Wednesday, 17 June 2015

मुरझाते महानगर

मुरझाते महानगर

केंद्रीय शहरी विकास मंत्रालय के अधीन काम करने वाली स्वायत्त संस्था नैशनल इंस्टीट्यूट ऑफ अर्बन अफेयर्स की ओर से करवाई गई एक स्टडी से हमारे शहरों की जो तस्वीर सामने आती हैए वह कई मायनों में चिंता पैदा करने वाली है। दस लाख से ज्यादा आबादी वाले देश के कुल 53 शहरों का यह अध्ययन बताता है कि तेजी से विकसित हो रहे छोटे शहर अपने निवासियों को ठीकठाक माहौल उपलब्ध करवाने में सफल हैंए लेकिन कुछेक उज्ज्वल अपवादों को छोड़ दें तो पहले से विकसित बड़े शहर और महानगर लगभग हर मोर्चे पर पीछे छूटते जा रहे हैं।

प्रति व्यक्ति आयए रहन.सहनए शिक्षाए सफाईए गरीबी आदि को आधार बनाकर तैयार की गई इस सूची में दिल्ली का 23वेंए कोलकाता का 24वें और मुंबई का 19वें स्थान पर आना काफी कुछ कहता है। दूसरा महत्वपूर्ण ट्रेंड इस स्टडी से यह सामने आता है कि राजनीतिक उथल.पुथल के बावजूद साउथ के शहरों ने अपना स्तर ऊंचा बनाए रखा हैए बल्कि इसे और बेहतर किया हैए लेकिन उत्तर भारतीय शहरों का हाल दिनोंदिन बद से बदतर होता जा रहा है।

स्टडी में हैदराबाद को देश का सबसे ज्यादा रहने लायक शहर पाया गया जबकि चेन्नै को दूसरा और वड़ोदरा को तीसरा स्थान हासिल हुआ। इस मोर्चे पर सबसे बुरी हालत धनबाद की पाई गई जबकि आसनसोल और रायपुर नीचे से दूसरे और तीसरे स्थान पर रहे। हाउसिंग क्वॉलिटी के हिसाब से तीन बेस्ट शहर हैं सूरतए ग्रेटर मुंबई और अहमदाबादए जबकि तीन सबसे घटिया शहर धनबादए जबलपुर और रांची हैं।

स्कूलए अस्पतालए यातायातए लाइब्रेरीए पार्कए पेयजल यानी सोशल इन्फ्रास्ट्रक्चर के लिहाज से टॉप के तीन शहर कन्नूरए त्रिचूर और कोच्चि को माना गया तो सबसे खराब तीन शहर साबित हुए आगराए श्रीनगर और मेरठ। प्रति व्यक्ति आय के लिहाज से जरूर एनसीआर के फरीदाबाद ने बाजी मार लीए लेकिन गरीबी के मामले में भी यह लिस्ट में काफी ऊपर ;वाराणसी के बाद दूसरे नंबर परद्ध है। यानी यहां अमीर और गरीब काफी हैंए मध्यवर्ग कम।

इस स्टडी का मकसद देश के विभिन्न शहरों के सामाजिकए आर्थिक और जनसांख्यिकी संबंधी ढांचों का विश्लेषण करना और आगे की योजनाओं के दिशा निर्देशन के लिए आधार मुहैया कराना था। आज जब मोदी सरकार देश में 100 स्मार्ट शहर बनाने की योजना घोषित कर चुकी है तो पहले से मौजूद शहरों का हाल जानना और भी जरूरी हो जाता है। सरकार को सोचना होगा कि गांवों से निरंतर पलायन के दबाव में उत्तर भारत के शहर अपने लोगों में कोई श्सेंस ऑफ बिलांगिंगश् नहीं विकसित कर पा रहे। यहां जीवन यापन कर रहे लोग न तो खुद क्वॉलिटी लाइफ जी रहे हैंए न ही अपने शहर को बेहतर बनाने की कोई चिंता उनमें पैदा हो रही है। इसलिए हमारे नीति निर्माताओं को बड़े शहरों में सुविधाएं बढ़ाने के तरीकों पर विचार करने के साथ ही गांव.कस्बों की दशा सुधारने और लोगों को विकास प्रक्रिया में भागीदार बनाने के उपायों पर भी सोचना चाहिए।
SOURCE : http://navbharattimes.indiatimes.com/opinion/editorial/fade-metropolitan/articleshow/47692964.cms

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