Monday, 22 June 2015

मुश्किलों के पत्थर को बनाएं सीढ़ी

मुश्किलों के पत्थर को बनाएं सीढ़ी

हर मनुष्य सफल होना चाहता है और सफलता के लिये जरूरी है समस्याओं से संघर्ष। समस्याओं रूपी चुनौतियों का सामना करनेए उन्हें सुलझाने में जीवन का उसका अपना अर्थ छिपा हुआ है। समस्याएं तो एक दुधारी तलवार होती हैंए वे हमारे साहसए हमारी बुद्धिमत्ता को ललकारती हैं और दूसरे शब्दों में वे हममें साहस और बुद्धिमानी का सृजन भी करती हैं। मनुष्य की तमाम प्रगतिए उसकी सारी उपलब्धियों के मूल में समस्याएं ही हैं। यदि जीवन में समस्याएं नहीं हों तो शायद हमारा जीवन नीरस ही नहींए जड़ भी हो जाए। किसी ने ठीक कहा है कि.
हर मुश्किल के पत्थर को बनाकर सीढि़यां अपनीए
जो मंजिल पर पहुंच जाए उसे ष्इनसानष् कहते हैं।
प्रख्यात लेखक फ्रेंकलिन ने सही ही कहा था. ष्ष्जो बात हमें पीड़ा पहुंचाती हैए वही हमें सिखाती भी है।ष्ष् और इसलिए समझदार लोग समस्याओं से डरते नहींए उनसे दूर नहीं भागते। बाबा आमटे ने भी एक जगह लिखा है. ष्ष्समस्याओं को आगे बढ़कर गले लगाइए। उसी तरह जैसे कोई जवां मर्द बैल से डरकर भागता नहींए आगे बढ़कर उसके सींग पकड़ता हैए उससे जूझता हैए उसे काबू करता है। हम सब में ऐसा ही उत्साहए ऐसी ही ललकए ऐसी ही बुद्धि होनी चाहिएए समस्याओं से जूझने के लिए।ष्ष्
पर अधिकांश लोग इतने बुद्धिमानए ऐसे उत्साह से भरे नहीं होेते। समस्याओं में छिपे दर्द से बचने के लिए हममें से अधिकांश लोगए उन समस्याओं से कतराने की कोशिश करते हैंए हम उनसे मुंह मोड़ना चाहते हैंए उन्हें अनदेखा करना चाहते हैंए उनके प्रति उपेक्षा का भाव रखना चाहते हैंए उन्हें भूल जाना चाहते हैं। समस्याओं का अस्तित्व भी हैए यह ही नहीं मानते। सोचते हैंए ऐसा रुख अपनाने से शायद समस्याएं अपने आप गायब हो जायेंगी। कभी.कभी इन समस्याओं की उपेक्षा करनेए उन्हें भूलने के लिए मादक द्रव्यों का सहारा भी लेते हैं. शराबए सिगरेटए नींद की गोलियां। समस्याओं से आगे बढ़कर जूझने की बजाय हम उनसे बचकर निकल जाने की कोशिश करते हैं। समस्याओं से कतरानेए उनमें छिपी भावनात्मक व्यथा से बचकर निकल जाने की यह प्रवृत्ति ही मनुष्य की तमाम मानसिक रुग्णता का मूल कारण है।
जिंदगी कठिन है.अधिकांश लोग इस सत्य को नहीं देख पाते या देखना नहीं चाहते। इसके बदले वे संताप करते रहते हैं कि उनकी जिंदगी में समस्याएं ही समस्याएं हैं। वे उनकी विकरालताए उनके बोझ की ही शिकायत करते रहते हैं। परिवार मेंए मित्रों में इसी बात का रोना रोते रहते हैं कि उनकी समस्याएं कितनी पेचीदाए कितनी दुःखदायक हैं और उनकी दृष्टि में ये समस्याएं न होतीं तो उनका जीवन सुखदए आसान होता। असल में समस्याएं विकराल होती ही इसलिये हैं कि हम उनको अपनी गलतियों का परिणाम न मानकर दूसरों को इनका कारण मानते हैं।
समस्याएं हैं तो उनका समाधान भी होता ही है। एक बार एक महिला ने स्वामी विवेकानंद से कहाए ष्स्वामी जीए कुछ दिनों से मेरी बायीं आंख फड़क रही है। यह कुछ अशुभ घटने की निशानी है। कृपया मुझे कोई ऐसा तरीका बताएं जिससे कोई बुरी घटना मेरे यहां न घटे।ष् उसकी बात सुन विवेकानंद बोलेए ष्देवीए मेरी नजर में तो शुभ और अशुभ कुछ नहीं होता। जब जीवन है तो इसमें अच्छी और बुरी दोनों ही घटनाएं घटित होती हैं। उन्हें ही लोग शुभ और अशुभ से जोड़ देते हैं।ष्
समस्याएं आकाश की तरह बनने पर ही मिट सकती हैंए मिटाई जा सकती हैंए किन्तु यदि हम केवल चर्ममय रह जाएंगे तो समस्याएं कभी नहीं सुलझने वाली। अनन्तकाल बीत गया किन्तु समस्याओं का कभी अंत हुआ होए ऐसा नहीं दिखाई देता। जब तक मनुष्य हैए उसके पास चिन्तन और विचार हैंए तब तक समस्याएं रहेंगी। यदि व्यक्ति गहरी निद्रा में सो जाएए चिन्तन बंद हो जाए और प्रलय जैसा ही कुछ हो जाए तो संभव है समस्या नहीं रहेए अन्यथा समस्या रहेगी।
ष्जो अध्यात्म को जानता हैए वह भौतिकता को जानता हैएष् धार्मिकों ने इसे पकड़कर सोच लिया कि धर्म से धनए रोटीए पुत्रए सुखए वैभव सब कुछ प्राप्त हो जायेगा। धर्म के द्वारा इन सभी समस्याओं को सुलझाना कठिन होगा। प्यास पानी पीने से मिटेगीए भूख रोटी खाने से शांत होगी और पैसा पुरुषार्थ से प्राप्त होगा। समस्याओं के सुलझाने में यथार्थ दृष्टि होनी चाहिए। दूसरी ओर व्यवहार को पकड़ने वाले व्यक्ति सभी समस्याओं को सुलझाने में केवल व्यवहार को ही उपयोगी मानते हैं। वे धर्म और अध्यात्म को अनुपयोगी कहते हैंए अनावश्यक समझते हैं। समस्या बाहर से आती है किन्तु उसका मूल कहां हैघ् प्रयाग में त्रिवेणी हैए किन्तु उसका मूल स्रोत कैलाश है। हमारी समस्याएं भी बाहर के विस्तार से आ रही हैं किन्तु उनका मूल हमारे मन में है। क्रोधए लोभए भयए मोहए वासनाए घृणाए ईर्ष्याए शोक आदि मन के ये आवेग जब तक जीवित हैंए तब तक समस्या सुलझने वाली नहीं।
SOURCE : http://dainiktribuneonline.com/2015/06/

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