Tuesday, 16 June 2015

ताक पर कानून

ताक पर कानून

विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने इंडियन प्रीमियर लीग ;आईपीएलद्ध के पूर्व प्रमुख ललित मोदी की जिस तरह से मदद कीए उससे साफ है कि हमारे देश के राजनेता अपने निजी हित के सामने नियम.कानूनों की रत्ती भर भी परवाह नहीं करते। आश्चर्य तो यह है कि इस मामले में न सिर्फ मोदी सरकार बल्कि पूरी बीजेपी और संघ परिवार सुषमा के बचाव में उतरा हुआ है। 

गौरतलब है कि ललित मोदी का दर्जा भारतीय पुलिस के खाते में पिछले कई सालों से एक फरार आरोपी का है। प्रवर्तन निदेशालय ;ईडीद्ध विदेशी मुद्रा कानून के उल्लंघन से जुड़े 425 करोड़ के एक घपले में उनकी तलाश कर रहा है। उनके खिलाफ ईडी का नोटिस आज भी अस्तित्व में है। एक अर्से तक उनका पासपोर्ट निलंबित रहा और वे अपनी फरारी की जगह ब्रिटेन से बाहर कहीं भी जाने की हालत में नहीं थे। लेकिन सुषमा स्वराज की मेहरबानी से ललित मोदी कुछ समय के लिए इस पकड़ से निकलने में कामयाब हो गए।

तथ्य बताते हैं कि सुषमा ने 2013 में लोकसभा में विपक्ष के नेता पद पर रहते हुए अपने एक रिश्तेदार का ब्रिटेन में दाखिला करवाने के लिए ललित मोदी की मदद ली थी। संभवतरू इसी के बदले में उन्होंने ललित मोदी को ट्रैवल वीजा लेने में मदद पहुंचाई। सुषमा की दलील है कि मोदी को अपनी कैंसर पीड़ित पत्नी के इलाज के लिए पुर्तगाल जाना थाए लिहाजा उन्होंने मानवीय आधार पर मोदी की मदद की।

सवाल यह है कि ललित मोदी ने मानवीय आधार पर रियायत की याचिका भारत की किसी अदालत में लगाने के बजाय भारतीय विदेश मंत्री के दरबार में क्यों लगाईघ् ध्यान रहेए यह विवाद उस ईमेल के खुलासे से उत्पन्न हुआए जिसमें सुषमा ने भारतीय मूल के ब्रिटिश सांसद कीथ वाज और भारत स्थित ब्रिटिश उच्चायुक्त जेम्स बीवन से बात करके ललित मोदी को वीजा दिए जाने का पक्ष लिया था। विदेश मंत्री द्वारा एक बड़े घोटाले के आरोपी की पैरवी का निश्चय ही गलत मेसेज गया है।

सुषमा को ललित मोदी की कानूनी स्थिति के बारे में पूरी जानकारी थीए फिर भी उन्होंने उनकी सिफारिश क्यों कीघ् क्या एनडीए सरकार की नजर में ललित मोदी बेदाग हैंघ् जब ईडी जैसी संस्था उनके खिलाफ जांच कर रही है और मोदी को क्लीन चिट मिलने की दूर.दूर तक कोई संभावना भी नहीं हैए फिर उनके लिए यह नरमी क्योंघ् क्या निजी संबंध अब देश के कानून से ऊपर हो गए हैंघ् सच्चाई यह है कि अब तक ललित मोदी के रवैये से एक बार भी नहीं लगा कि उनमें भारत के नियम.कायदों के प्रति कोई आदर भाव है। वे तो जांच से बचने के लिए विदेश में छुपे हुए हैं।

अगर मोदी सरकार आरोपियों को मानवीय आधार पर सहायता पहुंचाने को इतनी ही उत्सुक है तो उसे एक ऐसी सूची जारी करनी चाहिए कि किस तरह के घोटालों में फंसे लोगों को किन प्रक्रियाओं के तहत ऐसी सुविधा मिल सकती है। लेकिन यह जब होगाए तब होगा। अभी तो कानून को धता बताने के लिए उसे अपनी विदेश मंत्री के खिलाफ ऐक्शन लेना चाहिए।
SOURCE : http://navbharattimes.indiatimes.com/opinion/editorial/

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