Wednesday, 24 June 2015

इतना बोलते क्यों हैं

इतना बोलते क्यों हैं

केंद्र सरकार ने उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी से माफी मांग कर उस अप्रिय विवाद पर मिट्टी डालने की कोशिश की हैए जो बीजेपी महासचिव राम माधव के निहायत गैरजरूरी ट्वीट से शुरू हो गया था। आयुष मंत्री श्रीपाद नाईक ने विस्तार से बताया कि कैसे प्रोटोकॉल संबंधी विवशताओं के चलते उपराष्ट्रपति को योग कार्यक्रम के लिए आमंत्रित नहीं किया गया था और कैसे राम माधव को ट्वीट करते समय यह बात मालूम नहीं रही होगी।

राम माधव ने दो ट्वीट किए थे। पहले उन्होंने राज्यसभा टीवी द्वारा योग दिवस संबंधी खबरों को कथित तौर पर ब्लैक आउट किए जाने और उपराष्ट्रपति के योग कार्यक्रम से गैरहाजिर रहने पर सवाल उठायाए लेकिन फिर थोड़ी देर में कहा कि उन्हें बताया गया हैए उपराष्ट्रपति की तबीयत ठीक नहीं थी। इस श्सूचनाश् के बाद उन्होंने अपना ट्वीट वापस लेने का ऐलान करते हुए माफी भी मांगीए क्योंकि उनके मुताबिक श्उपराष्ट्रपति पद का सम्मान होना चाहिए।श् थोड़ी ही देर में साफ हो गया कि न सिर्फ राम माधव के सवाल बेतुके थेए बल्कि उनकी सूचना भी सही नहीं थी।

इसके बाद उन्होंने बिना कुछ कहे दोनों ट्वीट डिलीट कर दिए। अब राम माधव समेत पूरी पार्टी और सरकार कह रही है इस विवाद को भूल जाना चाहिए। लेकिनए ध्यान रहे कि यह पहला मामला नहीं है जब संघ और बीजेपी समर्थकों की ओर से उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी को जलील करने की कोशिश की गई है। इससे पहले गणतंत्र दिवस के मौके पर सोशल मीडिया में जारी कुछ तस्वीरों के जरिए आरोप लगाया गया कि उनके मन में तिरंगे के लिए कोई सम्मान नहीं है क्योंकि वे तस्वीर में तिरंगे को सलामी देते नहीं दिख रहे थे। कहने की जरूरत नहीं कि किसी राजनीतिक कारणवश नहींए सिर्फ और सिर्फ हामिद अंसारी के खास धर्म से जुड़े होने के कारण ही राम माधव जैसे लोग उन पर ऐसे सवाल उठाते रहते हैं। यह न तो कोई संयोग हैए न कोई भूल।

समय.समय पर ऐसे बयानों और ट्वीटों के जरिये खड़े किए जाने वाले विवादों का मकसद समाज में आपसी संदेह और अविश्वास की उस आंच को लगातार सुलगाए रखना हैए जिसे जब भी जी करेए तेज करके सांप्रदायिक राजनीति की रोटियां सेंकी जा सकें। आज योग हैए कल क्रिकेट हो सकता हैए परसों मंदिरए मस्जिद या खाली पड़ा कोई मैदान। मुद्दा कोई भी होए बहाना कोई भी होए इन्हें मतलब सिर्फ इस बात से है कि एक खतरनाक किस्म की भनभनाहट समाज में चलती रहे। विकास के नाम पर दिए गए वोटों से चुन कर आई मोदी सरकार खुद को लगातार अपने इस डिफॉल्ट मोड में बनाए रखना चाहती हैए इसलिए यह सवाल उठना लाजिमी है कि विकास जैसी सेक्युलर चीजें सचमुच इस सरकार के अजेंडे पर हैं भी या नहीं। सरकार अगर इस मामले में अपनी छवि साफ रखना चाहती है तो उसे अपने भीतर के बड़बोले और विघ्नसंतोषी तत्वों के खिलाफ एक्शन लेते दिखना चाहिए।
SOURCE : http://navbharattimes.indiatimes.com/opinion/editorial/why-they-speak-so-much/articleshow/47786853.cms

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