Friday, 26 June 2015

अादिवासियों पर भारी रसूखदार

अादिवासियों पर भारी रसूखदार

आदिवासी समुदाय के लोग सालों से हाशिए पर रहे हैं। उन पर अब एक नई मुसीबत और आ गई है। जंगल के आसपास जिस जमीन पर वह सालों से खेतीबाड़ी करते आ रहे थेए उस जमीन पर अब गैर.आदिवासी कब्जा करने लगे हैं। झारखंडए बिहारए मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ की सीमाओं से घिरे उत्तर प्रदेश के सोनभद्र जिले में जिस तरह से जंगल की जमीन की लूट मची हुई हैए वो पर्यावरण के लिए खतरनाक तो है हीए प्रदेश में कानून.व्यवस्था की चिंतनीय तस्वीर भी पेश करती है। इस जिले में अब तक एक लाख हेक्टेयर से ज्यादा जमीन अवैध रूप से बाहर से आए ष्रसूखदारोंष् या उनकी संस्थाओं के नाम की जा चुकी है। इतना ही नहींए राजस्व और वन विभाग के मुलाजिमों की मिलीभगत से कब्जाई गई इस जमीन के अच्छे.खासे हिस्से पर अवैध रूप से खनन भी किया जा रहा है।
फरवरी में सोनभद्र के खनन सर्वेयर ने उत्तर प्रदेश के लोकायुक्त के यहां बयान दिए थे कि उसके चार्ज लेने से पहले तक वहां अवैध खनन और परिवहन से हर दिन 5.6 लाख रुपये की वसूली की जाती थी। लेकिनए हाल ही में मीडिया को लीक हुई वन विभाग के मुख्य वन संरक्षक एके जैन की रिपोर्ट से खुलासा हुआ है कि हकीकत इससे कहीं ज्यादा भयावह है। जिले में बाहर से आए गैर.आदिवासी ष्रसूखदारोंष् ने स्थानीय अधिकारियों की कृपा से बड़े पैमाने पर जमीन कब्जा ली है। इस जमीन को धीरे.धीरे प्राइवेट भूमि में तबदील किया जा रहा है।
इस रिपोर्ट के अनुसारए सोनभद्र में 1987 से लेकर अब तक एक लाख हेक्टेयर भूमि को अवैध रूप से गैर वन भूमि घोषित कर दिया गया है। जबकिए भारतीय वन अधिनियम.1927 की धारा.4 के तहत यह जमीन ष्वन भूमिष् घोषित की गई थी। सुप्रीमकोर्ट की अनुमति के बिना इसे किसी व्यक्ति या प्रोजेक्ट के लिए नहीं दिया जा सकता। इतना ही नहींए अवैध कब्जेदारों को असंक्रमणीय से संक्रमणीय भूमिधर अधिकार यानी जमीन एक.दूसरे को बेचने के अधिकार भी दिए जा रहे हैं।
इस तरह से जमीन का कब्जाया जाना वन संरक्षण अधिनियम.1980 का सरासर उल्लंघन है। गौर करने की बात यह है कि वर्ष 2009 में राज्य सरकार की ओर से उच्चतम न्यायालय में एक याचिका दायर की गई थी। इसमें सरकार ने माना था कि सोनभद्र में गैर वन भूमि घोषित करने में वन बंदोबस्त अधिकारी ;एफएसओद्ध ने खुद को प्राप्त अधिकारों का दुरुपयोग किया। लेकिनए जिस तरह से इस याचिका को 19 सिंतबर 2012 को तत्कालीन सचिव ;वनद्ध के मौखिक आदेश पर विभागीय वकील ने चुपचाप वापस ले लियाए उससे पूरे मामले में षड्यंत्र की गहनता का पता चलता है।
हालात का अंदाजा इससे भी लगा सकते हैं कि चार दशक पहले सोनभद्र के रेनूकूट इलाके में 175896 हेक्टेयर भूमि को भारतीय वन अधिनियम 1927 की धारा.4 के तहत लाया गया थाए लेकिन अभी तक इसमें से मात्र 49044 हेक्टेयर जमीन ही वन विभाग को पक्के तौर पर ;धारा.20 के तहतद्ध मिल सकी है। यही हाल ओबरा व सोनभद्र वन प्रभाग और कैमूर वन्य जीव विहार क्षेत्र में है। यहां धारा.4 और धारा.20 के तहत होने वाली प्रक्रियागत कार्यवाही को समझ लेना भी जरूरी है।
भारतीय वन अधिनियम.1927 की धारा.4 के तहत जब सरकार किसी भूमि को वन भूमि में दर्ज करने की मंशा जाहिर करती है तो इस पर आम लोगों से आपत्तियां भी मांगी जाती हैं। इन आपत्तियों की सुनवाई एसडीएम स्तर का कोई अधिकारी करता हैए जिसे सुनवाई की प्रक्रिया के दौरान वन बंदोबस्त अधिकारी ;एफएसओद्ध का दर्जा दिया जाता है। इन आपत्तियों पर सुनवाई के बाद धारा.20 के तहत कार्यवाही होती हैए जिसमें भूमि को अंतिम रूप से बतौर वन भूमि दर्ज कर लिया जाता है। आपत्तियां जायज होने पर वन बंदोबस्त अधिकारी धारा.4 की जमीन को वादी के पक्ष में गैर वन भूमि घोषित करने का न्यायिक निर्णय भी सुना सकता हैए लेकिन इस पर अमल के लिए सुप्रीमकोर्ट की अनुमति जरूरी है।
देखने में आया है कि सोनभद्र में राजस्व विभाग के अधिकारी धारा.4 के विज्ञापित क्षेत्रफल को अलग करने के लिए बंदोबस्त अधिकारी के न्यायालय में वाद दायर करते हैं। इस वाद को स्वीकार करते हुए वन बंदोबस्त अधिकारी उस जमीन को धारा.20 के लिए प्रस्तावित जमीन से अलग करते हुए राजस्व विभाग के खाते में डाल देते हैं। बाद में राजस्व विभाग खनन के लिए इस जमीन को पट्टे पर दे देता है।
एक मोटे अनुमान के मुताबिकए सोनभद्र में 40 हजार करोड़ रुपये मूल्य का जमीन घोटाला अब तक हो चुका है। इसमें राजनेताओं और नौकरशाहों की संलिप्तता किसी से छिपी नहीं है। इन हालात में यह जंगल तभी बच सकता हैए जब सुप्रीमकोर्ट की निगरानी में जमीन घोटाले की जांच सीबीआई को सौंपी जाए। दोषियों को सजा दिलाने और बचे जंगल को सुरक्षित रखने के लिए सख्त कदम उठाने ही होंगे।
SOURCE : http://dainiktribuneonline.com/p/

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