स्मृतियों व संबल के प्रति कृतज्ञता
किसी की प्रशंसा करने का फायदा यह होता है कि व्यक्ति इसमें चीजों को अपने मनमाफिक सुव्यवस्थित करने को स्वतंत्र होता है। सेमुअल बटलर ने अपने लगभग आत्मकथात्मक उपन्यास.ष्दि वे ऑफ ऑल फ्लैसष् में इस दृष्टांत का उल्लेख किया है। यही बात हमारी स्मृतियों पर लागू होती हैए जहां हम अपने जीवन की मधुर स्मृतियों को याद करते हैं और अप्रिय और दुखद बातों का उल्लेख करने से बचते हैं। दि ट्रिब्यून की बागडोर थामने के दौरान पांच साल के जीवंत घटनाक्रम के बीच जब मैंने पद छोड़ा है तो यादों को ताजा करने की अनुमति आप लोगों से चाहूंगा।
इस महत्वपूर्ण दायित्व को दिये जाने के घटनाक्रम को याद करता हूं। मार्च 2010 में जब मैंने पदभार ग्रहण किया तो पंजाब के पूर्व चीफ सेक्रेटरी स्वण् आरण्एसण् तलवार तब दि ट्रिब्यून ट्रस्ट के प्रेजीडेंट थे। उन्होंने सिर्फ एक पंक्ति कही थीकृष्दि ट्रिब्यून की स्वतंत्रता को संभालिए और पत्रकारिता की गरिमा को बनाये रखिए।ष् यह किसी संपादक को दिये जाने वाले दायित्वों की सर्वोत्तम परिभाषा थी।कार्यालय में पहले सप्ताह के दौरान ही मैंने महसूस किया कि इस क्षेत्र में दि ट्रिब्यून को कितना प्यार मिलता है और इसके प्रति कैसा श्रद्धा भाव है। पंजाब के तत्कालीन वित्तमंत्री मनप्रीत सिंह बादल ने मुझसे कहा कि दि ट्रिब्यून उनके लिए मां के दूध के समान है जिसको पढ़ते हुए वे बड़े हुए हैं। अब चाहे शक्तिसंपन्न तबका हो या आम आदमीए अमीर हो या गरीबए हाई हील वाले हों या चप्पल वालेए उनके लिए यह महज अखबार ही नहीं थाए यह उनके परिवार के सदस्य जैसा थाए कई पीढ़ियों से।
कई वरिष्ठ अधिकारियों ने बेझिझक स्वीकार किया कि उन्होंने दि ट्रिब्यून को पढ़ते हुए अंग्रेजी सीखी है। अखबार के कई पाठकों ने बताया कि उन्होंने अपनी एलबमों में उन कतरनों को लगाया हुआ है जिनमें उनकी बोर्ड की परीक्षा के परिणाम व नाम प्रकाशित हुए थे। कुछ ऐसे थे जिन्होंने स्कूल.कालेजों के यादगार पलों को दर्ज करने वाली कतरनों को दस्तावेज के रूप में संभाल कर रखा हुआ था। ऐसे विरले ही मौके सामने आए जब गुस्सा नजर आया हो। एक गोल्फर ने मैदान में मुझसे कहा कि आज से दस साल पहले पत्र में छपी खबर में तथ्यात्मक त्रुटि थी।
पंजाब के मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल ने मुझसे कहा कि वे बीते वर्षों के अखबार की कतरनों को क्रमबद्ध रूप से रखते हैं। सुबह अखबार पढने के बाद व्यक्तिगत रूप से अधिकारियों को उनके विभाग से जुड़ी खबरों पर एक्शन लेने को कहते हैं। हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने मुझे बताया कि तब तक उनकी सुबह अधूरी होती है जब तक वे दि ट्रिब्यून न पढ़ लेंं।
ऐसे भी कई मौके आए हैं जब ये लोग सत्ता में होते हैं तो वे दि ट्रिब्यून में प्रकाशित समाचारों को पसंद नहीं करते और मुझसे शिकायत करते थे। मेरा मुख्य ध्येय यही रहता था कि कोई तथ्यात्मक त्रुटि न हो और खबर निष्पक्ष व संतुलित हो। यदि ऐसा नहीं पाया गया तो उसमें फिर सुधार भी किया गया। अन्यथा हम स्पष्ट थे कि कोई हम पर खबर प्रकाशन में अवरोध का दबाव न बना सके। इस बाबत निर्णय हमारा होता था और सिर्फ हमारा। जिसका आधार प्राथमिकता होती थी। हम अपने लेखन का महत्व समझते थे और यह जानते थे कि यह कैसे लोगों के जीवन को प्रभावित करता हैए यहां तक कि उनके भविष्य को। हमने इस बात के लिए श्रमसाध्य प्रयास किये कि हम पत्रकारिता के उच्च मानदंडों का अनुपालन करें। हमने यह निर्णय पाठकों पर छोड़ा कि वे तय करें कि हमारे तीन सौ रिपोर्टरों द्वारा प्रतिदिन लिखे जाने वाले पांच लाख शब्दों द्वारा ऐसा किया जा सका।
विगत के मुकाबले अब ई.मेल व मोबाइल के जरिये पाठक सहजता से संपादकों से संवाद स्थापित कर पा रहे हैं। मुझे वक्त.बेवक्त फोन से चोरी और अधिकारियों द्वारा परेशान किये जाने की शिकायत मिलती रहती थी। कई कॉल सरकारी और कॉरपोरेट सेवाओं में खामियों को इंगित करती थी। वे चाहते थे कि दैनिक जीवन में दरपेश आने वाली समस्याओं को ट्रिब्यून उठाये। उस समय मैं एक डॉक्टर या पुलिसकर्मी की भांति चौबीसों घंटों उनकी बात सुनता था। मैं दि ट्रिब्यून के प्रति उनके विश्वास के चलते ऐसा करता रहा। दरअसल दि ट्रिब्यून और हमारा मिशन यही रहा है कि यह लोगों की आवाज बने।
राज चेंगप्पा
सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि मेरे इस कार्यकाल ने मुझे अपनी जड़ें पुनरू तलाशने का मौका दिया। मेरा जन्म फिरोजपुर में हुआ था और मैंने पंजाब तब छोड़ दिया था जब मैं चार वर्ष का था। पचास साल बाद जब मैंने दि ट्रिब्यून ज्वॉइन किया तो मैंने अपना जन्म स्थान देखने की इच्छा जाहिर की। मैंने अपने साथ अपने बेटे को लिया और उस एयरफोर्स हॉस्पिटल में गया जहां मेरा जन्म हुआ था। मैंने अस्पताल के बाहर खड़े होकर बंगलूरू में रहने वाली मां को फोन लगाया। हालांकि उम्रदराज मां स्मृतिह्रास के चलते पुरानी बातों को याद नहीं कर पाईं। बावजूद इसके यह मेरे लिए भावनात्मक क्षण था। इस बात को एक मां और उसका बेटा ही महसूस कर सकते थे। यह कई मायनों में पुत्तर की वापसी थी।
इस यात्रा के दौरान मैंने अमृतसर स्थित स्वर्ण मंदिर में श्रद्धा व्यक्त की और शांति की धारा को महसूस किया। मैं हरमंदिर साहेब के प्रथम तल पर बैठा और श्रद्धा में अभिभूत हो आंखें बंद कर लीं। उन क्षणों में मैंने खुद को सृष्टि के साथ एकाकार महसूस किया। मैने गुरु नानक देव के आध्यात्मिक संदेशकृएक ओंकार को समझा। इससे पहले मैं कई बार स्वर्ण मंदिर इस भाव को महसूस करने गया था। अब जब मैं नये दायित्वों का निर्वहन करूंगा तो दि ट्रिब्यून की सुखद अनुभूतियां मेरे साथ रहेंगी। मैं अपने साथ मानवता का महान संदेश लेकर जाऊंगा। आपके धैर्य के लिए आभार।
SOURCE : http://dainiktribuneonline.com/2015/06/
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