत होने जा रही है। आने वाले नगरपालिका चुनावों में वहां वोट देना अनिवार्य बनाया जा सकता है। यानी अगर मतदाता सूची में नाम होते हुए भी आप अपना वोट नहीं डालते तो इसके लिए आपको कुछ जुर्माना देना पड़ सकता है।

जाहिर हैए वोट डालना या न डालना सिर्फ वोटर की इच्छा.अनिच्छा पर निर्भर नहीं करता। वोट न डालने को गैरकानूनी बनाने से पहले सरकार को इसका इंतजाम करना होगा कि सभी वोटरों को आसानी से और कम समय में वोट डालने की सुविधा उपलब्ध हो। अगर पोलिंग बूथ दूर है और वोटर के पास एक घंटा लगाकर वहां जाने और दो घंटा वोट डालने की लाइन में लगने का समय नहीं हैए या फिर उसके स्वास्थ्य की हालत ऐसी नहीं है कि सारी सुविधाएं मौजूद होने के बावजूद अपना वोट डाल सकेए तो फिर उसे अपराधी ठहराते हुए उस पर जुर्माना ठोक देना गलत होगा। कोई भी व्यक्ति इसे अपने मानवाधिकार का उल्लंघन बताते हुए इसके खिलाफ अदालत में जा सकता है।

इसलिए गुजरात सरकार के सामने असली चुनौती अपने राज्य के सभी मतदाताओं को वोट डालने की इतनी अधिक सुविधा मुहैया कराने की होगी कि किसी को शिकायत का मौका ही न मिले। इसके लिए मतदान केंद्र बढ़ाने से लेकर ऑनलाइन वोटिंग तक के उपायों पर काम किया जा रहा है। इस सब के बावजूद वोट न डालने का जुर्माना सांकेतिक ही रखना चाहिएए और भूल.चूक लेनी.देनी के लिए भी कुछ गुंजाइश जरूर छोड़ी जानी चाहिएए ताकि एक भी व्यक्ति को ऐसा न लगे कि उसकी कोई गलती न होने के बावजूद सरकार ने व्यर्थ ही उसे अपराधियों की श्रेणी में डाल दिया है।
SOURCE : http://navbharattimes.indiatimes.com/

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