Friday 19 June 2015

अमीरी पर इतराएं कैसे

अमीरी पर इतराएं कैसे

देश में अमीरों की संख्या बढ़ रही है यह तो सभी जानते हैंए मगर बॉस्टन कंसल्टिंग ग्रुप ;बीसीजीद्ध की ताजा रिपोर्ट ने इसके बढ़ने की जो रफ्तार बताई हैए वह चौंकाने वाली है। अल्ट्रा हाई नेटवर्थ इंडिविजुअल्स ;यानी ऐसे लोग जिनकी वित्तीय संपदा 10 करोड़ डॉलर या 640 करोड़ रुपए से ज्यादा होद्ध की संख्या अपने यहां 2013 में 284 दर्ज की गई थी। एक साल के अंदरए 2014 में यह 928ए यानी सवा तीन गुनी से भी ज्यादा हो गई।

अगर हम देश में अति अमीरों की इस तेजी से बढ़ती संख्या को दूसरे देशों के मुकाबले में देखते हैं तो स्थिति ज्यादा साफ होती है। 2013 में सुपर अमीरों की तादाद के मामले में हम 13वें नंबर पर थेए लेकिन 2014 में अमेरिकाए चीन और ब्रिटेन के बाद चौथे नंबर पर पहुंच गए। आलम यह है कि बीसीजी की रिपोर्ट में वैश्विक संपत्ति में इजाफे का मुख्य आधार भारत और चीन में बढ़ रही अमीरी को ही माना गया है। इतना ही नहींए रिपोर्ट के मुताबिक 2014 से 19 तक के पांच वर्षों में भारत सुपर अमीर पैदा करने की रफ्तार के मामले में टॉप पर रहेगा। यहां इस बढ़त की अनुमानित रफ्तार 21 फीसदी बताई गई हैए जो दूसरे नंबर पर आने वाले चीन ;10ण्3 फीसदीद्ध की दोगुनी से भी ज्यादा होगी।

इस तेज ग्रोथ के चलते ही अल्ट्रा हाई नेट वर्थ और हाई नेटवर्थ इंडिविजुअल्स ;10 लाख डॉलर की वित्तीय संपदा वाले लोगद्ध की संख्या तथा संपत्ति दोनों में दिन दूनी रात चौगुनी बढ़ोतरी हो रही है। दुनिया भर में इस बढ़ोतरी को एक पॉजिटिव और हेल्दी ट्रेंड माना जाता रहा है। मगर इसी बढ़ोतरी के आधार पर अनुमान लगाया जा सकता है कि पांच साल बादए यानी 2019.20 तक देश की कुल संपत्ति का 65 फीसदी हिस्सा यूएचएनआई तथा एचएनआई तबके के कब्जे में आ चुका होगा।

दूसरे शब्दों में कहें तो देश की 99ण्99 फीसदी से भी ज्यादा ;लगभग पूरी की पूरीद्ध आबादी का नियंत्रण देश की सिर्फ 35 फीसदी संपदा पर होगा। इसका मतलब यह हुआ कि देश की वास्तविक अर्थव्यवस्था अपने दिखाई देने वाले आकार की लगभग एक तिहाई ही बचेगीए क्योंकि 65 फीसदी वित्तीय संपत्ति पर काबिज अल्ट्रा हाई और हाई नेटवर्थ वाले लोगों का भारत के घरेलू बाजार से भला क्या लेना.देनाघ्

हजारों में गिने जा सकने वाले इस तबके की खरीदारी तो विदेशों के टॉप मोस्ट ब्रैंडों से होती है। दूसरे शब्दों में कहें तो इधर जिस तरह हम सोने के आयात को एक राष्ट्रीय आपदा की तरह लेने लगे हैंए कमोबेश उसी तरह हमें देश में बढ़ती करोड़पतियों.अरबपतियों की तादाद को भी ग्रहण करना होगा। कुछ देर के लिए हम इनकी बढ़ती संख्या पर इतरा भी लें तो इस हकीकत से ज्यादा समय तक आंखें नहीं मूंदे रह सकते कि इनके उदय की कीमत हमें बढ़ती महंगाई और घटते रोजगार के रूप में चुकानी पड़ रही है।
SOURCE : http://navbharattimes.indiatimes.com/other/opinion/editorial/articlelist/2007740431.cms

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