Wednesday, 24 June 2015

यह शराबए वह शराब

यह शराबए वह शराब

मुंबई के मालवणी इलाके में जहरीली शराब पीकर सौ से ज्यादा लोगों के मारे जाने के बाद एक बार फिर इस जानलेवा धंधे से जुड़े लंबे.चौड़े नेटवर्क की बात होने लगी है। बताया जा रहा है कि लोगों को सस्ती और गैरकानूनी शराब कहां और कैसे मुहैया कराई जाती है। ऐसी मौतों की खबरें अक्सर देश के पिछड़े इलाकों से आती हैंए लेकिन मुंबई जैसे महानगर के लिए भी यह कोई अजूबा नहीं है। सन 2004 में इसी तरह वहां जहरीली शराब पीने से 87 लोग मारे गए थे।

जब भी कोई बड़ी घटना होती हैए पुलिस.प्रशासन के साथ.साथ राजनीतिक नेतृत्व भी चौंक उठता है। कुछ ऐसे कि श्अरेए हमारे यहां भी ऐसा हो सकता हैघ्श् इस घटना के बाद भी मुख्यमंत्री देवेंद्र फड़णवीस ने बिना वक्त गंवाए न केवल इसकी निंदा की बल्कि जांच के आदेश भी दिए। पुलिस ने कुछ लोगों को गिरफ्तार कर लिया है। अगले कुछ दिनों में उस कथित नेटवर्क के खिलाफ कड़े कदम उठाए जाने की खबरें भी आ सकती हैं। जैसा अतीत में होता रहा हैए बिल्कुल संभव है कि इसके बाद शांति छा जाए और कुछ समय बाद ऐसा ही घटनाचक्र बदले हुए चरित्रों के साथ ठीक इसी क्रम में दोहराया जाए।

सवाल यह है कि सरकारें जहरीली शराब के मामले को तात्कालिकता से ऊपर उठ कर क्यों नहीं देखतींघ् देश भर में जब भीए जहां कहीं भी ऐसी घटना होती हैए उसमें मौतें झुग्गी.झोपड़ियों में रहने वाले गरीब लोगों की ही होती हैं। आज तक ऐसी एक भी घटना नहीं हुई है जिसमें महंगी विदेशी शराब से जुड़ा कोई बड़ा हादसा सामने आया हो। सवाल हैए आखिर गरीबों की ही शराब जहरीली क्यों होती हैघ् ऐसे हर हादसे के वक्त प्रशासन की लापरवाही और अवैध शराब माफिया के लालच का जिक्र होता है। साथ में उन श्बेचारोंश् पर तरस खाया जाता हैए जो इनके चंगुल में फंस जाते हैं। परोक्ष रूप से भाव उपदेशात्मक ही होता है कि या तो ये लोग शराब पीना छोड़ देंए या ठेके पर लाइन लगाकर महंगी शराब खरीदें। इस बारे में कभी कोई बात ही नहीं होती कि एक उपभोक्ता के रूप में उन्हें सस्ते और सुरक्षित उत्पाद की सप्लाई क्यों नहीं मिलतीघ् जो शराब पीकर वे मरते हैंए वह भी उन्हें मुफ्त में तो नहीं मिलती। वे बाकायदा उसकी कीमत चुकाते हैं।

आज टेलीकॉम कंपनियां पांच.दस रुपये का टॉक.टाइम बेच रही हैं। वे तो अपने उपभोक्ता को महंगा टॉक.टाइम खरीदने या फोन का शौक छोड़ देने का उपदेश नहीं देतीं। एक मजदूर को दिन भर की मशक्कत के बाद दस.पंद्रह रुपये का मोहरबंद पाउच मिल जाए तो ऐसा क्या गजब हो जाएगाघ् समाज के ऊपरी तबकों को कीमत चुकाने के बाद सुरक्षित शराब मिलती है। सरकारें इससे मिलने वाले टैक्स से अपना खजाना भरती हैं। इस खजाने में जरा सी कमी लाकर अवैध शराब का धंधा बंद किया जा सकता है और हर साल सैकड़ों निर्दोष नागरिकों की जान बचाई जा सकती है।
SOURCE : http://navbharattimes.indiatimes.com/opinion/editorial/why-they-speak-so-much/articleshow/47786853.cms

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