Saturday, 13 June 2015

संजीदगी दिखानी पड़ेगी सरकार को

संजीदगी दिखानी पड़ेगी सरकार को

मोबाइल हमारे स्वास्थ्य के लिए परेशानी का सबब भी बन गया है। केंद्रीय विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय 16 वैज्ञानिक संस्थानों से मोबाइल फोन तरंगों के स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रभाव पर एक स्टडी कराने जा रही है। सेल्युलर ऑपरेटर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया ;सीओएआईद्ध के अनुसार 2011 में आए अंतरमंत्रालय समिति के एक निर्देश के बाद पहली बार केंद्र सरकार व्यापक स्तर पर यह स्टडी कराने जा रही है।
सीओएआई ने बताया कि अध्ययन में प्रमुखतरू विद्युत चुंबकीय क्षेत्र का प्रभावए मस्तिष्क पर उसका प्रभावए जैव रासायनिक अध्ययनए प्रजनन पैटर्नए पशु और मानव मॉडल की तुलना और उपचारात्मक कदम जैसे विषयों पर अध्ययन किया जाएगा। इसी विषय पर भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद ;आईसीएमआरद्ध दिल्ली में 4ए500 लोगों के एक लक्षित समूह के साथ अध्ययन कर रहा है और मुंबई में टाटा मेमोरियल सेंटर अध्ययन कर रहा है।
वैज्ञानिक शोध पत्रिका ष्एंटीऑक्सिडेंट्स एंड रिडॉक्स सिग्नलिंगष् में प्रकाशित एक ताजा अध्ययन से पता चला है कि मोबाइल फोन का अत्यधिक इस्तेमाल करने से कोशिकाओं में एक तरह का तनाव पैदा होता है जो कोशिकीय एवं अानुवंशिक उत्परिवर्तन से संबद्ध है तथा इसके कारण कैंसर का खतरा पैदा हो जाता है। मोबाइल फोन के अधिक इस्तेमाल से कोशिकाओं में उत्पन्न होने वाला विशेष तनाव ;ऑक्सिडेटिव स्ट्रेसद्ध डीएनए सहित मानव कोशिका के सभी अवयवों को नष्ट कर देता है। ऐसा विषाक्त पराक्साइड एवं स्वतंत्र कणों के विकसित होने के कारण होता है। मोबाइल फोन का अत्यधिक इस्तेमाल करने वाले और इस्तेमाल न करने वाले लोगों के बीच तुलनात्मक अध्ययन में उन्होंने पाया कि मोबाइल फोन का अत्यधिक इस्तेमाल करने वालों के लार में ऑक्सिडेटिव स्ट्रेस की उपस्थिति के संकेत अधिक हैं।
शोध के अनुसार मोबाइल रेडियेशन से लंबे समय के बाद प्रजनन क्षमता में कमीए कैंसरए ब्रेन ट्यूमर और मिस.कैरेज की आशंका भी हो सकती है। दरअसलए हमारे शरीर में 70 फीसदी पानी है। दिमाग में भी 90 फीसदी तक पानी होता है। यह पानी धीरे.धीरे बॉडी रेडियेशन को अब्जॉर्ब करता है और आगे जाकर सेहत के लिए काफी नुकसानदेह होता है। एक रिपोर्ट के मुताबिक मोबाइल से कैंसर तक होने की आशंका हो सकती है। इसमें कहा गया कि हर दिन आधे घंटे या उससे ज्यादा मोबाइल का इस्तेमाल करने पर 8.10 साल में ब्रेन ट्यूमर की आशंका 200.400 फीसदी बढ़ जाती है।
दरअसल यह समझने की जरूरत है कि टावर से सिग्नलए सिग्नल से फोन और फोन से आवाज आने तक की पूरी प्रक्रिया रेडियेशन पर बेस्ड है। ये किरणें चारों तरफ हैं। ये मोबाइल के जरिए हमारे शरीर को बुरी तरह से नुकसान पहुंचाती हैं। रेडियेशन की ये तरंगें बड़ी ही तेजी से मोबाइल से निकलती हैंए जो हमारे शरीर के लिए बेहद नुकसानदायक है। डिपार्टमेंट ऑफ टेलीकम्युनिकेशन ने टावर लगाने के कुछ पैमाने बनाए हैंए जिन्हें अकसर दरकिनार कर दिया जाता है। लंबे अरसे से मोबाइल फोन रेडियेशन व टावर्स पर रिसर्च कर रही विदेशी स्कॉलरए राइटर व साइंटिस्ट डेवरा ली डेविस के अनुसार भारत में मोबाइल टावर्स व रेडियेशंस की स्थिति भयावह है। यहां कंपनियां स्कूलों व गांवों में भी टावर लगा रही हैं। मोबाइल टावर के 300 मीटर एरिया में सबसे ज्यादा रेडियेशन होता है।
मोबाइल पर गेम्स खेलना सेहत के लिए बहुत नुकसानदेह नहीं हैए लेकिन इंटरनेट सर्फिंग के दौरान रेडियेशन होता है। मोबाइल रेडियेशन से कुछ हद तक बचाव के लिए कम एसएआर संख्या वाला मोबाइल खरीदेंए क्योंकि इसमें रेडियेशन का खतरा कम होता है। अमेरिका के नेशनल स्टैंडर्ड्स इंस्टीट्यूट के मुताबिकए एक तय वक्त के भीतर किसी इनसान या जानवर के शरीर में प्रवेश करने वाली इलेक्ट्रोमैग्नेटिक तरंगों की माप को एसएआर ;स्पेसिफिक अब्जॉर्पशन रेश्योद्ध कहा जाता है। एसएआर संख्या वह ऊर्जा हैए जो मोबाइल के इस्तेमाल के वक्त इनसान का शरीर सोखती है।
अभी तक हैंडसेट्स में रेडियेशन के यूरोपीय मानकों का पालन होता है। इन मानकों के मुताबिक हैंडसेट का एसएआर लेवल 2 वॉट प्रति किलो से ज्यादा बिल्कुल नहीं होना चाहिए। लेकिन एक्सपर्ट इस मानक को सही नहीं मानते। इसके पीछे दलील यह दी जाती है कि ये मानक भारत जैसे गर्म मुल्क के लिए मुफीद नहीं हो सकते। इसके अलावाए भारतीयों में यूरोपीय लोगों के मुकाबले कम बॉडी फैट होता है। इस वजह से हम पर रेडियो फ्रीक्वेंसी का ज्यादा घातक असर पड़ता है। हालांकिए केंद्र सरकार द्वारा प्रस्तावित गाइडलाइंस में यह सीमा 1ण्6 वॉट प्रति किण्ग्राण् कर दी गई हैए जो कि अमेरिकी स्टैंडर्ड है। कुल मिलाकर सरकार को अब संजीदगी दिखानी पड़ेगी।
SOURCE : http://dainiktribuneonline.com/2015/06/

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