कर्ज से भी बेदखल
पब्लिक सेक्टर बैंकों द्वारा दिए जाने वाले हाउसिंग लोन के आंकड़े चिंताजनक स्थितियों का संकेत दे रहे हैं। शहरी विकास और आवास संबंधी संसदीय समिति के सामने रखे गए ये आंकड़े बताते हैं कि सरकारी बैंक और हाउसिंग फाइनैंस कॉरपोरेशन गरीबों और निम्न मध्यम वर्ग के लोगों को गृह ऋण देने में काफी कंजूसी दिखा रहे हैं।2011.12 के मुकाबले 2013.14 के आंकड़ों पर नजर डालने से पता चलता है कि इस छोटी सी अवधि में 10 लाख रुपए तक के चालू लोन 35 फीसदी से घटकर 26 फीसदी पर आ गए। दो लाख और पांच लाख रुपए तक के कर्ज के मामले में हालात और बुरे दिखते हैं। पांच लाख रुपए तक के चालू लोन जहां इस अवधि में 14 फीसदी से गिरकर 9 फीसदी पर आए वहीं दो लाख तक के लोन 2 फीसदी से सीधे 1 फीसदी हो गए। आंकड़ों में यह गिरावट इतनी तेज और हैरतनाक है कि इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती।
मीडिया में आई खबरें बताती हैं कि संसदीय समिति में सांसदों ने पार्टी के दायरे से ऊपर उठ कर कर्ज में कटौती के इस रुझान पर चिंता जताई। बैंकों या अन्य वित्तीय संस्थानों के कुल कारोबार में या उनके प्रॉफिट बढ़ने की रफ्तार में कमी के कोई संकेत नहीं हैं। यानी उनकी दिलचस्पी सिर्फ बड़ा कर्ज उठाने वाले अमीर ग्राहकों में है। ज्यादा ठोस शब्दों में कहें तो इन आंकड़ों से मायने यह निकलता है कि जो लोग पैसों से पैसा बनाने के खेल में माहिर हैं उनके लिए बैंकों की थैलियां खुली हुई हैंए लेकिन जो लोग अपनी जिंदगी की बुनियादी जरूरतें पूरी करने के लिए बैंकों का दरवाजा खटखटाते हैं या जिनके सामने अपने अस्तित्व का सवाल मुंह बाए खड़ा होता है उनकी मदद करने में बैंकों की कोई रुचि नहीं है।
यह हाल अगर सरकारी बैंकों का है तो निजी बैंकों से तो कोई उम्मीद ही रखना बेकार है। पिछले कुछ वर्षों में इन्क्लूसिव ग्रोथ और सबको साथ लेकर आगे बढ़ने जैसे राजनीतिक जुमलों का इस्तेमाल काफी बढ़ा हैए लेकिन देश के वित्तीय संस्थान अगर जरूरतमंद लोगों को धकिया कर बाहर करने पर जुटे हैं तो इससे इन जुमलों का खोखलापन ही जाहिर होता है। उम्मीद करें कि मौजूदा सरकार के कर्ता.धर्ता इसे पिछली सरकार के मत्थे मढ़कर पल्ला झाड़ लेने का विकल्प नहीं चुनेंगे।
SOURCE : http://navbharattimes.indiatimes.com/other/opinion/editorial/articlelist/2007740431.cms
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