जीवंत जनतंत्र की जवाबदेही
हर साल जून में देश उस दुरूस्वप्न को याद कर लेता है जो चालीस साल पहले हमारी शानदार जनतांत्रिक परंपरा के चेहरे पर धब्बा जैसा लगा था। 25 जूनए 1975 को की गयी आपातकाल की घोषणा ने तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी की सारी उपलब्धियों का चेहरा मलिन कर दिया था। यह सही है कि मतदाता ने इसके लिए उन्हें चुनाव में हराकर सज़ा भी दीए और इसके बाद आयी जनता पार्टी की सरकार ने संविधान में संशोधन करके फिर कभी आपातकाल लागू किये जाने की संभावनाओं पर एक तरह से अंकुश भी लगा दियाए लेकिन वैसा कुछ फिर कभी नहीं होगाए इसकी गारंटी कोई नहीं दे सकता।
आपातकाल के शिकार हुएए और बाद में देश के उपप्रधानमंत्री बनने वाले भाजपा के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी ने अरसे बाद अपना मौन तोड़ते हुएए आपातकाल की चालीसवीं बरसी पर इसी खतरे की ओर संकेत किया है। एक प्रमुख अंग्रेजी अखबार को दिये गये इंटरव्यू में यह सवाल पूछे जाने पर कि क्या उन्हें लगता है फिर आपातकाल लागू किया जा सकता हैए उन्होंने स्पष्ट शब्दों में कहाए ष्मुझे नहीं लगता ऐसा कुछ किया गया हैए जिससे यह आश्वासन मिले कि नागरिक स्वतंत्रताओं को फिर से स्थगित अथवा समाप्त नहीं किया जा सकता है। बिल्कुल नहीं।ष् इसके लिए एक ओर वे नागरिक स्वतंत्रताओं एवं मीडिया की स्वतंत्रता के प्रति जागरूकता तथा निष्ठा के अभाव को कारण बताते हैं और यह भी स्पष्ट करना ज़रूरी समझते हैं कि जनतंत्र के प्रति निष्ठावान लोगों की भी कमी आती जा रही है। आडवाणीजी ने अपने इस बहुचर्चित इंटरव्यू में यह भी कहा था कि ष्बाकी कई एफ्रो.एशियाई देशों की तुलना में आपातकाल जैसी चीज़ को रोकने में भारत बेहतर स्थिति में हैए लेकिन इससे हममें संतुष्टि का भाव नहीं आ जाना चाहिए।ष्जनतंत्र.विरोधी ताकतों वाली इस बात को लेकर देश में अटकलों का बाज़ार गरम है। प्रधानमंत्री मोदी के साथ आडवाणीजी के रिश्तों और भाजपा में उन्हें अलग.थलग करने की चर्चाओं के बीच यह अनुमान लगाना अस्वाभाविक नहीं है कि जाने.अनजाने भाजपा का यह वरिष्ठ नेता अपने आक्रोश और अंदेशों को ही व्यक्त कर रहा है। आडवाणीजी ने इन कयासों को खारिज करते हुएए टीवी चैनलों को दिये गये साक्षात्कारों में यह कहना ज़रूरी समझा कि वस्तुतः वे कांग्रेस के नेतृत्व द्वारा आपातकाल लागू करने के प्रति किसी प्रकार का खेद व्यक्त न करने की ओर संकेत कर रहे थे। उन्होंने यह भी कहा कि कांग्रेस को 40 साल पहले के इस कृत्य के प्रति ष्अपराध.बोधष् अभिव्यक्त करना चाहिए।
इसमें कोई संदेह नहीं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पिछले आम चुनाव में अभूतपूर्व सफलता मिली है। लगभग तीन दशक बाद विरोध में बैठे किसी दल को लोकसभा में पूर्ण बहुमत दिलाने का श्रेय यदि नरेंद्र मोदी लेना चाहें तो यह ग़लत नहीं होगा। निश्चित रूप से इस समय वे देश के सबसे ताकतवर राजनेता के रूप में उभरे हैं। सत्ता पर उनकी पकड़ भी बहुत मज़बूत है। उनकी कार्यशैली भी कुछ इस तरह की मानी जा रही हैए जिसमें विरोध या असहमति के लिए कोई स्थान नहीं है। ऐसे में यदि आडवाणीजी के कथन को वर्तमान शासकों के लिए आलोचना नहीं तो चेतावनी के रूप में देखा जा रहा है तो इसे ग़लत भी नहीं कहा जा सकता। फिर भीए यदि आडवाणीजी यह कहते हैं कि उनका अभिप्राय भाजपा के वर्तमान नेतृत्व की ओर नहीं हैए तो इसे मान लिया जाना चाहिए।
लेकिनए मानना यह भी पड़ेगा कि यह हर उस शासक के लिए एक चेतावनी है जो जनतांत्रिक मूल्यों.परंपराओं के प्रति निष्ठावान नहीं होगा। हर 25 जून को ष्आपातकालष् को याद करने का मतलब भी यही है कि हम ऐसी सब प्रवृत्तियों को चुनौती दें जो हमारी जनतांत्रिक व्यवस्था को कमज़ोर दिखाती अथवा बनाती हैं। आडवाणीजी के अखबार को दिये गये इंटरव्यू ने सारे देश को एक अवसर दिया है इस प्रश्न पर विचार करने का कि समाज और राजनीति में ऐसे क्या परिवर्तन लाये जाएं कि कभी देश में आपातकाल जैसी स्थिति न बनें। इसमें कोई संदेह नहीं कि हमारे जनतंत्र की नीव कमज़ोर नहीं है।
पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के नेतृत्व में जिस तरह की जनतांत्रिक व्यवस्था को हमने आकार दिया हैए वह जनतांत्रिक मूल्यों के प्रति हमारी निष्ठा का प्रमाण है। और जिस तरह से आपातकाल के बाद हुए चुनावों में देश के मतदाता ने श्रीमती इंदिरा गांधी को नकारा थाए वह इस बात का भी प्रमाण है कि यह देश अधिनायकवादी प्रवृत्तियों को कभी भी स्वीकार नहीं करेगा। इंदिरा गांधी द्वारा चुनाव कराने की इस पहल को मतदाता ने उनके मन.परिवर्तन के रूप में देखा था। इसीलिएए जब जनता पार्टी की सरकार मतदाता की अपेक्षाओं पर खरी नहीं उतरी तो उसने उस सरकार को भी बदल दिया। फिर से इंदिरा गांधी को एक अवसर दिया। उन्होंने अपने सहयोगियों के बीच तो आपातकाल लागू करने की ग़लती को स्वीकारा थाए लेकिन बेहतर होता यदि वे सार्वजनिक रूप से उस कृत्य के लिए देश से क्षमा मांग लेतीं।
आज भी यदि आडवाणीजी की बात मानकर कांग्रेस पार्टी चालीस साल पहले के अपराध के लिए देश से क्षमा मांग लेती है तो मतदाता के मन में उसके प्रति विश्वास का भाव बढ़ेगा ही। यह सही है कि इस दौरान चार बार मतदाता ने कांग्रेस पार्टी को फिर से शासन करने का मौका दिया हैए पर इसका अर्थ यह नहीं कि आपातकाल के पाप धुल गये।
जनतंत्र को मज़बूत बनानेए बनाये रखने की ज़िम्मेदारी मूलतः मतदाता की है। लेकिन जनतंत्र में हर शासक से यह अपेक्षा की जाती है कि वह अपनी कथनी.करनी से जनतांत्रिक मूल्यों में अपने विश्वास को लगातार अभिव्यक्त करता रहे। आज यदि आडवाणीजी जैसा वरिष्ठ नेता यह आशंका व्यक्त करता है कि जनतंत्र को कमज़ोर बनाने वाली ताकतें सिर उठा रही हैं तो इसे एक चेतावनी के रूप में लिया जाना चाहिए। मतदाता को और अधिक जागरूक होना होगा तथा निर्वाचित सरकारों को जनतंत्र में अपनी निष्ठा को प्रमाणित करने के प्रति निरंतर सजग रहना होगा।
समताए स्वतंत्रताए न्याय और बंधुता के जिन आधारों पर हमने अपने जनतंत्र का प्रासाद बनाया हैए उन्हें कमज़ोर करने की अनुमति किसी को नहीं दी जा सकती। नागरिक स्वतंत्रताओं को किसी आपातकाल की घोषणा से ही निरस्त नहीं किया जाताए इन स्वतंत्रताओं पर हमला करने वालों को इसका अवसर दिया जाना भी उन स्थितियों का निर्माण करता है जो ष्आपातकालष् को परिभाषित करती हैं। इन हमलावरों के प्रति भी देश को जागरूक रहना होगा। सतत जागरूक। तभी जनतंत्र बचेगा।
SOURCE :http://dainiktribuneonline.com/2015/06/