रोजगार भी सृजित करें उद्योग
कांग्रेस नेताओं द्वारा एनडीए सरकार पर जनविरोधी होने का लगातार आरोप लगाया जा रहा है। दूसरी ओर प्रधानमंत्री का कहना है कि एनडीए सरकार सच्चे मायने में जनहितकारी है। यूपीए की पालिसी थी कि बड़ी कम्पनियों पर टैक्स लगाकर राजस्व जुटाया जाये और इसका उपयोग मनरेगाए इंदिरा आवास तथा किसानों की ऋण माफी जैसी योजनाओं पर किया जाये। इस स्ट्रेटजी में समस्या थी कि बड़ी कम्पनियों द्वारा आटोमेटिक मशीनों का उपयोग किये जाने से रोजगार उत्पन्न नहीं हो रहे थे। इससे मनरेगा जैसी योजनाओं पर दबाव बढ़ रहा था। दूसरी समस्या थी कि इन योजनाओं में भ्रष्टाचार पनप रहा थाए जिसके कारण रकम लाभार्थी तक कम ही पहुंच रही थी।
इन समस्याओं को दूर करने के लिये एनडीए सरकार ने सरकारी कल्याणकारी कार्यक्रमों को छोटा करने और निजी उद्यमों द्वारा रोजगार सृजन की स्ट्रेटजी को अपनाया है। वित्त मंत्री ने कम्पनियों पर लागू कार्पोरेट इनकम टैक्स की दर को वर्तमान 30 प्रतिशत से घटा कर अगले चार वर्षों में 25 प्रतिशत पर लाने की घोषणा की है। वित्त मंत्री को आशा है कि देशी और विदेशी कम्पनियां भारत में निवेश करेंगी। इस निवेश से रोजगार उत्पन्न होंगे। इन कम्पनियों से वसूली गई टैक्स की रकम से मनरेगा जैसी योजनाओं पर खर्च करने की जरूरत ही नहीं रह जायेगी।
वैश्विक प्रतिस्पर्धा को देखते हुए कार्पोरेट टैक्स की दर को घटाना जरूरी भी था। वैश्वीकरण के इस युग में बहुराष्ट्रीय कम्पनियां मेजबान देश में लाभ कमाकर अपने देश स्थित मुख्यालय को प्रेषित कर देती हैं। प्रश्न है कि इस लाभ पर आयकर कहां अदा किया जायेघ् भारत ने तमाम देशों के साथ डबल टैक्सेशन अवायडेन्स एग्रीमेंट कर रखे हैं। अलग.अलग एग्रीमेंट में अलग.अलग व्यवस्था रहती है कि आयकर मेजबान देश में अदा किया जायेगा अथवा घरेलू देश में। बहरहाल इतना स्पष्ट है कि मुख्यालय के भारत में स्थापित होने से हम आयकर अधिक मात्रा में वसूल कर सकेंगे। इस समय आरसेलर मित्तल तथा टाटा कोरस जैसी भारतीय कम्पनियां अपने मुख्यालय दूसरे देश में स्थापित करके भारत में कमाये गये लाभ पर आयकर दूसरे देश में अदा कर रही हैं जहां कार्पोरेट टैक्स की दर कम है। कार्पोरेट टैक्स घटाकर वित्त मंत्री ने इन्हें भारत में आयकर अदा करने का प्रोत्साहन दिया है जो सही दिशा में उठाया गया कदम है।
कार्पोरेट टैक्स घटाने से तत्काल टैक्स की वसूली कम होगी। आने वाले समय में यदि भारी मात्रा में निवेश आया तो टैक्स की वसूली पुनः बढ़ सकती है। तत्काल वसूली कम होने से जनकल्याणकारी योजनाओं पर वित्तमंत्री को व्यय कम करना पड़ा है। जैसे मनरेगा को गत वर्ष की भांति मात्र 34ए000 करोड़ का आवंटन किया गया है जबकि गत वर्ष के स्तर को बनाये रखने के लिये इसमें महंगाई के बराबर वृद्धि करना जरूरी था। आवंटन को न बढ़ाकर वित्त मंत्री ने इस योजना पर व्यय में कटौती की है। इस कटौती की भरपाई गरीब के लिये बीमा जैसी योजनाओं द्वारा दिखाने का प्रयास किया गया है परन्तु इन नई योजनाओं के लिये सूक्ष्म मात्रा में धन का आवंटन किया गया है। मूल रूप से वित्त मंत्री ने जनकल्याणकारी योजनाओं पर खर्च में कटौती की है।
भारी मात्रा में निवेश आ जाये तो भी आम आदमी पर सकारात्मक प्रभाव पड़ेगाए यह संदिग्ध रहता है। कारण कि बड़ी कम्पनियों के द्वारा आटोमेटिक मशीनों से उत्पादन किया जाता है। इससे रोजगार का हनन होता है। सलाहकारी कम्पनी क्रिसिल द्वारा किये गये एक अध्ययन में पाया गया कि एक करोड़ रुपये का उत्पादन करने के लिये वर्ष 2005 में 171 श्रमिकों की जरूरत पड़ती थी। वर्ष 2010 में यह घटकर 105 रह गई थी। मैन्यूफेक्चरिंग सेक्टर में रोजगार में सात प्रतिशत की कटौती हुई। इस अवधि में हमारी औसत विकास दर 8ण्4 प्रतिशत पर ऊंची थी। यानी भारी मात्रा में निवेश और तीव्र विकास दर के बावजूद रोजगार का हनन हुआ। अतः यदि कार्पोरेट टैक्स में कटौती के कारण भारी मात्रा में निवेश आया तो रोजगार हनन की गति भी तीव्र हो जायेगी।
वित्त मंत्री चाहते हैं कि कम्पनियों को आकर्षित करके निजी क्षेत्र में ज्यादा संख्या में रोजगार उत्पन्न हो तथा कार्पोरेट टैक्स वसूल करके जनकल्याणकारी योजनाओं के लिये राजस्व जुटाने की जरूरत ही नहीं रह जाये। बाजार में 300 रुपये की दिहाड़ी मिल रही हो तो 150 रुपये में मनरेगा में काम करने कौन आयेगाघ् लेकिन बड़ी कम्पनियों द्वारा बड़ी मात्रा में निवेश किया जाये तो भी रोजगार उत्पन्न होना जरूरी नहीं है। यूपीए का अनुभव हमारे सामने है। 6.8 प्रतिशत सम्मानजनक विकास दर के बावजूद बड़े उद्योगों द्वारा रोजगार कम ही सृजित किये गये। यही कारण है कि मनरेगा जैसी जनकल्याणकारी योजनाओं के बावजूद यूपीए को जनता ने नकार दिया। यूपीए कार्यकाल में बड़ी कम्पनियों के द्वारा पहले आटोमेटिक मशीनों से उत्पादन करके रोजगार का हनन किया गया। इससे बेरोजगारी बढ़ी। फिर इन्हीं कम्पनियों से टैक्स वसूल करके इनके ही द्वारा बनाई गई बेरोजगारी से राहत देने के लिये जनकल्याणकारी योजनायें चलायी गई। इसी आत्मघाती पालिसी को वित्त मंत्री श्री जेटली मुस्तैदी से लागू करना चाह रहे हैं लेकिन इस स्ट्रेटजी के सफल होने की संभावना शून्य है।
वित्त मंत्री को चाहिये कि देश में श्रम सघन उत्पादन को प्रोत्साहन देंए जैसे टैक्सटाइल मिल पर टैक्स बढ़ाकर हैंडलूम तथा पावरलूम को संरक्षण दें। पूंजी सघन मशीनों से उत्पादित सस्ते कपड़े पर आयात कर बढ़ायें। ऐसा करने से रोजगार सृजन होगा और जनकल्याणकारी योजनाओं की जरूरत ही नहीं रह जायेगी। लेकिन ऐसा करने से कार्पोरेटों की स्वच्छन्दता समाप्त हो जायेगी।
SOURCE : http://dainiktribuneonline.com/2015/06/
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