अधिकारों व गरिमा की भी हो रक्षा
राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने अपनी स्वीडन यात्रा से पहले बोफोर्स तोप सौदा दलाली कांड को मीडिया ट्रायल की उपज करार देकर प्रत्यक्ष.अप्रत्यक्ष रूप से मीडिया की विश्वसनीयता पर ही सवाल खड़ा करने के प्रयास किये हैं। स्वीडन के प्रमुख समाचार पत्र में प्रकाशित राष्ट्रपति के इंटरव्यू के अनुसार उन्होंने कहा कि जब वे देश के रक्षा मंत्री थे तो उस समय सेना के सभी जनरलों ने प्रमाणित किया था कि बोफोर्स तोप सबसे अच्छी है।
बोफोर्स तोप की गुणवत्ता पर तो पहले भी कभी सवाल नहीं उठे थे। सवाल यही उठ रहे थे कि इस सौदे में किसने दलाली ली। ध्यान रहे कि बोफोर्स तोप सौदे में कथित दलाली का खुलासा सबसे पहले स्वीडिश रेडियो ने ही किया था।जहां तक देश की राजनीति को प्रभावित करने वाले सनसनीखेज मुद्दों का सवाल है तो इसमें मीडिया ने कई बार अहम भूमिका निभाई है। चाहे वह बोफोर्स तोप सौदा दलाली कांड होए 2जी स्पेक्ट्रम आवंटन कांड होए कोयला खदानों का आवंटन हो या आदर्श हाउसिंग प्रकरण हो या फिर सलमान खान का ही मामला होए इन सभी मामलों में मीडिया की भूमिका सराहनीय रही है।
सामाजिक दृष्िट से महत्वपूर्ण मामलों से जुड़ी आपराधिक या अनुचित गतिविधियों की जानकारी के प्रकाशन और प्रसारण को अकसर मीडिया ट्रायल का नाम दे दिया जाता है। किसी घटना विशेष के बारे में निरंतर आ रही खबरों को ही मीडिया ट्रायल का नाम दिया जाता है और इस पर बीच.बीच में अंकुश लगाने की बात भी उठती रहती है।
बोफोर्स तोप दलाली कांड के दौर में देश में संचार क्रांति अपनी शैशव अवस्था में थी लेकिन मौजूदा दौर में किसी भी गतिविधि को मीडिया की नजरों से बचाना लगभग नामुमकिन ही है। सूचना क्रांति के इस दौर में मीडिया ही नहीं बल्कि सोशल मीडिया भी बहुत सक्रिय हैए और ऐसी स्थिति में किसी भी प्रकार की सूचना या खबर का प्रकाशन और प्रसारण रोकना सहज नहीं है। इसमें कोई संदेह नहीं है कि कई बार मीडिया में आ रही खबरों में तथ्यों को बढ़ा चढ़ा कर या फिर उनकी पुष्िट के बगैर ही जस का तस पेश कर दिया जाता है।
सितंबरए 2012 में तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश एस एच कपाडिया की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने अपने फैसले में स्पष्ट किया था कि सांविधानिक सिद्धांत के तहत मीडिया रिपोर्टिंग से प्रभावित प्रभावित पक्ष अदालती कार्यवाही का प्रकाशन स्थगित रखने का अनुरोध न्यायालय से कर सकता है और इसके बाद यह अदालत पर निर्भर करता है कि मामले विशेष में अदालती कार्यवाही की रिपोर्टिंग पर सीमित अंकुश लगाये या नहीं।
मीडिया ट्रायल के बारे में देश की शीर्ष अदालत ने कई फैसले सुनाये हैं। न्यायालय को लगता है कि अदालत में कार्यवाही लंबित होने के दौरान संबंधित आपराधिक मामले के बारे में निरंतर नये.नये तथ्यों के साथ प्रेस में खबरें आना न्याय के प्रशासन में हस्तक्षेप के समान है।
इसमें कोई दो राय नहीं है कि कभी.कभी किसी आपराधिक मामलेए विशेषकर यौन हिंसा से संबंधित प्रकरण में मीडिया की जरूरत से ज्यादा दिलचस्पी या फिर जन आन्दोलन कुछ हद कानून के विपरीत भूमिका में आ जाते हैं जिससे न्याय प्रक्रिया प्रभावित होने की आशंका हो जाती है।
इसी संदर्भ में सितंबरए 1997 में यौन उत्पीड़न के एक मामले में उच्चतम न्यायालय के न्यायमूर्ति एम के मुखर्जी और न्यायमूर्ति डी पी वधवा की खंडपीठ ने कुछ तल्ख टिप्पणियां करते हुए कहा था कि न्यायाधीश को इस तरह के किसी भी दबाव से खुद को मुक्त रखना चाहिए और खुद को सख्ती से कानून के शासन से निर्देशित करना चाहिए।
इसी तरहए सितंबर 2014 में तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश आर एम लोढा और न्यायमूर्ति रोहिंटन नरिमन की खंडपीठ ने एक बहुत ही पुरानी जनहित याचिका पर सुनवाई के दौरान कहा था कि पुलिस और जांच एजेन्सियों को किसी भी आपराधिक मामले में गिरफ्तार आरोपी को मीडिया के सामने परेड कराने या ऐसे मामले की जांच और इसकी प्रगति की जानकारी प्रेस को देने से बाज आना चाहिए। न्यायालय ने फौजदारी के मामले में दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 164 के तहत मजिस्ट्रेट के समक्ष अारोपी के दर्ज बयान मीडिया को प्रकाशन और प्रसारण के लिये मिलने पर भी आपत्ति व्यक्त की है। न्यायालय को लगता है कि इस तरह से आपराधिक मुकदमे की अदालत में सुनवाई के साथ ही समानांतर मीडिया ट्रायल होता हैए जिससे न्याय के प्रशासन पर असर पड़ने की संभावना रहती है। न्यायालय का मानना था कि मीडिया ट्रायल का मुद्दा किसी भी आपराधिक मामले की निष्पक्ष जांच और मुकदमे की सुनवाई से ही नहीं बल्कि आरोपी को संविधान के अनुच्छेद 21 में प्रदत्त जीने के अधिकार से भी जुड़ा है।
जहां तक मीडिया को प्राप्त अभिव्यक्ति की आजादी का सवाल है तो उसे भी इस अधिकार का इस्तेमाल करते समय संबंधित घटना से प्रभावित होने वाले पक्ष के अधिकारों और उसकी गरिमा का भी ध्यान रखना चाहिए। राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी की बोफोर्स तोप सौदा दलाली मामले में मीडिया ट्रायल के बारे में टिप्पणी शायद इसी संदर्भ में है और देश की शीर्ष अदालत भी बार.बार इस बिन्दु पर जोर देती रही है।
SOURCE : http://dainiktribuneonline.com/
No comments:
Post a Comment