मोदी सरकार को दरपेश राजनीतिक तूफान
ठीक उस वक्त जब नरेंद्र मोदी और उनकी पार्टी के लोग केंद्र में भाजपा की मौजूदा सरकार का पहला साल पूरा होने परए जिसे वह घोटाला.मुक्त राज भी कहते हैंए खुद को बधाइयां देने में व्यस्त थे तो अचानक एक धमाका हुआ। यह विस्फोट मानवता के आधार पर अपनाए गए कृत्य के रूप में था और इसने जिस राजनीतिक तूफान को उठायाए उसके केंद्र में विदेश मंत्री सुषमा स्वराज हैं।
साधारण तौर पर देखें तोए यह मुद्दा एकदम सीधा हैए क्या सुषमा स्वराज को ऐसे व्यक्ति जो क्रिकेट की दुनिया में कुख्यात रहेए ललित मोदी की ब्रिटिश यात्रा.दस्तावेज प्राप्त करने में आधिकारिक तौर पर मदद करनी चाहिए थी और वह भी तब जब वह देश के कानून से भाग कर विदेशों में पनाह लिए हुए है और जिस पर देश की आर्थिक अपराध शाखा और अन्य एंजेसियां जांच कर रही हैंघ् ललित मोदी पिछले कुछ अरसे से लंदन में रह रहे हैं और पहले उनका पासपोर्ट जब्त कर लिया गया था और वे अपनी पत्नी की कैंसर सर्जरी करवाने हेतु पुर्तगाल जाना चाह रहे थे।लेकिन भारत के एक टेलीविजन चैनल ने उस वक्त यह खबर प्रसारित कर सनसनी मचा दीए जब उसने लंदन के साप्ताहिक समाचार पत्र संडे टाइम्स का हवाला देते हुए यह दिखाया कि कैसे उक्त अखबार के पत्रकारों ने ललित मोदी का शिद्दत से पीछा करते हुए यूरोप के छोटे से मुल्क मोंटेनीग्रो में मौज.मस्ती करते पाया। यदि इस पहेली के ताने.बाने को जोड़ें तो अफसोसनाक तस्वीर उभरकर आती है कि लेन.देन के धंधे में माहिर इन महोदय का साथ देने में जिन लोगों का नाम सामने आया हैए उनमें ब्रिटिश सांसद कीथ वाज़ के अलावा सुषमा स्वराज और वसुंधरा राजे सिंधिया भी शामिल हैं।
इस बारे में सिर्फ अंदाजा ही लगाया जा सकता है कि क्या मोदी के साथ लंबे अरसे से चले आ रहे पारिवारिक रिश्तों के चलते सुषमा ने उनकी मदद का फैसला लिया है। लेकिन क्रिकेट के इस सुल्तान के लिए काम करने वाली वकीलों की टीम में सुषमा की बेटी बांसुरी भी एक है। इसके अलावा सुषमा के पति स्वराज कौशल ने अपने भतीजे को एक ब्रिटिश यूनिवर्सिटी में दाखिला दिलवाने के लिए ललित मोदी की मदद भी ली थी।
इसके अतिरिक्त राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे सिंधिया ने भी ललित मोदी की मदद करते हुए उनकी पत्नी को दो साल पहले पुर्तगाल के अस्पताल में स्वयं भर्ती करवाया था। कहा जाता है कि ललित मोदी ने वसुंधरा राजे सिंधिया के बेटे दुष्यंत की कंपनी में पैसा भी लगा रखा है।
कांग्रेस के नेतृत्व में विपक्षी पार्टियों के लिए यह ड्रामा एक तोहफे की तरह आया है ताकि वे खुद को पाक.साफ बताने वाली उस भाजपा पर निशाना साध सकें जिसने यूपीए के कार्यकाल में हुए घोटालों का खूब फायदा उठाकर इस गठबंधन को भ्रष्टाचार का पर्याय बताने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी। मोंटेनीग्रो में पत्रकार राजदीप सरदेसाई को दिए गए साक्षात्कार में ललित मोदी ने अपना बचाव इस तरह कियाए गोया यह कोई लड़ाई का मैदान हो। वैसे भी इस इंटरव्यू से सुषमा स्वराज के हित संवरने में कोई मदद नहीं मिली। बल्कि इसने इस विचार को और अधिक पुख्ता कर दिया कि एक हेराफेरी करने वाला इनसान भारत सरकार से टक्कर लेने को तैयार है।
एक ओर विपक्षी पार्टियां सरकारी पक्ष द्वारा प्रस्तुत की गयी कहानी में दिख रहे विरोधाभासों को उठा रही हैं वहीं दूसरी तरफ अरुण जेटली मंत्रिमंडल की अपनी सहयोगी सुषमा को बचाने में लगे हुए हैं। यह कैसे संभव है कि अपनी लीक से हटकर सुषमा ब्रिटिश अधिकारियों को कहें कि यदि ब्रिटेन ललित मोदी को जरूरी यात्रा दस्तावेज मुहैया करवा देता है तो भारत सरकार को इस बारे में कोई आपत्ति नहीं हैघ्
यहां बहुत सारे सवाल उठ खड़े होते हैं। क्यों नहीं भारत के विदेश मंत्रालय ने ललित मोदी को पुर्तगाल के अस्पताल में भर्ती अपनी पत्नी को देखने जाने के लिए आरजी यात्रा दस्तावेज इस शर्त पर दिलवाए कि इसके बाद ललित मोदी स्वदेश लौटकर अपने ऊपर लगे आरोपों का सामना भारतीय अदालतों के सामने प्रस्तुत होकर करेंगेघ् जबकि पिछली यूपीए सरकार ने ब्रिटिश प्रशासन को स्पष्ट बता दिया था कि यदि ललित मोदी को यात्रा दस्तावेज मुहैया करवाकर कहीं आने.जाने की सुविधा दी जाती है तो इससे भारत.ब्रिटेन के द्विपक्षीय संबधों पर खराब असर पड़ेगा। इसलिए ललित मोदी को ब्रिटेन से बाहर जाकर अपनी पत्नी का हाल.चाल पूछने के अलावा मोंटनीग्रो में एक पारिवारिक शादी में शिरकत करने और अन्य पर्यटन स्थलों पर घूमने लायक बनाने में सुषमा स्वराज ने अहम भूमिका निभाई है।
विपक्षी पार्टियों की यह भी मांग है कि राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे सिंधिया को भी अपने पद से इस्तीफा देना चाहिए। पहले जिस तरह से केंद्रीय नेतृत्व उनकी मुश्किलों की ओर अपेक्षाकृत नरम रुख रखे हुए था उससे तो लगता था कि अभी उनकी राजनीतिक पारी लंबी खिंचने वाली है। लेकिन जिस तरह से बताया जा रहा है कि ललित मोदी और सिंधिया परिवार के आर्थिक हित जुड़े हुए हैंए उसके परिप्रेक्ष्य में वसुंधरा की मुश्किलें बढ़ने वाली हैं।
इन घटनाओं का असर बृहद रूप से होगा। एक तोए यदि प्रधानमंत्री अपने प्रभाव का इस्तेमाल करते हुए भाजपा के इन दो प्रभावशाली नेताओं का बचाव करते हैं तो ऐसा करना भ्रष्टाचार का खात्मा करने पर जोर देने वाले प्रयासों को धक्का पहुंचाना होगा। दूसरेए जो ईमानदारी का चोगा भाजपा नेतृत्व इतनी शिद्दत से पहनता हैए उसमें छेद हो जाएंगे।
कांग्रेस पार्टी को काफी खुशी मिली होगी कि उसे यह मुद्दा नरेंद्र मोदी सरकार को आड़े हाथों लेने के लिए मिल गया है। लेकिन अभी उसे काफी लंबा सफर तय करना है और राहुल गांधी को अपनी नेतृत्व क्षमता अभी सिद्ध करनी बाकी है।
प्रधानमंत्री पद पर नया अनुभव होने के बावजूद नरेंद्र मोदी ने देश के प्रशासनिक ढांचे के मकड़जालों को साफ करने का जो बीड़ा उठाया हैए वह एक लंबी प्रकिया की शुरुआत भर है। सुषमा स्वराज वाला मामला प्रधानमंत्री के लिए अलग तरह की समस्या है। लालकृष्ण आडवाणी की जबरी रिटायरमेंट के बाद प्रधानमंत्री की गद्दी के लिए सुषमा को भी एक दावेदार माना जाता थाए लेकिन जब इस पद के लिए नरेंद्र मोदी के नाम का अनुमोदन हो गया तो आम चुनाव जीतने के बाद सुषमा को मंत्रिमंडल में बतौर वरिष्ठ सदस्य लेना पड़ा और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उन्हें विदेश मंत्री का विभाग खुशी से सौंपा। लेकिन एक कर्मठ और उत्साही व्यक्ति होने के नाते प्रधानमंत्री ने विदेश मामलों में भी खुद को एक समर्थ राजनेता सिद्ध कर दिखाया और सुषमा स्वराज को एक दायरे में समेट दिया गया।
SOURCE : http://dainiktribuneonline.com/2015/06/
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