Thursday, 11 June 2015

सत्ता तंत्र को दलालों से मुक्त करना छोटी कामयाबी नहीं है

सत्ता तंत्र को दलालों से मुक्त करना छोटी कामयाबी नहीं है 

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता हैं मणिशंकर अय्यर। लोकसभा चुनाव के पूर्व उन्होंने नरेंद्र मोदी को कांग्रेस अधिवेशन स्थल पर टी स्टाल लगाने के लिए स्थान देने की पेशकश की थी। क्या हुआ यह बताने के लिए यहां उनका उल्लेख नहीं किया जा रहा है। उनकी चर्चा इस पेशकश के कुछ दिन पूर्व एक टीवी चैनल को दिए गए साक्षात्कार के संदर्भ में है। इस साक्षात्कार में उन्होंने कहा था कि यदि आपका कोई काम यूपीए सरकार में है तो वह तभी होगा जब आप पहले अहमद पटेल से मिलें। ;अहमद पटेल एक दशक से भी अधिक समय से कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के श्श्राजनीतिकश्श् सलाहकार हैंद्ध। आपका प्रस्ताव लेकर पटेल दस जनपथ ;सोनिया गांधी का आवासद्ध जायेंगे। वहां से वार्ता के बाद आपको बताएंगे तब आपका काम होगा। क्या बतायेंगेघ् इस पर उन्होंने कुछ भी नहीं कहा लेकिन जो कुछ कहा उससे ही यह स्पष्ट हो जाता है कि श्श्काम होनेश्श् के संदर्भ की उन्होंने जिस प्रक्रिया का उल्लेख किया उसका तात्पर्य क्या है। पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह माने या नहीं लेकिन यह तो अब किसी से छिपा नहीं है कि दस वर्ष के यूपीए शासन को नेपथ्य से सानिया गांधी और राहुल गांधी ही चला रहे थे। मनमोहन सिंह के इस दावे पर किसी को भी संदेह नहीं होना चाहिए कि उन्होंने अपने पद का व्यक्तिगतए परिवार या सम्बन्धियों को लाभ पहुंचाने के लिए दुरूपयोग किया। लेकिन उनके पद का दुरूपयोग हुआए इसका बार−बार खुलासा हो रहा हे। लाभान्वित होने वाले कुछ बिचौलियों का तो खुलासा हो रहा हैए असली लाभार्थी का खुलासा होना बाकी है। मणिशंकर अय्यर ने काम होने की प्रक्रिया का जो वर्णन किया था उसकी तह में जाने की जरूरत है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनी एक साल की सरकार की उपलब्धियों में जिन बातों का उल्लेख किया हैए उसमें सबसे महत्वपूर्ण उल्लेख है सत्ता के गलियारे से बिचौलियोंए एजेंटोंए दलालों की सफाई। निश्चित रूप से इस एक वर्ष में सरकार में पहुंच का लाभ उठाने वालों की कोई गतिविधि परिलक्षित नहीं हुई। प्रलोभ उद्योग घराने के प्रतिनिधियों को मंत्रालयों के लिए प्रवेश−पत्र देने की प्रथा थी। वह समाप्त कर दी गई। पहले उद्योगपति बिना किसी प्रवेश पत्र के मंत्रालयोंए मंत्रियों के कार्यालय में बेधड़क घुस जाते थेए अब वे भवनों के नजदीक भी जाने का साहस नहीं जुटा पा रहे हैं। इसे मोदी सरकार की सबसे बड़ी उपलब्धि मानने का दो कारण है। एक तो यह कि भ्रष्टाचार और कर्तव्य विमुखता के ये मुख्य कारण थे और सत्ता के गलियारे में उनकी उपस्थिति 1947 से अविरल बनी हुई थी। एक झटके में उसे विलीन कर देने बहुत बड़ा कदम माना जाना चाहिए।

यदि हम अपनी स्मृति को कुरेदें तो सबसे पहले 1948 में श्श्जीप कांडश्श् की चर्चा हुई थी। कृष्णा मेनन इंगलैंड में भारत के उच्चायुक्त थे। उनके संज्ञान से इंगलैंड से बड़ी संख्या में जीप खरीदी गई थी जिसके बारे में यह कहा गया था कि वे द्वितीय विश्व युद्ध की बेकार गाडियां थी। कृष्णा मेनन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के बेहद करीबी थे और उन्हें रक्षा मंत्री भी बनाया गया था। नेहरू जी के प्रधानमंत्रित्व काल में उनके दामाद फिरोज गांधी ने श्श्मूंदड़ा कांडश्श् पर से परदा उठाया था और तत्कालीन वित मंत्री टीटी कृष्णमाचारी को त्यागपत्र देने पड़ा था। एक यूरोपीय दंपति की नेहरूजी के साथ चित्र भी प्रकाशित हुए थे जिस पर आरोप था कि वह विदेशी सौदे में बिचौलिये की भूमिका निभाता है। एकाएक वह दंपति नेपथ्य में चलाया गया। लाल बहादुर शास्त्री का कार्यकाल अत्यन्त अल्पकालिक था। उनकी ओर उंगली उठाने का किसी ने दुस्साहस नहीं किया। इंदिरा गांधी का प्रधानमंत्रित्वकाल न केवल नागरिकों से अभिव्यक्ति का मौलिक अधिकार छीन लेनेए आपातस्थिति लगाकर सत्ता में बने रहने और स्वेच्छाचारिता का निकृष्ट उदाहरण माना जाता है अपितु बिचौलियों की पहुंच की एकाएक विस्तारित होने के लिए भी ख्याति प्राप्त है। इन बिचौलियों में उनके योग गुरू धीरेन्द्र ब्रह्मचारी का नाम प्रमुख से लिया जाता रहा है। उनके कार्यकाल में ही श्श्स्वामियोंश्श् के बिचौलिये की भूमिका का नया अध्याय प्रारम्भ हुआ जो चंद्र स्वामी के रूप में नरसिंह राव के प्रधानमंत्रित्वकाल में सभी प्रकार के षड्यंत्रों का मुखौटा बन गया था। इंदिरा गांधी के समय को नागरवाला काण्ड शायद ही किसी भूले। नरसिंह राव के काल में हर्षद मेहता का सूटकेस कांड कालेधन को राजनेताओं को उपलब्ध कराने का जो खुलासा हुआ हैए उसका एक लघु स्वरूप कर्नाटक की जनता पार्टी सरकार को गिराने के लिए बंगलूरो के एक होटल में प्रतिभा पाटिल ;पूर्व राष्ट्रपति नहींद्ध का सूटकेस खुल जाने से नोटों की गड्डियों के बिखराव भी तब तक प्रगट हो चुका था। सत्ता के गलियारे में नेहरू और इंदिरा गांधी के निजी सचिवों जान मथाई और यशपाल कपूर की हैसियत कौन भूल सकता है।

इंदिरा गांधी के प्रधानमंत्रित्वकाल में क्रांति के अग्रदूत होने का दावा करने वाले पूर्व समाजवादियों जिन्हें श्श्युवा तुर्कश्श् के रूप में पहचाना जाता थाए यह कानून बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी कि उद्योग घरानों से राजनीतिक दलों को चंदा देने पर रोक लगा दिया गया। चंदा एकत्रित करने के लिए ख्याति प्राप्त चंद्रभानु गुप्त ने उस समय ;1966 मेंद्ध चंद्रशेखर को इसके परिणाम की चेतावनी देते हुए कहा था कि इसके परिणाम स्वरूप सत्ता में बैठने वाले मंत्रियों को मेज के नीचे लिफाफा पकड़ाया जाने लगेगा। उनकी चेतावनी कैसी थी यह राजनीति करने वालों के धनाढ्य होते जाने से स्पष्ट है।

राजीव गांधी का कार्यकाल बोफोर्स तोप तथा अन्य रक्षा सौंदो में दलाली की बौछार के दौर में समाप्त हो गया। इतालवी दलाल क्वात्रोची को बचाने के लिए मनमोहन सिंह प्रथम प्रधानमंत्रित्वकाल में क्या हुआ इसके विस्तार में जाने की आवश्यकता नहीं है और ना ही इस विवरण में उनका पूरा दस वर्ष का कार्यकाल किस किस प्रकार के घोटालों का र्प्याय भर बनकर रह गया। इनमें उनको भी अदालती निगरानी से गुजरना पड़ रहा है। यह बात बिना हिचक के मानते हुए भी कि उन्होंने कोई व्यक्तिगत लाभ नहीं उठायाए प्रधानमंत्री के रूप में अपने दायित्व निर्वहन के परिणामों की जिम्मेदारी से वे बच नहीं सकते। उनके शासन का पूरा समय दलालों और बिचौलियों के लिए श्श्रामराज्यश्श् बना रहा। लाजए हयाए शर्म को त्यागकर जिस प्रकार उनके शासनकाल को दुरूपयोग हुआए उसका मिसाल मिलना असंभव है। उस स्थिति का लाभ कुछ क्षेत्रीय दलों ने भी उठाया। न्याय की दुरूह प्रक्रिया और अभियोजन की शिथिलता का लाभ ऐसे तत्वों को मिलने के कई उदाहरण हैं। प्रशासन का स्थायी तंत्र नौकरशाही भी उसी राह पर चल पड़ी थी। श्श्नीतिगत निर्णयश्श् निहित स्वार्थों की पूर्ति के लिए होना एक आम बात हो चली थी।

नरेंद्र मोदी ने सत्ता संभालते ही कहा था श्श्न खाऊंगा और न खाने दूंगा।श्श् खिलाने वाले सूत्रधार थे दलाल। इनमें देशी−विदेशी दोनों प्रकार के लोग शामिल थे। यूपीए दो के कार्यकाल में हेलीकाप्टर सौदे में वायु सेना प्रमुख को जेल में जाना पड़ा है। सत्ता के गलियारे से इन दलालों को साफ करने के लिए न केवल उनकी पहुंच नामुमकिन बनाने का काम मोदी ने किया अपितु किसी भी सौदे में बिचौलियों की भूमिका को समाप्त कर दिया है। अब उत्पादक से सीधे खरीद की जा रही है। गाल बजाने के लिए कुछ उद्योग घरानों को लाभ पहुंचाने का मोदी पर भले आरोप लगाने की कोशिश दिशा भ्रमित राजनीतिक भले ही लगा रहे होंए हकीकत तो यह है कि सरकार ने उद्योगों को बढ़ाने को महत्व देते हुए भी किसी भी उद्योगपति का छाया नहीं पड़ने दी है जो पहले आम बात थी। दूसरे अब तक सारे निर्णय वे हुए है जो गरीबों को लाभ पहुंचायेंगे। निश्चय ही भ्रष्टाचार उन्मूलन की दिशा में बिचौलियों दलालों से सत्ता के गलियारे को साफ कर नरेंद्र मोदी ने अत्यंत महत्वपूर्ण अपेक्षित कदम उठाया है। '
SOURCE : http://www.prabhasakshi.com/ShowArticle.aspx?ArticleId=150609-112909-470011

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