निजी क्षेत्र की भागीदारी से उम्मीद
भारतीय रेल के वर्तमान प्रारूप में आमूलचूल सुधारों की आवश्यकता हैए इस बात को लेकर कभी दो राय नहीं रही। बहुत.सी सरकारें आयीं और चली गयींए बहुत.सी समितियों का गठन किया गया व उनकी रिपोर्टों को रद्दी की टोकरी में भी डाल दिया गयाए पर रेलवे में कोई सुधार देखने को नहीं मिला। अस्वच्छ प्लेटफ़ॉर्मए अपने निर्धारित समय से घंटों देरी से चल रही ट्रेनें व सुरक्षा मानकों की अनदेखीए वर्षों से भारतीय रेलवे की यही पहचान रही है। इतना सब होने के बाद भी रेल भारत में आवागमन का सबसे प्रचलित साधन है। इसका कारण है देश के कोने.कोने में फैला रेलवे नेटवर्क। वर्ष 1853 से शुरू हुई भारतीय रेल सेवा को दुनिया के सबसे बड़े व व्यापक रेलवे नेटवर्क होने का गौरव प्राप्त है।
रेलवे सुधारों के लिये गठित समितियों में सबसे नया नाम बिबेक देबराय समिति का हैए जिसने हाल ही में अपनी रिपोर्ट दी है। रेलवे में निजीकरण को बढ़ावा देनाए रेल भाड़ों के निर्धारण हेतु एक स्वतंत्र नियामक संस्था ष्रेलवे रेग्यूलेटरी अथारिटी ऑफ़ इंडियाष् का गठन करनाए रेलवे स्कूलों व रेलवे के अस्पतालों का संचालन निजी हाथों में दिया जानाए रेलवे के उच्च पदस्थ काडर में फेरबदल व रेलवे बज़ट को आम बज़ट के साथ ही समावेशित करनाए समिति की अनुशंसाओं में से कुछ प्रमुख हैं। इन सुझावों के प्रति रेलवे कर्मचारियों के विभिन्न वर्गों में अलग.अलग प्रतिक्रियाएं व व्याख्याएं सामने आयीं। एक तरफ़ जहां रेलवे मजदूर यूनियन को रेलवे में निजी क्षेत्र की घुसपैठ की आशंका सता रही हैए वहीं अफ़सरों को प्रस्तावित ष्फेरबदलष् को लेकर चिंताएं हैं।जैसे ही देबराय समिति की रिपोर्ट सामने आयीए टेलीविजन पर हुई विभिन्न बहसों में इसकी रेलवे के निजीकरण के प्रबल पक्षधर के रूप में व्याख्या की गयीए पर वास्तव में यह सच नहीं है। यह रिपोर्ट साफ़.साफ़ कहती है कि निजी क्षेत्र को रेलवे की कुछ निजी परियोजनाएं तथा इसकी कुछ अतिरिक्त जिम्मेदारियां यथा अस्पतालोंए जमीनों व स्कूलों के संचालन का उत्तरदायित्व दिया जाना चाहिएए जिससे रेलवे अपने मूल दायित्वए ष्रेलों के संचालनष् पर अपना ध्यान केंद्रित कर सके। चूंकि संपूर्ण रेल ढांचे का अनुरक्षण व सार.संभाल रेलवे द्वारा किया जाता रहा हैए अतरू प्राइवेट सेक्टर द्वारा निजी रेलों के संचालन के लिये नियम व शर्तें तय करने हेतु समग्र व व्यापक बातचीत की आवश्यकता पड़ेगी। लेकिन ये वार्ताएं सरकार को इस दिशा में कदम उठाने के लिये हतोत्साहन का कारण नहीं बननी चाहिये। यह सर्वविदित है कि दुनिया के हर क्षेत्र में निजी क्षेत्र की भागीदारी बढ़ती जा रही है। भारत का ही उदाहरण ले लीजियेए यहां विमानन व दूरसंचार क्षेत्र में निजी कंपनियों के आगमन के बाद इन दोनों क्षेत्रों में आशातीत विकास हुआ है। लोगों को विश्वस्तरीय सुविधाएं सुलभ हुई हैं। निजीकरण अपने साथ प्रतियोगिताए गुणवत्ता और संसाधन लेकर आता हैए जो एक सफ़ल व्यवसाय के लिये आवश्यक गुण है।
देश की वर्तमान भाजपा सरकार व औद्योगिक घरानों के बीच घनिष्ट संबंध किसी से छुपे नहीं हैं। यह देखते हुए इस बात की उम्मीद की जा सकती है कि रेलवे में जल्द ही निजी क्षेत्र का प्रवेश हो जायेगा। यहीं पर खतरे की घंटी सुनाई देती है। एकाधिकार व क्रोनी केपिटलिज्मए निजीकरण के दो सबसे खतरनाक पहलू हैं। अतरू एक तरफ़ सरकार को जहां निजी क्षेत्र के आगमन को प्रोत्साहित करना चाहियेए वहीं साथ.साथ यह भी सुनिश्चित कर लेना चाहिये कि यह एक सख्त नियामक संस्था के अधीन काम करेए अन्यथा स्थिति बद से बदतर भी हो सकती है।
इसके अलावा रेलवे के विकल्प तलाशने की भी आवश्यकता है। दुर्भाग्यवश हमने कभी जल परिवहन के महत्व को नहीं समझा। देश में अंतर्देशीय जलमार्गों द्वारा मालवाहन कुल अंतर्देशीय परिवहन का मात्र 0ण्1 प्रतिशत है। अमेरिका में यह आंकड़ा 21 प्रतिशत है। चीन में जहाज परिवहन के लिये उपयुक्त अंतर्देशीय जलमार्गों की कुल दूरी 1ए25ए000 किण्मीण् हैए जबकि भारत में यह मात्र 14ए500 किण्मीण् है। जलमार्गों का पूर्ण दोहन न होने सेए पहले से ही कमजोर रेलवे इंफ्रास्ट्रक्चर पर अतिरिक्त बोझ आ पड़ा है। पिछले महीने सरकार ने लोकसभा में राष्ट्रीय जलमार्ग बिल पेश कियाए जिसमें देश में 101 नये राष्ट्रीय जलमार्गों की स्थापना प्रस्तावित है।
भारतीय रेलवे का अध्ययन एक पेचीदा केस स्टडी है। जरा सोचियेए एक ऐसा व्यापारए जिसमें ग्राहक महीनों पहले लाइन लगाकर खड़ा हो जाता हैए और सालभर मांग अपनी चरम सीमा पर बनी रहती है। ग्राहक सेवा के बदले कीमत चुकाने को तैयार हैए परन्तु फिर भी सेवा प्रदाता ;रेलवेद्ध गुणवत्ता देने से इंकार कर देता है। माना कि रेलवे को एक पूर्णतरू व्यावसायिक प्रतिष्ठान के रूप में देखना सही नहीं होगाए इसके बहुत से सामाजिक दायित्व भी हैंए जिन्हें नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। परन्तु हम इससे कम से कम एक सुरक्षित व आरामदायक सफ़र की अपेक्षा तो रख ही सकतें हैंए आखिर रेलवे इसी के लिये बना है।
SOURCE : http://dainiktribuneonline.com/2015/06/
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